शब्द – शक्ति shabd-shakti
वर्णों के सार्थक समूह को शब्द कहते है किन्तु किसी शब्द का अर्थ उसके प्रयोग पर निर्भर करता है । अतः शब्द में अन्तर्निहित अर्थ को प्रकट करने वाले व्यापार को शब्द - शक्ति कहते हैं । प्रत्येक शब्द में वक्ता के अभीष्ट अर्थ को व्यक्त करने का जो गुण होता है , वह शब्द शक्ति के कारण ही होता है ।
शक्ति के अनुसार शब्द तीन प्रकार के होते हैं ।
वाचक
लक्षक और
व्यंजक ।
वाचक शब्द द्वारा वाच्यार्थ या अभिधेयार्थ कहलाता है , लक्षक के द्वारा आरोपित अर्थ लक्ष्यार्थ कहलाता है तथा व्यंजक शब्द के द्वारा प्रकट अन्य अर्थ या व्यंजित भाव व्यंग्यार्थ कहलाता है ।
शब्द एवं अर्थ के सम्बन्ध के अनुसार शब्द-शक्ति तीन प्रकार की होती है -
अभिधालक्षणा
व्यंजना
अभिधा शब्द-शक्ति
पं . रामदहिन मिश्र के अनुसार " साक्षात संकेतित अर्थ के बोधक व्यापार को अभिधा शब्द शक्ति कहते है । "
आचार्य मम्मट के अनुसार “साक्षात् संकेतित अर्थ जिसे मुख्यार्थ कहा जाता है उसका बोध कराने वाले व्यापार को अभिधा व्यापार कहते हैं ।“
एक रीतिकालीन आचार्य के अनुसार अनेकार्थक तू सबद में , एक अर्थ की भक्ति । तिहि वाच्यारथ को कहे , सज्जन अभिधा शक्ति ।।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि किसी शब्द के मुख्यार्थ का , वाच्यार्थ का , संकेतित अर्थ का , सरलार्थ का , शब्दकोशीय अर्थ का , नामवाची अर्थ का , लोक प्रचलित अर्थ या अभिधेय अर्थ का बोध कराने वाली शक्ति अभिधा शब्द शक्ति होती है । अतः शब्द की जिस शक्ति के कारण किसी शब्द का मुख्य अर्थ समझा जाता है वह अभिधा शब्द शक्ति कहलाती है । बहुत से शब्द ऐसे होते हैं जिनके शब्द कोश में भी अनेक अर्थ होते हैं ।
जैसे
कनक कनक का अर्थ सोना भी होता है और धतूरा भी । कनक का कौनसा अर्थ लिया जाय , इसका ज्ञान प्रसंग से अथवा वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उसके संबंध से होता है ।
इसी प्रकार अन्य उदाहरण भी दिए जा सकते हैं -
- मोती एक नटखट लड़का है ।
- उसके हार के मोती कीमती हैं ।
- हरि पुस्तक पढ़ रहा है ।
- विष्णु ने नारद को हरि रूप दिया । ( बन्दर )
- गाय दूध देती है ।
- गया घास चर रहा है ।
- शेर जंगल में रहता है ।
लक्षणा शब्द शक्ति
मुख्यार्थ बाधेतद्योगे सहितोय प्रयोजनात् ।
अन्यऽर्थो लक्ष्यते ( तत्र ) लक्षणा रोपिता क्रिया ।।
जब किसी वक्ता द्वारा कहे गये शब्द के मुख्य अर्थ से अभीष्ट अर्थ का बोध न हो अर्थात् शब्द के मुख्यार्थ में बाधा हो तब किसी रूढ़ि या प्रयोजन के आधार पर मुख्यार्थ से सम्बन्ध रखने वाले अन्य अर्थ या लक्ष्यार्थ या आरोपितार्थ से अभिप्रेत अर्थ यानी इच्छित अर्थ का बोध होता है वहाँ लक्षणा शब्द शक्ति होती है ।
लक्षणा शब्द शक्ति के लिए आवश्यक बातें -
शब्द के मुख्य अर्थ में बाधा पड़े ।
शब्द के मुख्यार्थ से सम्बन्धित कोई अन्य अर्थ लिया जाए ।
उस शब्द के लक्ष्यार्थ को ग्रहण करने का कोई विशेष प्रयोजन हो ।
जैसे
- राम सदा चौकन्ना रहता है ।
- राजस्थान जाग उठा ।
- मोहन ने कहा , मेरा नौकर तो गधा है ।
- लाला लाजपतराय पंजाब के शेर थे ।
- यह तो निरी गाय है ।
लक्षणा शब्द शक्ति के मुख्यतः दो भेद हैं
रूढा लक्षणा
प्रयोजनवती लक्षणा
प्रयोजनवती लक्षणा
रुढा लक्षणा
जब किसी काव्य रूढि या परम्परा को आधार बनाकर शब्द का प्रयोग लक्ष्यार्थ में किया जाता है , वहाँ रूढा लक्षणा शब्द - शक्ति होती है । अर्थात् रुढा लक्षणा शब्द शक्ति में शब्द अपना नियत या मुख्य अर्थ छोड़कर रूढ़ि या परम्परा प्रयोग के कारण भिन्न अर्थ यानी लक्ष्यार्थ का बोध कराता है । हिन्दी के सभी मुहावरे रुढा लक्षणा के अन्तर्गत आते हैं ।
जैसे –
- वह हवा से बातें कर रहा है ।
- बाजार में लाठियां चल गई ।
- उसने तो मेरी नाक कटा दी ।
- पुलिस को देख चोर नौ दो ग्यारह हो गया ।
प्रयोजनवती लक्षणा
जब किसी विशेष प्रयोजन से प्रेरित होकर शब्द का प्रयोग लक्ष्यार्थ में किया जाता है . अर्थात् जहाँ मुख्यार्थ किसी प्रयोजन के कारण लक्ष्यार्थ का बोध कराता है वहाँ प्रयोजनवती लक्षणा होती है ।
जैसे
- उसका आश्रम गंगा में है ।
- अब सिंह अखाड़े में उतरा ।
- लाल पगड़ी आ रही है ।
- वह तो निरी गाय है ।
- गुरुजी जी ने कहा , मोहन तो गधा है ।
व्यंजना शब्द शक्ति
जब किसी शब्द के अभिप्रेत अर्थ का बोध न तो मुख्यार्थ से होता है और न ही लक्ष्यार्थ से , अपितु कथन के सन्दर्भ के अनुसार अलग अलग अर्थ से या व्यंग्यार्थ से हो , वहाँ व्यंजना शब्द - शक्ति होती है ।
जैसे –
प्रधानाचार्य जी ने कहा , साढ़े चार बज गये ।
व्यंजना शब्द शक्ति मुख्यतः दो प्रकार की होती है -
शाब्दी व्यंजना
आर्थी व्यंजना
शाब्दी व्यंजना
वाक्य में प्रयुक्त व्यंग्यार्थ जब किसी शब्द विशेष के प्रयोग पर ही निर्भर करता है अर्थात् उस शब्द के हटाने पर या उसके स्थान पर उसके किसी पर्यायवाची शब्द रखने पर व्यंजना नहीं रह पाती , वहाँ शाब्दी व्यंजना होती है । अतः शाब्दी व्यंजना केवल अनेकार्थ शब्दों में ही होती है
जैसे –
चिरजीवो जोरी जुरै , क्यों न सनेह गंभीर ।
को घटि , ये वृषभानुजा , वे हलधर के चीर ।।
यहाँ वृषभानुजा ' के दो अर्थ हैं गाय तथा राधा ; यही हलधर ' के भी दो अर्थ हैं बैल और बलराम ( कृष्ण के भाई ) । अतः शब्दों के दोनों अर्थों पर ध्यान जाने से ही छिपा अर्थ व्यंजित होता है ।
अन्य उदाहरण
पानी गये न ऊबरे , मोती मानुस , चून ।
आर्थी व्यंजना
जब व्यंजना किसी शब्द विशेष पर निर्भर न हो , अर्थात् उस शब्द का पर्याय रख देने पर भी बनी रहे , वहीं आर्थी व्यंजना होती है । आर्थी व्यंजना बोलने वाले , सुनने वाले , शब्द की सन्निवि , प्रकरण , देशकाल , कण्ठस्वर आदि का बोध कराती है ।
जैसे
सघन कुंज , छाया सुखद , सीतल मंद समीर ।
मन हुवै जात अजौ वहैं , या यमुना के तीर ।।
यहाँ कृष्ण के वियोग में राधा या गोपी के हृदय में कृष्ण के साथ यमुना तट पर बिताये गए दिनों , क्रीड़ा - विलास आदि के विषय में बताया गया है ।
अभिधा एवम् लक्षणा में अन्तर
अमिधा शब्द शक्ति में मुख्यार्थ से अभिप्रेत अर्थ का बोध होता है जबकि लक्षणा शब्द शक्ति में मुख्यार्थ के बाधित होने पर किसी रूढ़ि या प्रयोजन से लक्ष्यार्थ द्वारा अभिप्रेत अर्थ का बोध होता है ।
जैसे -
' गाय दूध देती है '
गाय ' शब्द में अभिधा शब्द शक्ति का बोध होता है जबकि
" उस बुढियाँ को मत सताओ , वह तो निरी गाय है । "
यहाँ ' निरीगाय ' में लक्षणा शब्द शक्ति प्रयुक्त हुई है ।
लक्षणा और व्यंजना शब्द शक्ति में अन्तर
लक्षणा शब्द शक्ति में मुख्यार्थ के बाधित होने पर किसी रूढ़ि या प्रयोजन के आधार पर लक्ष्यार्थ से अभिप्रेत अर्थ का बोध होता है जबकि व्यंजना शब्द शक्ति में न तो मुख्यार्थ से और न ही लक्ष्यार्थ से बल्कि कथन के सन्दर्भ के अनुसार अलग - अलग अर्थ या व्यंजित व्यंग्यार्थ से अभिप्रेत अर्थ का बोध होता है ।
जैसे –
लक्षणा शब्द शक्ति - मैंने उसे नाकों चने चबवा दिये ।
व्यंजना शब्द शक्ति - कार्य करती हुई गृहिणी ने कहा , " अरे ! सन्ध्या हो गई । "
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