लोकोक्ति Proverb
प्रायः सभी भाषाओं में लोकोक्तियों का प्रचलन है । प्रत्येक समाज में प्रचलित लोकोक्तियों अलिखित कानून के रूप में मानी गई है । मनुष्य अपनी बात को और अधिक प्रभावपूर्ण बनाने के लिए इनका प्रयोग करता है ।लोकोक्ति शब्द लोक - उक्ति के योग से निर्मित हुआ है । लोक में पीढ़ियों सेे प्रचलित इन उक्तियों में अनुभव का सार एवं व्यावहारिक नीति का निचोड होता है । अनेक लोकोक्तियों के निर्माण में किसी घटना विशेष का विशेष योगदान होता है और उसी कोटि की स्थिति परिस्थिति के समय उस लोकोक्ति का प्रयोग स्थिति या अवस्था के सुस्पष्टीकरण हेतु किया जाता है , जो उस सम्प्रदाय या समाज को सहर्ष स्वीकार्य होता है । इनकी उत्पत्ति एवं रचनाकार ज्ञात नहीं होते। लोकोक्तियाँ आम जनमानस द्वारा स्थानीय बोलियों में हर दिन की परिस्थितियों एवं संदर्भों से उपजे वैसे पद एवं वाक्य होते हैं जो किसी खास समूह, उम्र वर्ग या क्षेत्रीय दायरे में प्रयोग किया जाता है। इसमें स्थान विशेष के भूगोल, संस्कृति, भाषाओं का मिश्रण इत्यादि की झलक मिलती है। लोकोक्ति वाक्यांश न होकर स्वतंत्र वाक्य होते हैं ।
कुछ बहुप्रचलित लोकोक्तियाँ
लोकोक्ति | अर्थ |
अकेला चना भाड नहीं फोड सकता | अकेला व्यक्ति शक्ति हीन होता है । |
अंत भला तो सब भला | कार्य का अन्तिम चरण ही महत्वपूर्ण होता है |
अधजल गगरी छलकत जाय
| ओछा आदमी अधिक इतराता है । |
अधों में काना राजा | मूर्खों में कम ज्ञान वाला भी आदर पाता है । |
अंधे के हाथ बटेर लगना | अयोग्य व्यक्ति को बिना परिश्रम संयोग से अच्छी वस्तु मिलना । |
अंधा पीसे कुत्ता खाय | मूखों की मेहनत का लाभ अन्य उठाते हैं । असावधानी से अयोग्य को लाभ । |
अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत | अवसर निकल जाने पर पछताने से कोई लाभ नहीं । |
अन्धे के आगे रो अपने नैन खो | निर्दय व्यक्ति या अयोग्य व्यक्ति से सहानुभूति की अपेक्षा करना व्यर्थ है । |
अन्धा क्या चाहे दो आँखें | बिना प्रयास वांछित वस्तु का मिल जाना । |
अपनी गली में कुत्ता भी शेर | अपने क्षेत्र में कमजोर भी बलवान होता है बन जाता है । |
अन्धेर नगरी चौपट राजा | प्रशासन की अयोग्यता से सर्वत्र अराजकता आ जाना । |
अक्ल बड़ी या भैंस | शारीरिक बल से बुद्धिवल श्रेष्ठ होता है । |
अपना हाथ जगन्नाथ | अपना काम अपने ही हाथों ठीक रहता है । |
अपनी - अपनी उपली | तालमेल का अभाव / सबका अपना - अपना राग / अलग - अलग मत होना / एकमत का अभाव । |
अंधा बाँटे रेवड़ी फिर – फिर अपनो को देय
| स्वार्थी व्यक्ति अधिकार पाकर अपने लोगों की सहायता करता है । |
आ बैल मुझे मार | जानबूझ कर मुसीबत में फंसना। |
आम के आम गुठली के दाम | हर प्रकार का लाभ / एक काम से दो लाभ |
आँख का अंधा नाम नयन सुख | गुणों के विपरीत नाम होना । |
आगे कुओं पीछे खाई | दोनों / सब ओर से विपत्ति में फंसना |
आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास | उददेश्य से भटक जाना / श्रेष्ठ काम करने की बजाय तुच्छ कार्य करना / कार्य विशेष की उपेक्षा कर किसी अन्य कार्य में लग जाना । |
आप भला जग भला | अपने अच्छे व्यवहार से सब जगह आदर मिलता है । |
आधा तीतर आधा बटेर | अनमेल मिश्रण / बेमेल चीजें जिनमें सामंजस्य का अभाव हो । |
आठ कनौजिए नौ चूल्हे | फूट होना । |
इन तिलों में तेल नहीं है | किसी लाभ की आशा न होना । |
उल्टे बाँस बरेली को | विपरीत कार्य या आचरण करना |
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे | अपना अपराध न मानना और पूछने वाले को ही दोषी ठहराना । |
ऊधो का न लेना न माधो का देना | किसी से कोई मतलब न रखना / सबसे अलग । |
ऊँट के मुंह में जीरा | आवश्यकता की नगण्य पूर्ति । |
ऊँची दुकान फीका पकवान
| वास्तविकता से अधिक दिखावा / दिखावा ही दिखावा / केवल बाहरी दिखावा । |
ऊखली में सिर दिया तो मूसल का क्या डर | जब दृढ निश्चय कर लिया तो बाधाओं से क्या घबराना। |
ऊँट किस करवट बैठता है | परिणाम में अनिश्चितता होना । |
एक पंथ दो काज | एक काम से दोहरा लाभ / एक तरकीब से दो कार्य करना / एक साधन से दो कार्य करना । |
एक अनार सौ बीमार | वस्तु कम चाहने वाले अधिक / एक स्थान के लिये सैकड़ों प्रत्याशी। |
एक मछली सारा तालाब गंदा कर देती है | एक की बुराई से साथी भी बदनाम होते हैं । |
एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकती | दो प्रशासक एक ही जगह एक साथ शासन नहीं कर सकते । |
एक हाथ से ताली नहीं बजती | लड़ाई का कारण दोनों पक्ष होते हैं । |
एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा | बुरे से और अधिक बुरा होना / एक बुराई के साथ दूसरी बुराई का जुड़ जाना । |
कागज की नाव नहीं चलती
| बेइमानी से किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती । |
काला अक्षर भैंस बराबर | बिल्कुल निरक्षर होना । |
कंगाली में आटा गीला | संकट पर संकट आना । |
कोयले की दलाली में हाथ काले होता है | बुरे काम का परिणाम भी बुरा / दुष्टों की संगति से कलंकित होते हैं । |
का वर्षा जब कृषि सुखानी | अवसर बीत जाने पर साधन की प्राप्ति बेकार है । |
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोडा | अलग - अलग स्वभाव वालों को एक जगह एकत्र करना / इधर - उधर से सामग्री जुटा कर कोई निकृष्ट वस्तु का निर्माण करना । |
कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर | एक - दूसरे के काम आना / परिस्थितियां बदलती रहती हैं । |
काबुल में क्या गधे नहीं होते | मूर्ख सब जगह मिलते हैं । |
कहने से कुम्हार गधे पर नही चढ़ता | कहने से जिददी व्यक्ति काम नहीं करता । |
कोउ नृप होउ हमें का हानि | अपने काम से मतलब रखना । |
कौवा चला हंस की चाल
| दूसरों के अनधिकार अनुकरण। |
घर बैठे गंगा आना बिना | प्रयत्न के लाभ , सफलता मिलना । |
घर आये नाग न पूज , बाँबी पूजन जाय | अवसर का लाभ न उठाकर अन्य अवसर की खोज में जाना। |
घर में नहीं दाने बुड़िया चली भुनाने | झूठा दिखावा करना |
चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाए | बहुत कंजूस होना |
घर का जोगी जोगना , आन गाँव का सिद्ध | विद्वान की अपने घर में अपेक्षा बाहर अधिक सम्मान / परिचित की अपेक्षा अपरिचित का विशेष आदर |
चलती का नाम गाड़ी | काम का चलते रहना / बनी बात के सब साथी होते हैं । |
चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात | सुख का समय थोड़ा ही होता है । |
चंदन की चुटकी भली गाड़ी भली न काठ | अच्छी वस्तु तो थोड़ी भी भली |
चिकने घडे पर पानी नहीं ठहरता | निर्लज्ज पर किसी बात का असर नहीं होता । |
चिराग तले अंधेरा
| दूसरों को उपदेश देना स्वयं अज्ञान में रहना |
चींटी के पर निकलना | बुरा समय आने से पूर्व बुद्धि का , नष्ट होना |
चील के घोंसले में माँस कहाँ ? | भूखे के घर भोजन मिलना असंभव होता है |
चुपड़ी और दो - दो | लाभ में लाभ होना |
चोरी का माल मोरी में | बुरी कमाई बुरे कार्यों में नष्ट होती है |
चोर की दाड़ी में तिनका | अपराधी का सशंकित होना अपराधी के कार्यों से दोष प्रकट हो जाता है । |
चोर - चोर मौसेरे भाई | दुष्ट लोग प्रायः एक जैसे होते हैं एक से स्वभाव वाले लोगों में मित्रता होना |
छुछुन्दर के सिर में चमेली का तेल | अयोग्य व्यक्ति के पास अच्छी वस्तु। |
छोटे मुंह बड़ी बात | हैसियत से अधिक बातें करना । |
जहाँ काम आवै सुई का करै तलवारि | छोटी वस्तु से जहाँ काम निकलता है वहाँ बड़ी वस्तु का उपयोग नहीं होता है । |
जल में रहकर मगर से बैर
| बड़े आश्रयदाता से दुश्मनी ठीक नहीं |
जब तक साँस तब तक आस | जीवन पर्यन्त आशान्वित रहना । |
जंगल में मोर नाचा किसने देखा | दूसरों के सामने उपस्थित होने पर ही गुणों की कद्र होती है । गुणों का प्रदर्शन उपयुक्त स्थान पर करना चाहिए । |
जहाँ मुर्गा नहीं बोलता वहाँ क्या सवेरा नहीं होता | किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता / कोई अपरिहार्य नहीं है । |
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी | माँ व मातृभूमि का महत्व स्वर्ग से भी बढ़कर है । |
जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि | कवि दूर की बात सोचता है / सीमातीत कल्पना करना |
जाके पैर न फटी बिवाई , सो क्या जाने पीर पराई | जिसने कभी दुख नहीं देखा वह दूसरों का दुःख क्या अनुभव करे |
जाकी रही भावना जैसी हरि मूरत देखी तिन तैसी | भावनानुकूल ( प्राप्ति का होना ) औरों को देखना |
जान बची और लाखों पाये
| प्राण सबसे प्रिय होते हैं । |
जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय | ईश्वर रक्षक हो तो फिर डर किसका , कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता । |
जिस थाली में खाया उसी में छेद | विश्वासघात करना / भलाई करने वाले का ही बुरा करना / कृतघ्न होना |
जिसकी लाठी उसकी भैस | शक्तिशाली की विजय होती है |
जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ | प्रयत्न करने वाले को सफलता / लाभ अवश्य मिलता है । |
जादू वही जो सिर चढ़कर बोले | उपाय वही अच्छा जो कारगर हो । |
जो ताको कोटा बोवै ताहि बोय तू फूल | अपना बुरा करने वालों के साथ भी भलाई का व्यवहार करो |
झटपट की पानी आधा तेल आधा पानी | जल्दबाजी का काम खराब ही होता है । |
झूठ कहे सो लड्डू खाय सांच कहे सो मारा जाय | आजकल झूठे का बोल बाला है । |
जैसी बहे बयार पीठ तब वैसी दीजै | समयानुसार कार्य करना । |
टके का सौदा नो टका ढुलाई
| साधारण वस्तु हेतु खर्च अधिक |
टेढ़ी अंगुली किये बिना घी नही निकलता | सीधेपन से काम नहीं चलता |
टके की हाँडी गई पर कुत्ते की जात पहचान ली | थोड़ा नुकसान उठाकर धोखेबाज को पहचानना । |
डूबते को तिनके का सहारा | संकट में थोड़ी सहायता भी लाभप्रद / पर्याप्त होती है । |
ढाक के तीन पात | सदा एक सी स्थिति बने रहना |
तीन लोक से मथुरा न्यारी | सबसे अलग विचार बनाये रखना |
तीर नहीं तो तुक्का ही सही | पूरा नहीं तो जो कुछ मिल जाये उसी में सतोष करना । |
तू डाल - डाल में पात - पात | चालाक से चालाकी से पेश आना एक से बढ़कर एक चालाक होना |
तेल देखो तेल की धार देखो | नया अनुभव करना / धैर्य के साथ सोच समझ कर कार्य करो / परिणाम की प्रतीक्षा करो । |
तेली का तेल जले मशालची का दिल जले | खर्च कोई करे बुरा किसी और को ही लगे । |
तेते पाँव पसारिये जैती लाम्बी सौड़
| हैसियतानुसार खर्च करना / अपने सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना |
तन पर नहीं लत्ता पान खाये अलबत्ता । | अभावग्रस्त होने पर भी ठाठ से रहना / झूठा दिखावा करना । |
तीन कनौजिये तेरह चूल्हे | व्यर्थ की नुक्ता - चीनी करना । |
तीन बुलाए तेरह आये | अनिमन्त्रित व्यक्ति का आना । |
थोथा चना बाजे घना | गुणहीन व्यक्ति अधिक डींगें मारता है / आडम्बर करता है । ढोंग करना । |
दूध का दूध पानी का पानी | सही सही न्याय करना । |
दमडी की हांडी भी ठोक बजाकर लेते हैं | छोटी चीज को भी देखभाल कर लेते हैं । |
दान की बछिया के दाँत नहीं गिने जाते | मुफ्त की वस्तु के गुण नही देखें जाते । |
दाल भात में मूसल चंद | किसी के कार्य में व्यर्थ में दखल देना । |
दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम
| संदेह की स्थिति में कुछ भी हाथ नहीं लगना । |
दूध का जला छाछ को फूंक फंक कर पीता है | एक बार धोखा खाया व्यक्ति दुबारा सावधानी बरतता है । |
दूर के ढोल सुहाने लगते हैं । | दूरवर्ती वस्तुएँ अच्छी मालूम होती हैं दूर से ही वस्तु का अच्छा लगना पास आने पर वास्तविकता का पता लगना |
दैव देव आलसी पुकारा | आलसी व्यक्ति भाग्यवादी होता है |
न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी | ऐसी अनहोनी शर्त रखना जो पूरी न हो सके / बहाने बनाना । |
धोबी का कुत्ता घर का न घाट का | कहीं का न रहना / इधर का न उधर का |
न रहेगा बाँस न बजेगी बांसुरी
| झगड़े को जड़ से ही नष्ट करना । |
नक्कार खाने में तूती की आवाज | अराजकता में सुनवाई न होना / बड़ों के समक्ष छोटों की कोई पूछ नहीं । |
न सावन सूखा न भादों हरा | सदैव एक सी तंग हालत रहना |
नाच न जाने आँगन टेढा | अपना दोष दूसरों पर मढ़ना / अपनी अयोग्यता को छिपाने हेतु दूसरों में दोष दूँढना । |
नाम बड़े और दर्शन खोटे
| बड़ों में बड़प्पन न होना / गुण कम किन्तु प्रशंसा अधिक । |
नीम हकीम खतरे जान , नीम मुल्ला खतरे ईमान | अधकचरे ज्ञान वाला अनुभवहीन व्यक्ति अधिक हानिकारक होता है । |
नेकी और पूछ - पूछ
नेकी कर कुए में डाल
| भलाई करने में भला पूछना क्या ? भलाई कर भूल जाना चाहिये । |
नौ नगद , न तेरह उधार | भविष्य की बड़ी आशा से तत्काल का थोड़ा लाभ अच्छा / व्यापार में उधार की अपेक्षा नगद को महत्त्व देना । |
नौ दिन चले अढ़ाई कोस | बहुत धीमी गति से कार्य का होना |
नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली | बहुत पाप करके पश्चाताप करने का ढोंग करना । |
पढ़े पर गुने नहीं | अनुभवहीन होना । |
पढ़े फारसी बेचे तेल , देखो यह विधना का खेल | शिक्षित होते हुए भी दुर्भाग्य से निम्न कार्य करना । |
पराधीन सपनेहु सुख नाहीं | परतंत्र व्यक्ति कभी सुखी नहीं होता । |
पाँचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती
| सभी समान नहीं हो सकते । |
प्रभुता पाय काहि मद नाही | अधिकार प्राप्ति पर किसे गर्व नहीं होता । |
पानी में रहकर मगर से बैर | शक्तिशाली आश्रयदाता से वैर करना । |
प्यादे से फरजी भयो टेढों-टेढ़ों जाय | छोटा आदमी बड़े पद पर पहुंचकर इतराकर चलता है । |
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद | मूर्ख को गुण की परख न होना / अज्ञानी किसी के महत्त्व को आँक नहीं सकता । |
फटा मन और फटा दूध फिर मेल नही हो सकता | एक बार मतभेद होने पर पुनः नहीं मिलता । |
बद अच्छा , बदनाम बुरा | कलंकित होना बुरा होने से भी बुरा है । |
बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी | जब संकट आना ही है तो उससे कब तक बचा जा सकता है |
बावन तोले पाव रती | बिल्कुल ठीक या सही सही होना |
बाप ने मारी मेंढकी बेटा तीरंदाज | बहुत अधिक बातूनी या गप्पी होना |
बाँबी में हाथ तू डाल मंत्र में बांचु
| खतरे का कार्य दूसरों को सौंपकर स्वयं अलग रहना । |
बाप बड़ा न भैया , सबसे बड़ा रुपया | आजकल पैसा ही सब कुछ है । |
बिल्ली के भाग छीका टूटना | संयोग से किसी कार्य का अच्छा होना / अनायास अप्रत्याशित वस्तु की प्राप्ति होना । |
बिना रोए माँ भी दूध नहीं पिलाती | प्रयत्न के बिना कोई कार्य नहीं होता । |
बिन माँगे मोती मिले माँगे मिले न भीख | भाग्य से स्वतः मिलता है इच्छा से नहीं । |
बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाय | बुरे कर्म कर अच्छे फल की इच्छा करना व्यर्थ है । |
बैठे से बेगार भली | खाली बैठे रहने से तो किसी का कुछ काम करना अच्छा । |
भई गति सौंप छछुंदर जैसी | दुविधा में पड़ना । |
भूखे भजन न होय गोपाला | भूख लगने पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता । |
भूल गये राग रंग भूल गये छकड़ी तीन चीज याद रही नोन , तेल , लकड़ी | गृहस्थी के जंजाल में फसना |
भागते भूत की लंगोट भली
| हाथ पड़े सोई लेना जो बच जाए उसी से संतुष्टि / कुछ नहीं से जो कुछ भी मिल जाए वह अच्छा । |
भैंस के आगे बीन बजाये भैस खड़ी पगुराय | मूर्ख को उपदेश देना व्यर्थ है । |
बिच्छू का मंत्र न जाने सांप के बिल में हाथ डाले | योग्यता के अभाव में काम करने का बीड़ा उठा लेना । |
मन चंगा तो कठौती में गंगा | मन पवित्र तो घर में तीर्थ है । |
मरता क्या न करता | मुसीबत में गलत कार्य करने को भी तैयार होना पड़ता है । |
मानो तो देव नहीं तो पत्थर | विश्वास फलदायक होता है । |
मान न मान मैं तैरा मेहमान | जबरदस्ती गले पड़ना । |
मार के आगे भूत भागता है | दण्ड से सभी भयभीत होते हैं । |
मुख में राम बगल में छुरी | ऊपर से मित्रता अन्दर शत्रुता । |
मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी | यदि आपस में प्रेम है तो तीसरा क्या कर सकता है ? |
मेरी बिल्ली मुझ से ही म्याऊँ । | आश्रयदाता का ही विरोध करना |
मेंढकी को जुकाम होना
| नीच आदमियों द्वारा नखरे करना । |
मन के हारे हार है मन के जीते जीत | हतोत्साहित होने पर असफलता व उत्साहपूर्वक कार्य करने से जीत होती है । |
यथा नाम तथा गुण | नाम के अनुसार गुण का होना । |
यथा राजा तथा प्रजा | जैसा स्वामी वैसा सेवक |
यह मुँह और मसूर की दाल | योग्यता से अधिक पाने की इच्छा करना |
मुफ्त का चंदन , घिस मेरे नंदन | मुफ्त में मिली वस्तु का दुरुपयोग करना । |
रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई | सर्वनाश होने पर भी घमण्ड बने रहना / टेक न छोड़ना । |
रंग में भंग पड़ना | आनन्द में बाधा उत्पन्न होना । |
राम नाम जपना , पराया माल अपना | मक्कारी करना । |
रोग का घर खाँसी , झगड़े का घर हांसी | हँसी मजाक झगजे का कारण बन जाती है । |
रोज कुआ खोदना रोज पानी पीना
| प्रतिदिन कमाकर खाना / रोज कमाना रोज खा जाना । |
लकड़ी के बल बन्दरी नाचे | भयवश ही कार्य संभव है । |
लातों के भूत बातों से नहीं मानते | नीच व्यक्ति दण्ड से / भय से कार्य करते है कहने से नहीं । |
लम्बा टीका मधुरी बानी दगेबाजी की यही निशानी | पाखण्डी हमेशा दगाबाज होते है । |
लोहे को लोहा ही काटता है | बुराई को बुराई से ही जीता जाता है । |
वक्त पड़े जब जानिये को बैरी को मीत | विपत्ति / अवसर पर ही शत्रु व मित्र की पहचान होती है । |
विधिकर लिखा को मेटनहारा | भाग्य को कोई बदल नहीं सकता। |
विनाश काले विपरीत बुद्धि | विपत्ति आने पर बुद्धि भी नष्ट हो जाती है । |
शबरी के बेर | प्रेममय तुच्छ भेट |
शक्कर खोर को शक्कर मिल ही जाती है
| जरूरतमंद को उसकी वस्तु सुलभ हो ही जाती है । |
शुभस्य शीघ्रम | शुभ कार्य में शीघ्रता करनी चाहिए । |
साँच को आँच नहीं | सच्चा व्यक्ति कभी डरता नहीं । |
शठे श्ठयम समाचरेत | दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिये । |
सब दिन होत न एक समान । | जीवन में सुख - दुःख आते रहते है , क्योंकि समय परिवर्तनशील होता है । |
सब धान बाईस पंसेरी | अविवेकी लोगों की दृष्टि में गुणी और मूर्ख सभी व्यक्ति बराबर होते हैं । |
सैइयाँ भये कोतवाल अब अपनों से काहे का डर | उच्चपद पर होने से बुरे कार्य में हिचक न करना । |
समरथ को नहीं दोष गुसाई | गलती होने पर भी सामर्थ्यवान की कोई कुछ नहीं कहता । |
सावन सूखा न भादों हरा | सदैव एक सी स्थिति बने रहना । |
सांप मर जाये और लाठी भी न टूटे | सुविधापूर्वक कार्य होना / बिना हानि के कार्य का बन जाना । |
सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है
| सभी को अपने समान समझना । |
सीधी अंगुली घी नहीं निकलता | सीधेपन से कोई कार्य नहीं होता |
सिर मुंडाते ही ओले पड़ना | कार्य प्रारम्भ करते ही बाधा उत्पन्न होना । |
सोने में सुहागा | अच्छे में और अच्छा । |
सौ सुनार की एक लुहार की । | सैंकड़ों छोटे उपायों से एक बड़ा उपाय अच्छा । |
सूप बोले तो बोले छलनी भी बोले | दोषी का बोलना ठीक नहीं । |
हथेली पर दही नहीं जमता
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हर कार्य के होने में समय लगता
हथेली पर सरसों नहीं उगती कार्य के अनुसार समय भी लगता है ।
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हल्दी लगे न फिटकरी रंग आय चोखा | आसानी से काम बन जाना / कम खर्च में अच्छा कार्य । |
हाथ कंगन को आरसी क्या | प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता क्या ? |
हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और | कपटपूर्ण व्यवहार / कहे कुछ करे कुछ / कथनी और करनी में अन्तर । |
हाथ सुमरिनी बगल कतरनी | कपटपूर्ण व्यवहार करना । |
होनहार बिरवान के होत चीकने पात | महान व्यक्तियों के लक्षण बचपन में ही नजर आ जाते हैं । |
लोकोक्ति व मुहावरे में अंतर
लोकोक्ति का दूसरा नाम कहावत ' भी है । लोकोक्ति जहाँ अपने आप में पूर्ण होती है और प्रायः प्रयोग में एक वाक्य के रूप में ही प्रयुक्त होती है , जबकि मुहावरा वाक्यांश मात्र होता है ।
लोकोक्ति का रूप प्राय : एक सा ही रहता है , जब कि मुहावरे के स्वरूप में लिंग , वचन एवं काल के अनुसार परिवर्तन अपेक्षित होता है ।
मुहावरों के अंत में प्रायः ‘ना’ लगा रहता है जैसे – श्री गणेश करना , नाकों चने चबाना । जबकि लोकोक्ति में नही होता।
ये भी देखें
कारक <> सन्धि <> समास <> पर्यायवाची शब्द <> विलोम शब्द <> वाक्यांश के लिए एक शब्द one word <> एकार्थी प्रतीत होने वाले भिन्नार्थक शब्द <> शब्द-युग्म : समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द <> वाक्य - विचार vaaky-vichaar भाग-1 <> वाक्य - विचार vaaky-vichaar भाग-2 <> वाक्य – शुद्धि <> पदबंध <> शब्द – शक्ति <> मुहावरे
उत्साहवर्धन के लिये धन्यवाद!
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