हिन्दी साहित्य का इतिहास आधुनिक काल-प्रयोगवाद और नई कविता(History of Hindi literature, modern period-experimentalism and new poetry)

आधुनिक काल-प्रयोगवाद और नई कविता
modern period-experimentalism and new poetry


प्रयोगवाद और नई कविता

प्रयोगवाद और नई कविता

                        हिन्दी साहित्य में प्रयोगवाद प्रगतिवाद की प्रतिक्रिया स्वरूप आया। प्रगतिवाद मार्क्सवादी दर्शन से प्रभावित था। परन्तु दर्शन की कट्टरता- सामाजिक यथार्थवाद,वर्ग संघर्ष, प्रतिबद्धता और सामूहिकता के कारण साहित्य एकरस हो गया,वैयक्तिकता के लिये कोई स्थान शेष नही रहा।और न ही कला समस्या के लिए कोई सरोकार।प्रगतिवाद के इन्ही विचारात्मक दबावों के परिणामस्वरूप प्रयोगवाद का हिन्दी साहित्य में उदय हुआ।प्रयोगवादी कवि ने अपनी कविता में अपने व्यक्तिगत सुख-दुःख को, अपनी व्यक्तिगत संवेदनाओं को नए-नए माध्यमों से व्यक्त किया।प्रयोगवादियों ने भावुकता के स्थान पर बौद्धिकता को महत्व दिया।

हिन्दी कविता में प्रयोगवाद और नई कविता का जन्म व परिसीमा

                                                                                   हिन्दी काव्य में प्रयोगवाद का आरम्भ 1943 ई. में सचिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा संपादित तारसप्तक के प्रकाशन से माना जाता है। प्रयोगवाद का विकास ही कालांतर में नई कविता के रूप में हुआ। डॉ.शिवकुमार शर्मा के अनुसार- “ये दोनों एक ही धारा के विकास की दो अवस्थाएं हैं। 1943 से 1953ई. तक कि कविता में जो प्रयोग हुए, नई कविता उन्ही का परिणाम है।प्रयोगवाद उस काव्यधारा की आरम्भिक अवस्था है और नई कविता उसकी विकसित अवस्था।“ वास्तव में प्रयोगवाद और नई कविता में कोई सीमा रेखा नही खींची जा सकती।बहुत से कवि जो पहले प्रयोगवादी रहे परन्तु बाद में नई कविता के प्रमुख हस्ताक्षर बने। इस प्रकार ये दोनो एक ही काव्यधारा के विकास की दो अवस्थाएं हैं। 1943-1953 ई. तक कविता प्रयोगवाद एवं 1953 के बाद कि कविता को नई कविता की संज्ञा दी जा सकती है।

प्रमुख प्रयोगवादी और नई कविता के कवि 

                                           तारसप्तक का प्रकाशन अज्ञेय के सम्पादकत्व में 1943ई. में हुआ। इस संग्रह से प्रयोगवाद का आरम्भ माना जाता है। अब तक चार तारसप्तकों का प्रकाशन हो चुका है-

तार सप्तक(1943ई.) 

                      इसमें सात कवियों की रचनाएं संकलित हैं वो हैं-
 गजानन माधव मुक्तिबोध, नेमिचन्द्र जैन, भारतभूषण अग्रवाल, प्रभाकर माचवे, गिरिजाकुमार माथुर, रामविलास शर्मा एवं सचिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय।

दूसरा सप्तक(1951ई.) 

            दूसरा सप्तक में भवानी प्रसाद मिश्र, शकुन्तला माथुर, हरिनारायण व्यास, शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहता, रघुवीर सहाय एवं धर्मवीर भारती की रचनाएँ संकलित हैं।

 तीसरा सप्तक(1959)

         इसमें कुँवर नारायण, कीर्ति चौधरी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, मदन वात्स्यायन, प्रयाग नारायण त्रिपाठी, केदारनाथ सिंह और विजयदेवनरायण साही की रचनाएँ संकलित हैं।

चौथ सप्तक(1979)

       सात कवियों में अवधेश कुमार , राजकुमार कुंभज, स्वदेश भारती , नंदकिशोर आचार्य , सुमन राजे , श्रीराम वर्मा  तथा राजेंद्र किशोर आदि सम्मिलित हैं।

नई कविता के प्रमुख हस्ताक्षर

                               कुंवरनारायण, दुष्यंत कुमार,अजित कुमार,प्रभाकर माचवे,सर्वेश्वर दयाल सक्सेना,कीर्ति चौधरी,लक्ष्मीकांत वर्मा आदि हैं।

प्रयोगवाद और नई कविता के प्रमुख कवि एवं रचनाएं



सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" (7 मार्च, 1911 - 4 अप्रैल, 1987)

                कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और अध्यापक के रूप में जाना जाता है।

प्रमुख रचनाएं
कविता संग्रह

भग्नदूत 1933,
 चिन्ता 1942,
इत्यलम्1946,
हरी घास पर क्षण भर 1949,
 बावरा अहेरी 1954,
इन्द्रधनुष रौंदे हुये ये 1957,
अरी ओ करुणा प्रभामय 1959,
आँगन के पार द्वार 1961,
 कितनी नावों में कितनी बार (1967),
 क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1970),
 सागर मुद्रा (1970),
 पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1974),
महावृक्ष के नीचे (1977),
नदी की बाँक पर छाया (1981),
प्रिज़न डेज़ एण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में,1946)।

कहानियाँ

विपथगा 1937,
परम्परा 1944,
कोठरीकी बात 1945,
 शरणार्थी 1948,
जयदोल 1951


उपन्यास

शेखर एक जीवनी- प्रथम भाग(उत्थान)1941,
 द्वितीय भाग(संघर्ष)1944,
नदीके द्वीप 1951,
 अपने अपने अजनबी 1961

यात्रा वृतान्त

 अरे यायावर रहेगा याद? 1943,
एक बूँद सहसा उछली 1960

निबंध संग्रह 

सबरंग,
 त्रिशंकु,
आत्मनेपद,
आधुनिक साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य,
आलवाल

आलोचना

 त्रिशंकु 1945,
 आत्मनेपद 1960,
भवन्ती 1971,
 अद्यतन 1971 ई.

संस्मरण

स्मृति लेखा

नाटक 

उत्तरप्रियदर्शी


धर्मवीर भारती (25 दिसंबर 1926 - 4 सितंबर 1997)

                      आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। ये एक समय की प्रख्यात साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग के प्रधान संपादक भी थे।

प्रमुख रचनाएं
 कहानी संग्रह :

मुर्दों का गाँव,
स्वर्ग और पृथ्वी,
चाँद और टूटे हुए लोग,
बंद गली का आखिरी मकान,
साँस की कलम से,
समस्त कहानियाँ एक साथ

काव्य रचनाएं  

ठंडा लोहा,
सात गीत वर्ष,
कनुप्रिया,
सपना अभी भी,
आद्यन्त

उपन्यास

गुनाहों का देवता,
सूरज का सातवां घोड़ा,
ग्यारह सपनों का देश,
प्रारंभ व समापन

निबंध 

ठेले पर हिमालय,
पश्यंती

एकांकी व नाटक  

नदी प्यासी थी,
नीली झील,
आवाज़ का नीलाम आदि

पद्य नाटक 

 अंधा युग

आलोचना 

प्रगतिवाद : एक समीक्षा,
मानव मूल्य और साहित्य

 सर्वेश्वर दयाल सक्सेना (15 सितंबर 1927 - 23 सितंबर 1983)

                          हिन्दी कवि एवं साहित्यकार। जब इन्होंने दिनमान का कार्यभार संभाला तब समकालीन पत्रकारिता के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को समझा और सामाजिक चेतना जगाने में अपना अनुकरणीय योगदान दिया।

प्रमुख रचनाएं
काव्य –


तीसरा सप्तक – सं. अज्ञेय, 1959
काठ की घंटियां – 1959
बांस का पुल – 1963
एक सूनी नाव – 1966
गर्म हवाएं – 1966
कुआनो नदी – 1973
जंगल का दर्द – 1976
खूंटियों पर टंगे लोग – 1982
क्या कह कर पुकारूं – प्रेम कविताएं
कविताएं (1)
कविताएं (2)
कोई मेरे साथ चले
मेघ आये
काला कोयल

कथा-साहित्य


पागल कुत्तों का मसीहा (लघु उपन्यास) – 1977
सोया हुआ जल (लघु उपन्यास) – 1977
उड़े हुए रंग – (उपन्यास) यह उपन्यास सूने चौखटे नाम से 1974 में प्रकाशित हुआ था।
कच्ची सड़क – 1978
अंधेरे पर अंधेरा – 1980
अनेक कहानियों का भारतीय तथा यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद
सोवियत कथा संग्रह 1978 में सात महत्वपूर्ण कहानियों का रूसी अनुवाद।

नाटक

बकरी – 1974 (इसका लगभग सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद तथा मंचन)
लड़ाई – 1979
अब गरीबी हटाओ – 1981
कल भात आएगा तथा हवालात
रूपमती बाज बहादुर तथा होरी धूम मचोरी मंचन 1976

यात्रा संस्मरण

कुछ रंग कुछ गंध – 1971

बाल कविता

बतूता का जूता – 1971
महंगू की टाई – 1974

बाल नाटक

भों-भों खों-खों – 1975
लाख की नाक – 1979

कुँवर नारायण (19 सितम्बर 1927 — 15 नवम्बर 2017) 

            नई कविता आन्दोलन के सशक्त हस्ताक्षर कुँवर नारायण अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक (1959) के प्रमुख कवियों में रहे हैं। 2009 में उन्हें वर्ष 2005 के लिए भारत के साहित्य जगत के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

प्रमुख रचनाएं
 कविता संग्रह

चक्रव्यूह
तीसरा सप्तक
परिवेश : हम-तुम
अपने सामने
कोई दूसरा नहीं
इन दिनों
कविता के बहाने

खंड काव्य 

आत्मजयी
वाजश्रवा के बहाने

कहानी संग्रह 

आकारों के आसपास

समीक्षा 

आज और आज से पहले
मेरे साक्षात्कार
साहित्य के कुछ अन्तर्विषयक संदर्भ


 शमशेर बहादुर सिंह (13 जनवरी 1911- 12 मई 1993)

               आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के एक स्तंभ हैं। हिंदी कविता में अनूठे माँसल एंद्रीए बिंबों के रचयिता शमशेर आजीवन प्रगतिवादी विचारधारा से जुड़े रहे। तार सप्तक से शुरुआत कर चुका भी नहीं हूँ मैं के लिए साहित्य अकादमी सम्मान पाने वाले शमशेर ने कविता के अलावा डायरी लिखी और हिंदी उर्दू शब्दकोश का संपादन भी किया।

प्रमुख रचनाएं
 काविता-संग्रह

कुछ कविताएं 
कुछ और कविताएं
चुका भी नहीं हूं मैं
इतने पास अपने
उदिता - अभिव्यक्ति का संघर्ष
बात बोलेगी
काल तुझसे होड़ है मेरी

निबन्ध-संग्रह

दोआब

कहानी-संग्रह

प्लाट का मोर्चा

गिरिजा कुमार माथुर 


प्रमुख रचनाएं
काव्य संग्रह

मंजीर
'तार सप्तक' में संगृहीत कविताएँ
नाश और निर्माण
धूप के धान
शिलापंख चमकीले
जो बँध नहीं सका
भीतरी नदी की यात्रा
छाया छूना मत
साक्षी रहे वर्तमान
पृथ्वीकल्प
मैं वक्त के हूँ सामने
मुझे और अभी कहना है

आलोचना

नयी कविता : सीमाएँ और संभावनाएँ

भवानी प्रसाद मिश्र (29 मार्च 1914 - 20 फरवरी 1985) 

                       हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक थे। व  'दूसरा सप्तक' के प्रथम कवि हैं। गांधी-दर्शन का प्रभाव तथा उसकी झलक उनकी कविताओं में साफ़ देखी जा सकती है।

प्रमुख रचनाएं
कविता संग्रह

गीत फरोश, 
चकित है दुख,
गान्धी पंचशती,
बुनी हुई रस्सी,
खुशबू के शिलालेख,
त्रिकाल सन्ध्या,
व्यक्तिगत,
परिवर्तन जिए,
तुम आते हो,
इदम् न मम,
शरीर कविता: फसलें और फूल,
मानसरोवर दिन,
सम्प्रति,
अँधेरी कविताएँ,
तूस की आग,
कालजयी,
अनाम,
नीली रेखा तक
सन्नाटा

बाल कविताएँ

तुकों के खेल,

संस्मरण 

जिन्होंने मुझे रचा

निबन्ध संग्रह 

कुछ नीति कुछ राजनीति


 दुष्यंत कुमार (27 सितंबर 1931-30 दिसंबर 1975) 

                           एक हिन्दी कवि , कथाकार और ग़ज़लकार ।

प्रमुख रचनाएं
काव्य नाटक

 एक कंठ विषपायी

नाटक 

और मसीहा मर गया

काव्य संग्रह 

सूर्य का स्वागत,
आवाज़ों के घेरे,
जलते हुए वन का बसंत

उपन्यास 

छोटे-छोटे सवाल,
आँगन में एक वृक्ष,
दुहरी जिंदगी

लघुकथाएँ 

मन के कोण

ग़ज़ल संग्रह 

साये में धूप

प्रयोगवादी और नई कविता की प्रवृतियां


नवीनता

       नई कविता भाव, विषय, वस्तु, शिल्प सभी प्रकार से नयापन लिये हुए है। इसी कारण अज्ञेय इन कवियों को नई राहों का अन्वेषी कहते हैं।नए कवि नवीन मूल्यों की स्थापना को लेकर उत्साहित हैं और अतीत विस्मृत करना चाहते हैं-

आओ हम उस अतीत को भूलें 
और आज की अपनी रग-रग के अंतर को छूलें।।


बौध्दिकता

         परम्परागत कविता में जहाँ भावना की प्रधानता है, वहीं नई कविता में बौध्दिकता की। डॉ.भारती के शब्दों में “प्रयोगवादी कविता में भावना है, किन्तु हर भावना के सामने प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है।इसी प्रश्न चिन्ह को आप बौध्दिकता कह सकते हैं।“

मेरी विशाल बुद्धि
सूर्य चन्द्र तारों के
ताप वेग को नाप रही 
मेरी अतर्क्य शक्ति
जल-थल समीर क्योम
विद्युत को चांप रही।।
                  डॉ देवराज


अतिशय वैयक्तिकता

                नए कवियों ने अपने व्यक्तिगत जीवन के सुख-दुःख को काव्य का विषय बनाया है।

यथार्थवादिता

           नई कविता की विषयवस्तु, प्रतीक , उपमान, भाषा आदि यथार्थवाद पर आधारित है।

बन्द कमरे की गरमाई फिजा में
गठरी से गुड़ मुड़ मैं
दुबका रजाई में सुन रहा
खिड़की की संकरी दरारों से आती
नल पर झगड़ती औरतों की चखचख।।
                      शरद देवड़ा


प्रणयानुभूति

          प्रयोगवादी कवियों ने प्रणय भावना का निरूपण अकुण्ठ रूप में किया है। प्रेम को ये यौनाकर्षण ही मानते हैं, जो शरीर के स्तर पर जन्म लेता है।

  नंगी धूप चूमते पुष्ट वक्ष
दूधिया बांहे रसती केसर फूल
चौड़े कर्पूरी कूल्हों से दबती
सोफे की एक वर्गी चादर
रेशमी जांघो से उकसी
टांगो की चद्दर डाले।।
             श्याम परमार


शैलीगत विशेषताएं

            इनकी भाषा सरल व शैली अलंकार विहीन है।मुक्त छन्द का प्रयोग हुआ है।आम आदमी की भाषा में काव्य सृजन हुआ है।बनावटीपन का सर्वथा अभाव है। नए उपमान , नए प्रतीक , और नए बिम्बों के प्रति इनका विशेष मोह है।

देवता इन प्रतीकों के अब कर गए हैं कूच।
कभी वासन अधिक घिसने से मुल्लमा छूट जाता है।।
            अज्ञेय       



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