काव्य प्रयोजन
Kavya Prayojan
काव्य प्रयोजन का तात्पर्य है — ' काव्य रचना का उद्देश्य ' ।
काव्य किस उद्देश्य से लिखा जाता है और किस उद्देश्य से पढ़ा जाता है इसे दृष्टिगत रखकर काव्य प्रयोजनों पर कवि और पाठक की दृष्टि से विस्तृत विचार - विमर्श काव्यशास्त्र में किया गया है । काव्य प्रयोजन काव्य प्रेरणा से अलग है , क्योंकि काव्य प्रेरणा का अभिप्राय है काव्य की रचना के लिए प्रेरित करने वाले तत्व जबकि काव्य प्रयोजन का अभिप्राय है काव्य रचना के अनन्तर ( बाद में ) प्राप्त होने वाले लाभ ।
आचार्य मम्मट के काव्य प्रयोजन
आचार्य मम्मट ने अपने ग्रन्थ काव्यप्रकाश ' में काव्य प्रयोजनों पर विस्तृत चर्चा की है । उनके अनुसार
- काव्यं यशसेऽर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये ।
- सद्यः परिनिर्वृत्तये कान्तासम्मित तयोपदेशयुजे ।।
अर्थात् काव्य यश के लिए , अर्थ प्राप्ति के लिए , व्यवहार ज्ञान के लिए , अमंगल शान्ति के लिए , अलौकिक आनन्द की प्राप्ति के लिए और कान्ता के समान मधुर उपदेश प्राप्ति के लिए प्रयोजनीय होते हैं । मम्मट ने मूलतः छः काव्य प्रयोजन बताए हैं जो निम्नवत हैं
- यश प्राप्ति
- अर्थ प्राप्ति
- लोक व्यवहार ज्ञान
- अनिष्ट का निवारण या लोकमंगल
- आत्मशान्ति या आनन्दोपलब्धि
- कान्तासम्मित उपदेश ।
इनमें से काव्य की रचना करने वाले कवि के प्रयोजन हैं — यश प्राप्ति , अर्थ प्राप्ति , आत्मशान्ति तथा काव्य का अस्वादन करने वाले पाठक के काव्य प्रयोजन हैं — लोक व्यवहार ज्ञान , अमंगल की शान्ति , आनन्दोपलब्धि और कान्तासम्मित उपदेश । मम्मट के ये काव्य प्रयोजन अत्यन्त व्यापक हैं ।
हिन्दी आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य प्रयोजन
हिन्दी आचार्यों ने काव्य प्रयोजन पर जो विचार व्यक्त किए हैं वे प्रायः संस्कृत आचार्यों जैसे हैं । यहां हम कुछ प्रमुख उद्धरण प्रस्तुत कर रहे हैं
गोस्वामी तुलसीदास के काव्य प्रयोजन
रामचरित मानस में तुलसीदास ने दो स्थानों पर काव्य प्रयोजनों की चर्चा की है
- स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
- कीरति भनिति भूति भल सोई । सुरसरि सम सब कहँ हित होइ ।।
वे काव्य के दो प्रयोजन मानते हैं
- स्वान्तः सुख
- लोक मंगल ।
वही कविता श्रेष्ठ होती है जो गंगा के समान सबका हित करने वाली हो ।
मैथिलीशरण गुप्त का मत
गुप्तजी काव्य का प्रयोजन केवल मनोरंजन नहीं अपितु उपदेश स्वीकार करते हुए लिखते हैं
- " केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए ।
- उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए । "
इसी प्रकार वे ' कला , कला के लिए ' सिद्धान्त का भी खण्डन करते हुए कहते हैं कि कला लोकहित के लिए होनी चाहिए :
- " मानते हैं जो कला को बस कला के अर्थ ही ।
- स्वार्थिनी करते कला को व्यर्थ ही ॥ "
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का मत
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने काव्य प्रयोजनों पर विस्तार से विचार किया है । वे काव्य का प्रमुख प्रयोजन रसानुभूति मानते हैं ।
" कविता का अन्तिम लक्ष्य जगत में मार्मिक पक्षों का प्रत्यक्षी करण करके उसके साथ मनुष्य हृदय का सामंजस्य स्थापन है । " कविता से केवल मनोरंजन के उद्देश्य का विरोध करते हुए वे लिखते हैं " मन को अनुरंजित करना उसे सुख या आनन्द पहुंचाना ही यदि कविता का अन्तिम लक्ष्य माना जाए तो कविता भी विलास की एक सामग्री हुई ।.. .... काव्य का लक्ष्य है जगत और जीवन के मार्मिक पक्ष को गोचर रूप में लाकर सामने रखना । "
प्रेमचन्द के अनुसार
“ साहित्य का उद्देश्य हमारा मनोरंजन करना नहीं है । यह काम तो भाटों , मदारियों , विदूषकों और मसखरों का है । साहित्यकार का पद इनसे बहुत ऊंचा है । वह हमारे विवेक को जाग्रत करता है , हमारी आत्मा को तेजोद्दीप्त बनाता है । "
निष्कर्ष
काव्य प्रयोजन के सम्बन्ध में जो मत यहां व्यक्त किए गए हैं उनसे हम निम्न निष्कर्ष निकाल सकते हैं
- प्रत्येक व्यक्ति का काव्य प्रयोजन एक - सा नहीं होता ।
- आनन्द प्राप्ति काव्य का प्रमुख प्रयोजन है जिसे रसानुभूति से प्राप्त किया जाता है ।
- यश प्राप्ति , अर्थ प्राप्ति , व्यवहार ज्ञान , अमंगल का विनाश , लोकोपदेश भी काव्य प्रयोजन है ।
- काव्य प्रयोजन काव्य प्रेरणा से अलग है ।
निष्कर्ष रूप में आचार्य मम्मट द्वारा निर्दिष्ट काव्य प्रयोजन उचित , तर्कसंगत , व्यापक और व्यावहारिक है अतः लोकोत्तर आनन्द प्रदान करना , चेतना का परिष्कार करना और जीवन मूल्यों की स्थापना करना माना जा सकता है । रसानुभूति काव्य को ब्रह्मानन्द सहोदर बनाती है अतः वही काव्य का सकल मौलिभूत प्रयोजन है ।
उत्साहवर्धन के लिये धन्यवाद!
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