पद्मावती समय Padmavati Samaya पद 31- 45 व्याख्या सहित

 पद्मावती समय 
Padmavati Samaya
भाग – 3 (पद 31- 45 व्याख्या सहित)

पद्मावती समय Padmavati Samaya

[ 31 ]

  • ज्यो रुकमिनि कन्हर वरिय , यों वरि संभर कान्त । 
  • सिव मंडप पच्छिम दिसा , पूजि समय सप्रान्त ।।

व्याख्या 

महाकवि चन्दबरदाई मनमोहक चित्रण करता हुआ कहता है कि पद्मावती पत्र में लिखती है ' जिस प्रकार श्रीकृष्ण ने रुकमणि का ( गौरी पूजन के अवसर पर ) वरण किया था , उसी प्रकार तुम भी नगर की पश्चिम दिशा में स्थित शिव के मन्दिर में प्रभात बेला में पूजा के समय मेरा हरण कर लेना । अर्थात मैं ( पद्मावती ) गौरी पूजा करने के लिए नगर की पश्चिम दिशा में स्थित शिव मन्दिर में प्रातःकाल आऊंगी । अतः तुम समय पर आकर मेरा वरण करके अपने साथ ले जाना । इस प्रकार पद्मावती अपने सात्विक प्रेम की सार्थकता के लिए पत्र द्वारा पृथ्वीराज चौहान को संदेश भेजती है ताकि वह उसका वरण कर सके ।

[ 32 ] 

  • लै पत्री सुक याँ चल्यो , उड्यो गगन गहि बाव । 
  • जो दिल्ली प्रथिराजनर , अट्ट जाम में जाव ।। 

व्याख्या 

महाकवि चन्दबरदाई मनमोहक चित्रण करता हुआ कहता है कि वह शुक पद्मावती का संदेश पत्र लेकर ऊपर आकाश और हवा का रुख लेकर तेजी से उड़ने लगा । वह तेजी से उड़ता हुआ आठ पहर अर्थात् एक दिन तथा एक रात में उस दिल्ली नगर में जा पहुंचा , जहाँ मनुष्यों में श्रेष्ठ पृथ्वीराज राज्य करते थे । इस प्रकार तोता स्वामी भक्ति का पालन कर अपने कर्तव्य का पालन करता है । 

[ 33 ] 

  • दिय कग्गर नपराज कर , बुलि बंचिय प्रथिराज । 
  • सुक देखत मन में हंसे , कियो चलन को साज ।। 

व्याख्या

महाकवि चन्दबरदाई मनमोहक चित्रण करता हुआ कहता है कि तोता शीघ्रता से दिल्ली पहुँच गया और उसने पदमावती का दिया संदेश पत्र महाराज पृथ्वीराज के हाथों में पकड़ा दिया । पृथ्वीराज ने उस पत्र को खोलकर पढ़ा । यह देखकर तोता मन ही मन हंसा । अर्थात् तोता यह जानकर आनन्दित हो गया कि पृथ्वीराज ने पत्र को पढ़कर समुद्र शिखर जाने का निर्णय लिया । इस प्रकार महाराज समुद्र शिखर जाने की तैयारियां करने लगे । 

[ 34 ] 

  • उह धरी उहि पलन , उह दिन बेर है सजि । 
  • सकल सूर सामन्त , लिए सब बोलि बम्ब बजि ।। 
  • अरु कवि चन्द अनूप , रूप सरर्स बार कह बहु । 
  • और सैन सब पच्छ , सहस सेना तिय सम्बतु ।। 
  • चामण्डराय दिल्ली धरह , गढ़पति कटि गढ़ मार दिय । 
  • अलगार राज प्रविराज तब , पूरब विसि तन गमन किया ।। 

व्याख्या 

महाकवि चन्दबरदाई मनमोहक चित्रण करता हुआ कहता है कि राजा पृथ्वीराज ने उसी घड़ी ,उसी पल , उसी दिन और उसी समय शंख अथवा नगाड़े ( भेरी बजाकर ) अपने सभी शूरवीर सामान्तों को बुलवा लिया । अर्थात पृथ्वीराज ने तनिक भी देर नहीं की और अपने श्रेष्ठ योद्धाओं को साथ चलने के लिए इकट्ठा कर लिया । यही नहीं , राजा ने अपने अनुपम कवि चन्दबरदाई को भी साथ बुला लिया । चन्दबरदाई ने आते ही अनेक प्रकार के बल अर्थात् पृथ्वीराज के सुन्दर एवं सरल ( आकर्षक ) रूप का वर्णन किया । पृथ्वीराज अपनी अन्य सेना को पीछे दिल्ली में छोड़कर केवल तीन हजार सैनिकों को ही अपने साथ ले लिया । उन्होंने अपने प्रधान सेनापति चामुण्ड राय को दिल्ली का गढ़पति बनाकर वहां की सारी जिम्मेदारी उसी को सौंप दी । पृथ्वीराज ने यह सारी व्यवस्था गुप्त रूप से की और गुप्त रूप से ही उसने प्रस्थान किया । इस प्रकार पृथ्वीराज ने अपनी सैन्य कुशलता को बड़े सुनियोजित ढंग से कार्यान्वित किया । 

[ 35 ]

  • जा दिन सिषर बरात गय , ता दिन गय प्रथिराज ।
  • ताही दिन पतिसाह की , मई गजने अबाज ।। 

व्याख्या

महाकवि चन्दवरदाई मनमोहक चित्रण करता हुआ कहता है कि जिस दिन राजा कुमोदमणि की बारात समुद शिखर में पहुंची , उसी दिन पृथ्वीराज चौहान भी ( अपने सनिकों के साथ ) पहुंच गया , लेकिन ( दुर्भाग्य से ) उसी दिन गजनी के बादशाह शहाबुद्दीन गौरी को भी यह सूचना मिल गई थी कि पृथ्वीराज चौहान समुद्र शिखर में पद्मावती से विवाह करने के लिए गया हुआ है । 

[ 36 ]

  • सुनि गज्जन आवाज , चली साहाबदीन वर । 
  • धुरासान सुलतान कास कबिलय मीर धर ।। 
  • जंग जुटन जालिम जुझार , भुजसार भार भु । 
  • घर धर्मकि भजि सेस . गगन रवि लुणि रैन हुआ । 
  • उलटि प्रवाह मान सिन्धु सर , रुविक राह अड्डौ रहिय ।
  • तिहि घरी राज प्रथिराज सौ , चन्द बबन इजि विधि कहिय ।।

 व्याख्या 

महाकवि चन्दवरदाई मनमोहन चित्रण करता हुआ कहता है कि शहाबुद्दीन गौरी ने यह सूचना सुनी कि पृथ्वीराज थोड़ी सी सेना के लेकर समुद शिखर की ओर गया है । अतः शहाबुद्दीन ने तत्काल धावा बोल दिया । उसकी विशाल सेना में खुरासान का सुलतान काशकंद तथा काबुल के वीर और प्रमुख सरदार थे । युद्ध में लड़ने के लिए ये बड़े क्रूर , भयंकर लड़ाकू और बड़े विकट भट्ट थे । उसकी भुजाए लोहे के समान मजबूत तथा कठोर थीं , मानो वे पृथ्वी के भार को धारण करने में समर्थ थे , अथवा मानो उनकी भुजाएं इतनी भारी थी कि उनके बोझ से पृथ्वी भी धंस जाती थी । जब शहाबुद्दीन की इस भयंकर सेना ने प्रस्थान किया , तो उस भयंकर सेना के चलने से पृथ्वी डगमगाने लगी तथा पृथ्वी के डगमगाने से शेषनाग भाग खड़ा हुआ । उस विशाल सेना से इतनी धूल उड़ी कि उससे सूर्य भी छिप गया और दिन में ही रात हो गई । शहाबुद्दीन की विशाल सेना इस तरह उमड़ती हुई आई कि वह पृथ्वीराज का रास्ता रोक कर खड़ी हो गई । ऐसा लगा मानो नदी का प्रवाह उल्टकर समुद्र की तरफ न जाकर पीछे की ओर जा रहा था अथवा मानो समुद्र ने नदी के प्रवाह को रोकर उसे पीछे धकेल दिया हो । ( यहां कवि ने शहाबुद्दीन गौरी की विशाल सेना और उसकी तीव्रता का वर्णन करना चाहा है । ) इसलिए कवि ने नदी तथा समुद्र का उदाहरण दिया है । जब समुद्र नदी के जल प्रवाह को रोक देता है और नदी का पानी पीछे लौटने लगता है उस समय पानी की ऊंची ऊंची लहरें उठती हैं , बल्कि सागर और नदी के पानी में टकराव होने लगता है । ऐसी स्थिति में न केवल उथल - पुथल होती है , बल्कि शोर भी होता है । लगभग यही स्थिति बादशाह की सेना की थी । अर्थात् बादशाह की सेना नदी के जल के समान आगे बढ़ रही थी लेकिन पृथ्वीराज की थोडी सेना ने समुद्र के समान उसकी गति को रोक लिया । इसका एक अन्य अर्थ यह भी हो सकता है कि शहाबुद्दीन की सेना विशाल समुद्र के समान थी और उसने पृथ्वीराज के मार्ग को रोक लिया , लेकिन ये अर्थ तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता , क्योंकि पृथ्वीराज तो अपनी सेना के साथ पहले ही समुद्र शिखर पहुंच चुका था और शहाबुद्दीन वहां बाद में पहुंचा । शहाबुद्दीन गौरी की सेना द्वारा रास्ता रोकने का समाचार सुनकर कवि चन्दबरदाई पृथ्वीराज से इस प्रकार कहने लगा । 

[ 37 ]

  • निकट नगर जब जान , जाय बर बिंब उघय भय । 
  • समुद सियर धन नह इन्च हुं चोर गय ।।
  • अगिवानिय - अगिवान , कुंअर बनि - पनि हय सज्जति । 
  • दिवान को त्रिय सवानि , पढ़ि गौष छाजन रज्जति ।। 
  • विलपि अवास कुंवरि बदन , मनो राहु छाया सूरत । 
  • अंपति गववि पल - पल पलकि , विषिति पंथ दिल्लीस पति ।। 

व्याख्या

महाकवि चन्दबरदाई मनमोहक चित्रण करता हुआ कहता है कि जब राजा कुमोदमणि अपनी श्रेष्ठ बारात के साथ समुद्र शिखर नगर के करीब पहुंच गया तब वहां नगर में घनघोर नगाड़े बजने लगे । एक ओर तो कुमोदमणि की सेना नगाड़े बजाकर अपने पहुंचने की सूचना दे रही थी , दूसरी ओर राजा विजय नगाड़े बजाकर कुमोदमणि का स्वागत करने लगा । इसलिए दोनों के नगाड़े बजाने से भयंकर शब्द उत्पन्न होने लगा । बारात की अगवानी के लिए अर्थात स्वागत करने के लिए राजकुमार खूब सज - धज कर अपने - अपने घोड़ों पर सवार होकर नगर के बाहर निकले । दूल्हा राजा कुमोदमणि और उसकी श्रेष्ठ बारात को देखने के लिए सब स्त्रियां , गवाक्ष और छज्जों पर बैठकर सुशोभित होने लगी , परन्तु राजकुमारी कुमोदमणि के आने के समाचार को सुनकर अपने महल में रोने लगी । मानो चन्द्रमा पर राहु की छाया पड़ गई हो , अर्थात् राहु ने चन्द्रमा को पूरी तरह से ग्रस लिया हो । वह गवाक्ष में बैठी बार - बार अपनी पलकें उठाकर देखती हुई दिल्ली से आने वाले मार्ग पर निगाहें लगाकर दिल्ली नरेश पृथ्वीराज के आगमन की प्रतीक्षा कर रही थी । अर्थात पद्मावती यह जानकर अत्यधिक दुःखी होकर बिलखने लगी कि कुमोदमणि बारात के साथ समुद्र शिखर आ पहुंचा है । इसी दुःख के कारण उसका मुख ऐसे मुरझा गया जैसे राहु के ग्रसने पर चन्द्रमा कांतिहीन हो जाता है , अतः वह खिड़की में बैठी उसी रास्ते पर देख रही थी जिस रास्ते से दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान को आना था । इस प्रकार पद्मावती बड़ी उत्सुकता से पृथ्वीराज की प्रतीक्षा करने लगी ।

 

[ 38 ] 

  • पंथ दिल्ली विसांना सुष भयो सूक जब मिल्यो आन ।। 
  • सन्देश सुनह आनन्द मैना उमगिय बाल मनमध्य सैन ।। 

व्याख्या 

महाकवि चन्दबरदाई मनभावन चित्रण करता हुआ कहता है कि समुद्र शिखर की राजकुमारी पद्मावती दिल्ली की ओर से आने वाले रास्ते की ओर आंखे लगाकर देख रही थीं , परन्तु जब दिल्ली से लौटकर शुक उससे आकर मिला तो उसे अत्यधिक सुख हुआ , अर्थात् वह तोते को आया देखकर आनन्दित हो उठी । तोते के मुख से पृथ्वीराज का संदेश सुनकर उसके नेत्र आनन्द से भर गए । वह युवती राजकुमारी पद्मावती यह समाचार सुनकर इस प्रकार उमंगित हो गई जैसे कामदेव की सेना उमंगित हो जाती है । 

[ 39 ] 

  • तन चिकट चीर डार्यो उतार । 
  • मज्जन मयंक नवसत सिंगार ।। 
  • भूषन मंगाय नष सिष अनूप । 
  • सिज सेन मनो मनमथ्य भूप ।।

व्याख्या 

महाकवि चन्दबरदाई मनभावन चित्रण करता हुआ कहता है कि पृथ्वीराज के संदेश और उसके आने का समाचार सुनकर पद्मावती ने अपने सभी मैले वस्त्रों को उतार दिया । भाव यह है कि पद्मावती यह समाचार न मिलने से पूर्व अत्यधिक निराश थी , उसने मैले वस्त्र धारण कर रखे थे । फिर उसने स्नान किया और चन्द्रमा के समान सुन्दर मुख पर सोलह श्रृंगार किया । फिर उसने आभूषण मंगवाकर नख से शिख तक अपना अनुपम रूप धारण किया जिसे देखकर ऐसा लगता था मानो कामदेव ने किसी पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना को सजाया है । काव्य शास्त्रीय शब्दावली में सोलह संगार से सुसज्जित सुन्दर नारी के अंगों को कामदेव की सेना कहा गया है । नारी उसी श्रंगार के द्वारा ही पुरुषों पर विजय प्राप्त कर लेती है । इस प्रकार पद्मावती का रूप - सौन्दर्य कामदेव के समान आकर्षित करता है । 

विशेष : पद्धरि छन्द का सुन्दर प्रयोग है । 

[ 40 ] 

  • सोबन्न बार मोतिन भराय । 
  • सल हल करन्त बीपक जराय ।।
  • संग्रह सपिय लिय सहस बाल । 
  • एकमनिय जेम लज्जत , मराल ।। 

व्याख्या

महाकवि चन्दबरदाई मनभावन चित्रण करता हुआ कहता है कि पद्मावती ने सोने के थाल को मोतियों से भर लिया और उसमें झिलमिलाते हुआ दीपक जलाकर रख लिया । कहने का भाव यह है कि पदमावती ने शिव मन्दिर जाने की तैयारी आरम्भ कर दी । उसने सोने का थाल मोतियों से भर दिया । उसके जगमगाते हुए दीपक प्रकाश फैला रहे थे । इसके पश्चात् उस बाला अर्थात् पद्मावती ने अपने साथ एक हजार सखियों को ले लिया । जैसे रुकमणि श्रीकृष्ण से मिलने शिव मन्दिर गई थी । उसी प्रकार पदमावती हंस की गति को भी लज्जित करते हुए मन्दगति से मन्दिर की ओर चलने लगी । इस प्रकार पद्मावती की चाल अत्यन्त आकर्षक है । 

विशेष : पद्धरि छन्द का सुन्दर प्रयोग है ।

[ 41 ]

  • पूजिय गवहि संकट मनाय । 
  • दचिन अंग कर लगिय पाय ।। 
  • फिर देषि देवि प्रथराज राज । 
  • हंस मुख मुख कर पट्ट लाज ।। 

व्याख्या

महाकवि चन्दबरदाई मनभावन चित्रण करता हुआ कहता है कि पद्मावती ने अपने मन से मनौती मांगते हुए उमाशंकर की पूजा की । फिर दाहिनी ओर से उनकी प्रदक्षिणा करते हुए उनके चरणों का स्पर्श किया अर्थात् चरण छूकर उसने शिव - पार्वती को प्रणाम किया । इसके पश्चात् बार - बार पृथ्वीराज की ओर देखती हुई घूंघट से हल्का - सा मुख ढककर अर्थात् लाज करके मंद - मंद मुस्कुराने लगी । अर्थात् पृथ्वीराज को देखकर पद्मावती का मन आनन्दित हो गया । 

[ 42 ] 

  • कर पकरि पीठ हय परि चढ़ाय । 
  • चल्यौ म पति दिल्ली सुराय ।। 
  • गई पबरि नगर बाहिर सुनाय । 
  • पदमावतीय हरि लीय जाय ।। 

व्याख्या

महाकवि चन्दबरदाई मनभावन चित्रण करता हुआ कहता है कि जब पृथ्वीराज ने पद्मावती को अपनी तरफ मन्द - मन्द मुस्कुराते हुए देखा तो उसने पद्मावती का हाथ पकड़ कर उसे अपने घोड़े पर चढा लिया । राजा पृथ्वीराज उसे अपने साथ लेकर दिल्ली के सुन्दर मार्ग की ओर चल दिया । तत्काल ही ( पद्मावती हरण ) की यह खबर समुद्र शिखर के भीतर और बाहर फैल गई कि कोई राजा पद्मावती का हरण किए उसे साथ लिए जा रहा है । 

[ 43 ]

  • बाजी सुबहय गय पलांन ।
  • दौरे सुसज्जित दिस्सह दिसान ।। 
  • तुम्ह लेहु लेहु मुष संपि जोध । 
  • हन्नाह सूर सब पहरि क्रोध ।। 

व्याख्या 

महाकवि चन्दबरदाई मनभावन चित्रण करता हुआ कहता है कि युद्ध के नगाड़े बजने लगे तथा हाथी और घोड़ों की होर्दै तथा जीने कसी जाने लगी । सभी दिशाओं से सैनिक सुसज्जित होकर दौड़ने लगे । भाव यह है कि पृथ्वीराज से युद्ध करने की तैयारी होने लगी । शूरवीर योद्धाओं ने जिरह बखतर धारण कर लिए और वे क्रोधित मुख से पकड़ो पकड़ो ' कहते हुए दौड़ने लगे । इस प्रकार पृथ्वीराज को पकड़ने के लिए सभी सनिकों में हलचल प्रारम्भ हो गई । 

[ 44 ] 

  • अग्गे जु राज प्रधिराज भूप । 
  • पच्छ सु भयो बस सेन सप ।। 
  • पहुंचे सु जाय तसे तुरंग । 
  • भुमिरन भूप जुरि जोध जंग ।। 

व्याख्या 

महाकवि चन्दबरदाई मनभावन चित्रण करता हुआ कहता है कि महाराज पृथ्वीराज पद्मावती को अपने साथ घोड़े पर लिए आगे - आगे चले जा रहे थे । समूदशिखर के राजा विजय और कुमोदमणि की सारी सेना उसका पीछा कर रही थी । शीघ्र ही दोनों की सेना के तेज दौड़ने वाले घोड़े पृथ्वीराज के समीप जा पहुंचे । फलस्वरूप उस स्थान पर दोनों सेनाओं का भयंकर युद्ध छिड़ गया । अर्थात् राजा विजय और राजा कुमोदमणि की सेना के योद्धा इकट्ठे होकर पृथ्वीराज के सैनिकों से भिड़ गये और दोनों पक्षों में युद्ध होने लगा । 

[ 45 ] 

  • उलटी जुराज प्रधिराज बाग । 
  • थकि सूर गगन घर पसि नाग ।। 
  • सामन्त सूर सब काल रूप । 
  • गहि लोह छोह बाह सुभूप ।। 

 व्याख्या 

महाकवि चन्दबरदाई मनभावन चित्रण करता हुआ कहता है कि जैसे ही पृथ्वीराज ने अपने घोड़े की लगाम को मोडा अर्थात् घोड़े की लगाम खींच कर आगे बढ़ने की बजाय पीछे मुडा , वैसे ही मानो सूर्य आसमान में थककर रुक गया । डर के मारे पृथ्वी धंसने लगी और शेषनाग बेचैन हो गये । कवि के कहने का भाव है कि भयंकर युद्ध होने की आशंका के कारण सूर्य मानो आकाश में थम - सा गया । पृथ्वी को धारण करने वाला शेषनाग व्याकुल हो गया और पृथ्वी डगमगाने लगी । पृथ्वीराज के सभी सामंत और शूरवीर सैनिक काल जैसा भयंकर रूप धारण करके शत्रु का सामना करने लगे । श्रेष्ठ राजा पृथ्वीराज लोहे की तलवार हाथ में लेकर शत्रुओं पर वार करने लगे ।

ये भी देखें

चन्दवरदायी

पद्मावती समय : कथानक

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