हिन्दी निबन्ध साहित्य एवं निबन्धकार Hindi essay and writer

हिन्दी निबन्ध साहित्य एवं निबन्धकार Hindi essay and writer

भारतेन्दु हरिश्चंद्र ' के आने से हिन्दी साहित्य को नयी दिशा मिली इन्होंने कई विधाएँ हिन्दी साहित्य को दी उनमें से एक निबंध है । भारतेन्दु युग सामाजिक और राजनीतिक हलचल का युग था । लेखकों ने समाज सुधार की भावना से प्रेरित होकर साहित्यिक लेख , और प्रभावोत्पादक शैली का प्रयोग कर निबंध रचना की जो काल के अनुरूप और आवश्यक थी ।

Hindi essay


हिन्दी निबन्ध साहित्य

 " निबन्ध ' गद्य साहित्य की एक विशेष विधा है । हिन्दी में निबन्ध का समुचित सुत्रपात राष्ट्रीय जागरण के  भारतेन्दु काल में हुआ । इसके कारण स्पष्ट है- एक तो अब गद्य का विकास हो चुका था और दूसरे मुद्रणतंत्र तथा समाचार पत्रों के प्रचलन ने साहित्य के इस अंग को प्रोत्साहन दिया । इसके अतिरिक्त भारतेन्दु युग के साहित्यकार पर विविधमुखी दायित्व था ; जिसकी पूर्ति गद्य साहित्य के अन्य अंगों की अपेक्षा निबन्ध के द्वारा सहज तथा सबल रुपमें हो सकती थी । भारतेन्दु पूर्व काल में उस सामाजिक और राजनीतिक चेतना का भी उन्मेश नहीं हुआ था , जिसने आधुनिक युग के निबन्धों में प्राण फूके ।

भारतेन्दु युग से लेकर अब तक के निबन्ध साहित्य को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है

  • भारतेन्दु युग ( 1857-1900 ) 
  • द्विवेदी युग ( 1900-1920 ) 
  • शुक्ल युग ( 1920-1940 ) 
  • शुक्लोत्तर युग ( 1940 - अबतक )


भारतेन्दु युग

भारतेन्दु युग के साहित्यकार पर निश्चित रुप से विविधमुखी दायित्व था । जहाँ एक ओर उसे सामाजिक सुधार करना था ; वहीं दूसरी ओर सांस्कृतिक चेतना का समुचित विकास करना भी उसे अभिष्ट था । एक ओर उसे शिक्षा का अधिकाधिक प्रसार करना था , तो दूसरी ओर उसे साहित्य के विविध अंगो को पुष्ट करना वांछनीय था । इन सम्पूर्ण दायित्य की पूर्ति करने के लिए जितना निबन्ध उपयोगी हो सकता है ; उतनी साहित्य की दूसरी विधा नहीं । प्रायः इस युग के साहित्यकार , सम्पादक और लेखक भी है । इन्होंने अपनी पत्र - पत्रिकाओं में सामाजिक विषयों ; ' सामायिक आन्दोलनों तथा दूसरे अनेक प्रकार के विषयों की चर्चा निबन्धों के रूप में की है । अत : इस युग के निबन्धों में जहाँ विषय व्यापकता है , वहाँ उनमें पत्रकारिता के भी सभी गुण है । उनके निबन्धों की समस्याएँ जनता की समस्याएँ थी ; अत : इस युग के निबन्ध साहित्य में तत्कालीन युग की समय चेतना सम्यक् रूप से प्रतिविम्बित हुयी है । गद्य के किसी सर्व - स्वीकृत रूप के अभाव में भाषा और शैली में एकरूपता का आना इस युग के निबन्धों में कठिन था ; अत : इस क्षेत्र में वैयक्तिक प्रयोग ही चलते रहे । इस युग में निबन्ध खूब लिखे गये और सम्भवत : इस युग के गद्य - साहित्य का सबसे उन्नत अंग निबन्ध ही है ।

इस युग के प्रमुख निबन्धकार है- भारतेन्दु , बालकृष्ण भट्ट , प्रतापनारायन मित्र , बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन , ज्वालाप्रसाद , तोताराम , अम्बिकादत्त व्यास , और राधाचरण गोस्वामी प्रभूति आदि ।

 निबन्धकार 

 निबन्ध

 विशेष

 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ' काश्मिर - कुसुम ' , ' कालचक्र ' , ' बादशाह दर्पन '   ' वैद्यनाथधाम ' , ' हरिद्वार और सरयुपार की यात्रा '  ,' लेवी प्राणलेवी , स्वर्ग में विचार सभा का अधिवेशन ' , ' जाति विवेचनी सभा ' , पाँचवे पैगम्बर ' , " अंग्रेज स्त्रोत ' , कपकड स्तोत्र  हिन्दी के प्रथम निबन्धकार, इतिहास , धर्म , समाज , राजनीति , आलोचना , खोज - यात्रा , प्रकृति - वर्णन , आत्मचरित और व्यंग्य - विनोद आदि सभी विषयों पर इन्होंने निबंध लिखे।
 बालकृष्ण भट्ट ' साहित्य - सुमन ' , ' भट्ट निबन्धावली ' , ' भट्ट निबन्धमाला ' आदि उनके निबन्ध संग्रह प्रसिध्द है ।
इनके प्रमुख निबन्ध हैं - ' चारुचरित्र ' , चरित्र - पालन , प्रतिमा , ' आत्मनिर्भरता ' , ' आँसू ' , मुग्ध - माधुरी , ' हमारे मन की ' मधुप्रवृत्ति , ' कल्पना ' , माधुर्य , चलन , आशा , माता का स्नेह , ' चन्द्रोदय ' , शन्कराचार्य , ' नानक ' , ' इग्लिश पढे तो बाबू होय ' आदि ।
 इन्होंने साहित्यिक , नैतिक , मनोवैज्ञानिक , राजनीतिक , सामाजिक आदि अनेक विषयों पर सुन्दर निबन्ध लिखे । पाश्चत्य निबन्धकार ' एडिसन ' से अधिक प्रभावित थे ।  हिन्दी-प्रदीप के सम्पादक रहे।
  पं . प्रतापनारायन मिश्र निबंध सँग्रह- ' निबन्ध नवनीत ' ,  ' प्रताप पीयूष ' , ' प्रताप - समीक्षा , ' प्रतापनारायण ग्रन्थावली ।
इनके प्रसिध्द निबन्ध हैं- बात , वृध्द , धोखा , दान , आप , भी , होली , बेगार रिश्वत पुच्छ , मानस - रहस्य , जवानी की सैर , हमारा कर्तव्य , मनोयोग , शिवमूर्ति , बन्दरों की सभा , समझदार की मौत आदि ।
 बाह्मण ' के सम्पादक रहे।  इनके निबन्धों में मुहावरों का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में हुआ है । 
 बालमुकुन्द गुप्त                  शिवशम्भू के चिट्ठे इन्होंने ' बंगवासी ' , ' भारत - मित्र ' आदि का सम्पादन किया । इनके निबन्धों में विदेशी शासकों की नीति पर तीक्ष्ण व्यंग्य किया गया है । निबन्ध लेखन में इन्होंने अपना उपनाम ' शिवशम्भू रखा । 
 पं . बदरीनारायण चौधरी ' प्रेमघन ' प्रसिध्द निबन्ध है- ' बनारस का बुढवा मंगल ' , ' दिल्ली दरबार में मित्र - मंडली के यार, समय आदि । इनके निबन्ध इनके द्वारा सम्पादित दो पत्रिकाओं में- ' आनन्द - कादम्बिनी ' ( मासिक - पत्रिका ) और ' नागरी - नीरद ' ( साप्ताहिक ) प्रकाशित होते थे । इन्होंने विचारात्मक , आलोचनात्मक , भावात्मक तथा वर्णनात्मक निबन्ध लिखें ।  हिन्दी में विचारात्मक निबन्धों का श्रीगणेशः किया । 


 इनके अतिरिक्त राधाचरण गोस्वामी , ठाकुर जगमोहनसिंह , लाला श्रीनिवासदास , मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या , पं . आम्बिकादत्त व्यास , पं . महादेव दुबे , पं . मुरलीधर पाठक , पं . गणेशदत्त शर्मा , पं . भानुदत्त , पं . हरिश्चन्द्र उपाध्याय , बाबू काशिनाथ खत्री आदि ने भी इसमें योगदान दिया है ।

भारतेन्दु युग के निबन्ध प्राय . विभिन्न सामयिक समस्याओं से प्रेरित एवं आन्दोलित है । इस युग के निबन्धों में विषय क्षेत्र की व्यापकता और विविधता दृष्टिगोचर होती है । इनके निबन्धों में वैयक्तिकता के साथ - साथ सामाजिकता भी है । इनकी व्यंग्यात्मकता सोद्देश्य हैं और वह किसी न किसी सामाजिक या राजनीतिक विषमता पर गहरी चोट करती हैं । सरलता इन निबन्धों का नीज गुण है और इन निबन्धों में युग - चेतना प्रतिबिम्बित हुयी है । यद्यपि विकासक्रम की दृष्टि से यह युग हिन्दी निबन्ध का बाल्यकाल ही सिध्द होता हैं फिर भी यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि ये निबन्ध पर्याप्त रोचक एवं महत्वपूर्ण है ।

ये भी देखें

द्विवेदी युग

 हिन्दी निबन्ध का परिमार्जन इस युग की समस्त साहित्य चेतना महावीर प्रसाद द्विवेदी में समाहित है । द्विवेदी युग का प्रारम्भ महावीर प्रसादजी के ' सरस्वती ' ( 1903 ) पत्रिका के सम्पादन के साथ ही मान सकते हैं । सरस्वती में जाते ही इन्होंने सबसे पहला कार्य तत्कालीन लेखकों की भाषा को संस्कारित एवं परिमार्जित करने का किया । उन्होंने भाषा के व्याकरण सम्मत प्रयोग तथा हिन्दी में विरामचिन्हों के उपयोग पर अत्यधिक बल दिया । द्विवेदीजी के नैतिकता प्रिय होने के कारण उस युग में नैतिक निबन्ध अधिक लिखे गये । द्विवेदी युग के निबन्धों में गम्भीरता एवं शालीनता आने लगी ।  इससे द्विवेदीकालीन निबन्धों में बौध्दिकता अधिक आई और हार्दिकता की कमी रही और उनमें भारतेन्दुकालीन आत्मियता तथा जिन्दादिली न रही । द्विवेदी के अनुसार ज्ञानराशि का अर्जित भण्डार ही साहित्य है । अत : इस युग के निबन्धकार का ध्यान साहित्य को संचित ज्ञानकोष बनाने पर ही  गया । परिणामस्वरूप अन्य भाषाओं के निबन्धों के अनुवाद करने की परम्परा भी इस युग में चल निकली ।

इस युग के प्रमुख निबन्धकार हैं- महावीरप्रसाद द्विवेदी , बाबू श्यामसुन्दर दास , पदमसिंह शर्मा , मिश्रबन्धु , माधवप्रसाद मिश्र , चन्द्रधर शर्मा गुलेरी और सरदार पूर्णसिंह आदि।

 निबन्धकार 

 निबन्ध

 विशेष

 आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी प्रसिध्द निबन्ध - ' कवि और कविता ' , ' कवि - कर्तव्य ' , ' प्रतिभा ' , ' नाटक और उपन्यास ' , दण्डदेव का आत्मनिवेदन , ' कालिदास का भारत ' , गोपियों की भगवत् भक्ति और नल का दुस्तर दूत कार्य ' आदि । द्विवेदीजी का आदर्श ' बेकन ' था । बेकन की भाँति द्विवेदीजी भी निबन्धों में विचारों को प्रमुखता देते थे । उन्होंने बेकन के निबन्धों का ' बेकन विचार रत्नावली ' के नाम से अनुवाद भी किया । 
 माधवप्रसाद मिश्र प्रसिद्ध निबन्ध - राम - लीला , पर्व - त्यौहार , होली , श्रीपंचमी धृति , क्षमा , सत्य आदि । वैश्योपकारक ' के सम्पादक रहे। काशी से  ' सुदर्शन ' नामक पत्र निकाला। इनके निबन्ध ' माधवमिश्र निबन्धमाला ' में संग्रहीत है
 सरदार पूर्णसिंह प्रसिद्ध निबन्ध - आचरण की सभ्यता , सच्ची दीरता , मजदूरी और प्रेम , ब्रह्म - क्रान्ति , ' कन्यादान ' , ' पवित्रता ' आदि केवल आठ निबन्ध लिखे।
 डॉ . श्यामसुन्दरदास प्रसिध्द निबन्ध - भारतीय साहित्य की विशेषताएँ , समाज और साहित्य , हमारे साहित्योदय की प्राचीन कथा , कर्तव्य और सभ्यता आदि। इन्होंने साहित्यिक , सांस्कृतिक और भाषा - वैज्ञानिक विषयों पर निबन्ध लिखें । 
 पद्मसिंह शर्मा निबन्ध संग्रह- ' पद्म- पराग ' , और ' प्रबन्ध- मंजरी ' ।
 पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी प्रसिद्ध निबन्ध - मारेसि मोहि कुठाव ' , ' कछुआ धर्म ' और ' संगीत ' आदि ।


द्विवेदी युग के अन्य निबन्धकारों में गोविन्द नारायण मिश्र , जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी , गणेश शन्कर विद्यार्थी , किशोरीदास वाजपेयी , शिवपूजन सहाय आदि उल्लेखनिय है ।

 द्विवेदीकालीन निबन्धों में भारतेंदुकालीन निबन्धों की सी ताजगी , जिन्दादिली और व्यंग्य - विनोद प्रियता नहीं है , बल्कि विचारों की प्रधानता और गंभीरता है । भारतेन्दुकालीन निबन्धों में पर्याप्त मौलिकता है , किन्तु इनमें ज्ञान की संचयात्मकता है । वस्तुतः ये निबन्ध कम है और विचारों के संग्रह अधिक । गुलेरी और पूर्णसिंह को छोडकर द्विवेदी युग के निबन्धों में वैयक्तिकता का भी प्राय : अभाव है । इन निबन्धों का वृत्त भी सीमित है । इनमें भारतेन्दुकालीन निबन्धों के समान सामाजिक , राजनीतिक और धार्मिक चेतना का प्रतिबिम्ब नहीं है । उपदेशात्मकता इन निबन्धों की खास विशेषता है । इस युग के निबन्ध भाषा की दृष्टि से अधिक शुध्द और परिष्कृत है ।

शुक्ल युग

हिन्दी साहित्य में निबन्ध विकास की दृष्टि से शुक्ल युग उत्कर्षकाल है । विषय , शैली , स्वरुप , भाष , तथा भाषा के विचार से सर्वागिण विकास इस युग में हुआ । भारतेन्दु युगीन राजकिय कटुता , हिन्दी - उर्दू विवाद , आदि नष्ट होने से द्विवेदी युग में स्वाभाविक था कि निबन्धकारों का लक्ष्य विविध विषयों का बन सके  । विषय वैविध्य , की दृष्टि से शुक्ल युग में शैक्षणिक , साहित्यिक , राजनीतिक , सामाजिक , आर्थिक , तथा विविध और उपयोगी विषयों पर निबन्ध लिखे गये । इस युग में प्रायः विचारात्मक , आलोचनात्मक , भावात्मक , वर्णनात्मक तथा विवरणात्मक आदि सभी प्रकार के निबन्ध लिखे गये ।

 निबन्धकार 

 निबन्ध 

 विशेष 

 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल  निबन्ध संग्रह - ' चिन्तामणि
प्रसिद्ध निबन्ध - 'ईर्ष्या , श्रध्दा , लज्जा क्रोध , लोभ , प्रीति आदि ।
 इनके निबन्धों में चिन्तन की मौलिकता , विवेचन की गंभीरता , विश्लेषण की सुक्ष्मता एवं प्रौढता दृष्टिगोचर होती है।
 बाबू गुलाबराय निबन्ध संग्रह  - ' ठलुआ क्लब ' , ' मेरी असफलताएँ , फिर निराशा क्यों , ' प्रबन्ध - प्रभाकर ' , ' मन की बाते ' , ' सिध्दान्त और अध्ययन ' , ' काव्य के रुप ' , " हिन्दी - काव्य विमर्श ' , ' साहित्यसमीक्षा ' , ' कुछ उथले , कुछ गहरें , ' मेरे निबन्ध ' , ' अध्ययन और आस्वाद ' , आदि । इनके निबन्धों को मुख्यतः चार वर्गों में विभक्त किया गया है। दार्शनिक - विचारात्मक , साहित्यिक- आलोचनात्मक , आत्म - संस्मरणात्मक , हास्य विनोदात्मक ।
 पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी प्रसिद्ध निबन्ध -
विचारात्मक- मेरा जीवन क्रम , विज्ञान , समाजसेवा , नामश्रेष्ठ आदि ।
आलोचनात्मक- विश्वसाहित्य , हिन्दी साहित्य- विमर्श में संग्रहीत निबन्ध आदि।
भावात्मक- रामलाल पंडित , कुन्जबिहारी , प्रतिरमृति , उत्सव , श्रध्दांजली के दो फूल , आदि ।
विवरणात्मक - चर्चा , एक पुरानी कथा , अन्दर की शिक्षा आदि ।
 निबन्ध संग्रह -  ' पंचमात्र ' , ' विश्वसाहित्य ' ' मकरन्द बिन्दु , प्रबन्ध - पारिजात , हिन्दी साहित्य विमर्श , ' त्रिवेणी , कुछ और कुछ बख्शीजी के निबन्ध , यात्री आदि ।
 डॉ . ओन्कारनाथ शर्मा ने इनके निबन्धों को चार वर्गों में विभाजित किया है - विचारात्मक,आलोचनात्मक,भावात्मक, विवरणात्मक ।


इस युग के अन्य निबन्धकारों में सीयारामशरण गुप्त , मारवनलाल चतुर्वेदी , वियोगी हरी , राम कृष्णदास , वासुदेवशरण आग्रवाल , और शान्तिप्रिय द्विवेदी आदि का नाम उल्लेखनिय है ।
 शुक्ल युग के निबन्धों के सम्बन्ध में निष्कर्ष रुप में कहा जा सकता है कि इनमें विषय - वैविध्य है , गंभीरता और सूक्ष्मता है । भाषा । | प्रौढता , सरलता , शैली की विशिष्टता और वैयक्तिकता की दृष्टि से इस युग के निबन्ध द्विवेदी युग के निबन्धों से उन्नत हैं ।

शुक्लोत्तर युग

 इस युग के प्रमुख निबन्धकार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी , आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी , डा . नगेन्द्र , डा . रामविलास शर्मा , जैनेन्द्र , अज्ञेय , इलाचन्द्र जोशी , शिवदानसिंह चौव्हाण , प्रभाकर माचवे , धर्मवीर भारती , डा . देवराज और नलिन विलोचन शर्मा आदि विशेष रुप से उल्लेखनिय हैं । ये विचार और शैली की दृष्टि से शुक्ल से भिन्न हैं , पर इन्हें जीवन के बारे में जो कुछ कहना है , शुक्ल के समान साहित्य के माध्यम कहते हैं । साहित्य आलोचनात्मक निबन्ध लेखकों में पन्त , प्रसाद , निराला और महादेवी वर्मा तथा शियारामशरण गुप्त के नाम उल्लेखनीय है । इस युग के वर्णनात्मक एवं यात्रा सम्बन्धी निबन्ध लेखकों में सत्यदेव , राहुल सांकृत्यायन और देवेन्द्र सत्यर्षि के नाम विशेष उल्लेखनीय है । इनके अतिरिक्त सद्गुरुशरण अवस्थी , भगवतीचरण वर्मा , भदन्त अनन्त कौशल्यायन , और नरहरि विष्णू गाडगील आदि ने भी हिन्दी निबन्ध क्षेत्र में सुन्दर और सफल प्रयोग किये हैं ।

 निबन्धकार 

 निबन्ध

 विशेष 

 आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी निबन्ध संग्रह - आशोक के फूल , कल्पलता , विचार और वितर्क , विचार - प्रवाह , हमारी साहित्यिक समस्याएँ , गतिशील चिन्तन , कुटज , साहित्य का मर्म आदि ।
 आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयीजयशंकर प्रसाद,आधुनिक साहित्य,हिंदी साहित्य : बीसवीं शताब्दी,नया साहित्य : नए प्रश्न,साहित्य : एक अनुशीलन,प्रेमचंद :एक साहित्यिक विवेचन,प्रकीर्णिका,महाकवि सूरदास,महाकवि निराला
 शांतिप्रिय द्विवेदी निबन्ध संग्रह - जीवन यात्रा , साहित्यिकी , हमारे साहित्य निर्माता , कवि और काव्य संचारिणी , युग और साहित्य , धरातल ' आदि । आत्मानुभूतिपरक वैयक्तिक निबन्ध
 डा . नगेन्द्र प्रसिध्द निबन्ध - सँग्रह - " विचार और अनुभूति ' , ' विचार और विवेचन ' , ' विचार और विश्लेषण ' , ' कामायनी के अध्ययन की समस्याएँ ' आदि ।
 जैनेन्द्रकुमार निबन्ध संग्रह - जैनेन्द्र के विचार , जड़ की बात , पूर्वोदय , साहित्य का श्रेय और प्रेय , प्रस्तुत प्रश्न , सोच - विचार , मंथन आदि हैं ।
 डा . रामविलास शर्मानिबन्ध संग्रह - ' संस्कृति और साहित्य ' , ' प्रगति और परम्परा , ' ' प्रगतिशील साहित्य की समस्याएँ ' , ' स्वाधीनता और राष्ट्रीय साहित्य आदि । प्रगतिवादी ( मार्क्सवादी ) निबन्धकार ।
 रामधारी सिंह ' दिनकर '  निबन्ध संग्रह - 'अर्धनारीश्वर’, ' हमारी सांस्कृतिक एकता ' , ' प्रसाद , पन्त और मैथिलीशरण ' , ' राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय साहित्य आदि ।
 डॉ . वासुदेवशरण अग्रवालनिबन्ध संग्रह - पृथिवीपुत्र , माताभूमि , तथा कला और संस्कृति आदि।भारतीय संस्कृति , इतिहास , कला तथा पुरातत्व आदि विषयों पर निबन्ध लिखे।
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकरनिबन्ध संग्रह - जिन्दगी मुस्करायी , बाजे पायलिया , घुंगरू, महके अंगन , चहके द्वार , माटी हो गयी सोना , दीप जले शंख बजे आदि । 
स.ही.वा.अज्ञेयनिबन्ध संग्रह  - त्रिशंकु , आलबाल , आयतन , जोग लिखी , धार और किनारे , केन्द्र और परिधि , भवन्ती , सर्जना और सन्दर्भ , स्मृतिलेखा आदि ।
 कुबेरनाथ रायनिबन्ध संग्रह - प्रिया निलकंठी , रस आखेटक , गंधमादन , विषाद योग , निषाद बाँसुरी , पर्ण मुकुट , महाकवि की तर्जनी , कामधेनु मन पवन की नौका , किरात नदी में चन्द्रमधु , दृष्टि अभिसार , मराल , उत्तर कुरु , वाणी का क्षीरसागर , अंधकार में अग्निशिखा । प्रसिध्द ललित निबंध - रस आखेटक , जम्बुक , देह वल्कल , विरुपाक्ष , किरण सप्तपदी , चित्र विचित्र , शरद बांसुरी और विपन्न मराल , येणु कीचक , दर्पण विश्वासी , सारंग तथा राघवः करुणो रस : आदि ।ललित निबंधकार
विद्यानिवास मिश्रनिबन्ध संग्रह - चित्तवन की छाँह , तुम चन्दन हम पानी , आंगन का पंछी और बनजारा मन , असत आ गया पर कोई उत्कंठा नहीं , मैंने सिल पहुँचाई आदि । 
आम्र मंजरी , धने नीम तरु तले , विंध्य की धरती का वरदान , हिमालय , कदम की फूली डार , शिरीष का आग्रह और मेरे राम का मुकुट भीग रहा है आदि इनके प्रसिध्द निबंध है ।
ठाकुरप्रसाद सिंहनिबन्ध संग्रह - 'पुराना घर नये लोग ' तथा ' मोर पंख 'अधिकतर निबंध संस्मरणात्मक और आत्मकथ्यपरक है ।
धर्मवीर भारतीनिबन्ध - ठेले पर हिमालय , पश्यन्ती , कहनी अनकहनी , कुछ चेहरे कुछ चिन्तन और शब्दिता ।
हरिशंकर परसाईनिबन्ध संग्रह हैं- पगइंडियों का जमाना , जैसे उनके दिन फिरे  , शिकायत मुझे भी है , ठिठुरता हुआ गणतंत्र , अपनी - अपनी बीमारी , वैष्णव की फिसलन , विकलांग श्रध्दा का दौर , भूत के पाँव पीछे , बेईमानी की परत , सुनो भाई साधौ , तुलसीदास चन्दन घिसे , कहत कबीर , हँसते हैं रोते हैं , तब की बात और थी , ऐसा भी सोचा जाता है , पाखण्ड का अध्यात्म और आवारा भीड के खतरेआधुनिक युग के हास्य और व्यंग्य के निबंध लेखकों में हरिशंकर परसाई प्रतिनिधि निबंधकार  ।
 श्रीलाल शुक्लनिबन्ध - अंगद का पांव , यहाँ से वहाँ , कुछ जमीन पर कुछ हवा में , आओ बैठ लें कुछ देर और अगली शताब्दी का शहर आदि ।
 शरद जोशीनिबन्ध संग्रह- जीप पर सवार झलियाँ , किसी बहाने , रहा किनारे बैठ , तिलस्म , दूसरी सतह , सभी साक्षी है आदि ।
शंकर पुणतांबेकरनिबन्ध - रेडीमेड कपडे , कैक्टस के काँटे , प्रेम विवाह , विजिट यमराज की , अंगूर खट्टे नहीं है , बदनामचा , गुलेल भाग -1-5, पतनजली , शतरंज के खिलाडी , मेरी फाँसी , गिद्ध मंडरा रहा है , तेरहवां डिनर , पराजय की जुबली आदि ।
रामदरश मिश्रकितने बजे हैं " , ' बबूल और कैक्टस ' , घर - परिवार मिश्रजी के तीन प्रसिध्द निबंध - संग्रह है ।
विवेकी रायनिबन्ध संग्रह - किसानों का देश , गाँवों की दुनिया , त्रिधारा , फिर बैतलवा डाल पर , जुलूस रुका है , गॅवई गंध गुलाब , नया गाँवनाम , आम रास्ता नहीं है , आस्था और चिन्तन , जगत तपोवन सौ कियौ और बन तुलसी की गंध आदि ।
विष्णुकांत शास्त्रीनिबंध संग्रह - ' कुछ चन्दन की , कुछ कपूर की ' , ' चिन्तन - मुद्रा ' और ' अनुचिन्तन ' ।
निर्मल वर्मानिबन्ध संग्रह - ढलान से उतरते हुए , तथा शताब्दी के ढलते वर्षों में आदि ।



अन्य प्रमुख निबंधकारों में नामवर सिंह , रमेशचन्द्र शाह , रविन्द्रनाथ त्यागी , गोपाल चतुर्वेदी , रविन्द्र कालिया , सुदर्शन मजाठिया , प्रभाकर श्रोत्रिय , कृष्णदत्त पालीवाल , श्रीराम परिहार तथा कृष्णबिहारी मिश्र आदि के नाम उल्लेखनिय है ।
हिन्दी गद्य साहित्य की यह विधा आज भी अपनी निर्बाध गति से वृद्धि कर रही है, तथा नये आयामों को छू रही है।

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