vinod kumar shukla


विनोद कुमार शुक्ल 
vinod kumar shukla 
(1 जनवरी 1937 – 23 दिसंबर 2025)

विनोद कुमार शुक्ल (1937–2025)


विनोद कुमार शुक्ल हिंदी भाषा के उन विरल रचनाकारों में हैं जिन्होंने सादगी, चुप्पी और सामान्य जीवन को साहित्य का केंद्र बनाया। वे कवि, कथाकार और उपन्यासकार—तीनों रूपों में समान रूप से प्रतिष्ठित रहे। उनकी रचनाएँ बिना शोर किए, बिना किसी वैचारिक घोषणा के, पाठक के मन में गहराई तक उतर जाती हैं।

वे उन लेखकों में गिने जाते हैं जिन्होंने साधारण मनुष्य, उसकी मौन पीड़ा, उसकी छोटी-छोटी अनुभूतियों और रोज़मर्रा के जीवन को साहित्य की गरिमा प्रदान की। उनका लेखन पढ़ते हुए ऐसा प्रतीत होता है मानो जीवन स्वयं बहुत शांत स्वर में बोल रहा हो।

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जीवन परिचय

विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को मध्यप्रदेश (वर्तमान छत्तीसगढ़) के राजनांदगाँव में हुआ। उनका बचपन एक साधारण मध्यवर्गीय परिवेश में बीता। प्रारंभ से ही उनका झुकाव साहित्य, आत्मचिंतन और संवेदनशील अनुभवों की ओर रहा।

उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने अध्यापन को अपना पेशा बनाया और लंबे समय तक शिक्षक रहे। शिक्षक जीवन से प्राप्त धैर्य, संयम और मानवीय दृष्टि उनकी रचनाओं में सहज रूप से उपस्थित है।

उन्होंने नई कविता आंदोलन के दौर में लेखन आरंभ किया, किंतु किसी भी साहित्यिक वाद या गुट से स्वयं को नहीं जोड़ा। उन्होंने अपनी एक स्वतंत्र, शांत और मौलिक रचनात्मक पहचान बनाई।

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साहित्यिक जीवन और विशेषताएँ

विनोद कुमार शुक्ल हिंदी कविता और कथा साहित्य में अपनी विशिष्ट भाषिक बनावट और गहरी संवेदनशीलता के लिए पहचाने जाते हैं। उनकी शैली परंपरागत ढाँचों को तोड़ती है, किंतु बिना किसी विद्रोही शोर के। इसे ‘जादुई यथार्थ’ के आसपास की एक मौन और आत्मीय शैली कहा जा सकता है।

उनका साहित्यिक संसार—

  • अत्यंत सरल और बोलचाल की भाषा
  • रोज़मर्रा के जीवन के दृश्य
  • शांत, करुण और मानवीय दृष्टि
  • प्रतीकों की सहज उपस्थिति
  • कथानक से अधिक अनुभूति पर बल

उनकी रचनाएँ पाठक को चौंकाती नहीं, बल्कि धीरे-धीरे भीतर बदल देती हैं।

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भाषा और शिल्प

विनोद कुमार शुक्ल का लेखन भाषा और शिल्प—दोनों स्तरों पर अद्वितीय है।

सरल वाक्य, गहरी अनुभूति

मैं अपने कमरे में बैठा हूँ

और बाहर पूरी दुनिया है।


मौन और चुप्पी का शिल्प

उनके यहाँ दुःख रोता नहीं, अकेलापन चिल्लाता नहीं। स्थिति बस रख दी जाती है—पाठक स्वयं उस चुप्पी को महसूस करता है।

प्रतीकात्मक साधारण वस्तुएँ

  • कमीज़ — नौकरीपेशा मध्यवर्ग की अस्मिता
  • कमरा — अकेलापन
  • खिड़की — बाहर की दुनिया से जुड़ने की आकांक्षा

उनके उपन्यासों में नायकत्व या खलनायकत्व नहीं, बल्कि जीवन की स्वीकृति है।

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प्रमुख कृतियाँ

कविता संग्रह

लगभग जय हिंद (1971)

वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह (1981)

सब कुछ होना बचा रहेगा (1992)

अतिरिक्त नहीं (2000)

कविता से लंबी कविता (2001)

आकाश धरती को खटखटाता है (2006)

पचास कविताएँ (2011)

कभी के बाद अभी (2012)

कवि ने कहा (चयन, 2012)

प्रतिनिधि कविताएँ (2013)


उपन्यास

नौकर की कमीज़ (1979)

खिलेगा तो देखेंगे (1996)

दीवार में एक खिड़की रहती थी (1997)

हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़ (2011)

यासि रासा त (2016)

एक चुप्पी जगह (2018)

कहानी संग्रह

पेड़ पर कमरा (1988)

महाविद्यालय (1996)

एक कहानी (2021)

घोड़ा और अन्य कहानियाँ (2021)


अनुवाद और वैश्विक उपस्थिति

उनकी रचनाओं का अंग्रेज़ी, फ्रेंच, इतालवी, स्वीडिश, जर्मन, अरबी सहित अनेक भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ।

The Servant’s Shirt, A Window Lived in the Wall, Once It Flowers जैसी कृतियाँ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहीं।

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सम्मान और पुरस्कार

साहित्य अकादमी पुरस्कार

रज़ा पुरस्कार

दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान

शिखर सम्मान

राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान

साहित्य अकादमी का सर्वोच्च सम्मान — महत्तर सदस्य (2021)

वर्ष 2024 का 59वाँ भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार (समग्र साहित्य के लिए)

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निष्कर्ष

विनोद कुमार शुक्ल हिंदी साहित्य के ऐसे रचनाकार हैं जिनका लेखन पाठक को थाम लेता है और जीवन की भागदौड़ में ठहरने का अवसर देता है।

23 दिसंबर 2025 को हिंदी साहित्य का यह मौन नक्षत्र मौन में विलीन हो गया। वे भौतिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, किंतु अपने साहित्यिक शरीर के माध्यम से सदैव हमारे साथ रहेंगे। हिंदी साहित्य में उनका शांत, करुण और मानवीय स्वर कभी समाप्त नहीं होगा।

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