मीराँबाई की पदावली

मीराँबाई की पदावली 
पद 1-10

Mirabai Ki Padavali
सं. परशुराम चतुर्वेदी

Mirabai Ki Padavali

स्तुति वंदना

राग तिलंग 

  • मन थें परस हरि रे चरण ।। टेक ॥ 
  • सुभग सीतल कँवल कोमल , जगत ज्वाला हरण |
  • जिण चरण प्रहलाद परस्याँ , इन्द्र पदवी धरण । 
  • जिण चरण ध्रुव अटल करस्याँ , सरण असरण सरण । 
  • जिण चरण ब्रह्माण्ड भेट्याँ , नखसिखाँ सिरी धरण । 
  • जिण चरण कालियाँ नाथ्याँ , गोप - लीला करण । 
  • जिण चरण गोबरधन धार्यों , गरब मघवा हरण ।
  • दासि मीराँ लाल गिरधर , अगम तारण तरण ।। 1 ।।

भावार्थ : मीराबाई श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति को प्रस्तुत करते हुए वे अपने मन को सम्बोधित करते हुए कहती हैं कि हे मन ! तू श्रीकृष्ण के चरणों का स्पर्श कर श्रीकृष्ण के ये सुन्दर शीतल कमल जैसे चरण सभी प्रकार के दैविक , दैहिक तथा भौतिक तापों का नाश करने वाले हैं । इन चरणों के स्पर्श से भक्त प्रहलाद का उद्धार हुआ और उन्हें इन्द्र की पदवी प्राप्त हुई । इन्हीं चरणों के आश्रय में आकर भक्त ध्रुव ने अटल पदवी प्राप्त की । इन्हीं चरणों से श्रीकृष्ण ने ब्रह्माण्ड को भी भेद दिया था और यह ब्रह्माण्ड उन्हीं चरणों से शिख तक सौंदर्य और सौभाग्य से मंडित है । इन्हीं चरणों के स्पर्श से गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या बाई का उद्धार हुआ । इन्हीं कृष्ण ने ब्रजवासियों के रक्षार्थ कालिया नाग का अन्त किया और गोपियों के साथ लीला सम्पन्न की । इन्हीं श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को धारण कर इन्द्र के गर्व को चकनाचूर कर दिया । मीरा ऐसे प्रभु के चरणों की दासी है और उनसे प्रार्थना करती है कि वे अगम्य संसार से उन्हें पार उतारें ।

विशेष

माधुर्य गुण तथा शांत रस है । 

राग ललित

  • म्हारो परनाम बाँकेबिहारी जी । 
  • मोर मुगट माथ्याँ तिलक बिराज्याँ , कुण्डल अलकौँ धारी जी । 
  • अधर मधुर धर वंशी बजावाँ , रीझ रिझावाँ , राधा प्यारी जी । 
  • या छब देख्याँ मोह्याँ मीराँ , मोहन गिरवरधारी जी ।।2 ।।

भावार्थः मीरां बाई ने इस पद में भगवान के अलौकिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए इस मनोहारी छवि को अपने हृदय में बसाने का भाव प्रकट किया है । वे कहतीं है कि मेरा सारा समर्पण श्री बांके बिहारी जी के प्रति है । उनके सिर पर मोर का सुन्दर मुकुट और माथे पर तिलक शोभायमान है । कानों में लटकदार कुण्डल हैं । उनके होठों पर बंशी है , वे सदैव राधा को रिझाते हैं । श्रीकृष्ण की यह सुन्दर छवि देखकर मीरां मोहित हो जाती है । वे कहती है ऐसे सभी को मोहित करने वाले एवं गोवर्धन पर्वत धारण करने वाले श्रीकृष्ण सदा मेरे हृदय में बसें ।

राग हमीर

  • मोर बस्या म्हारे नेणण माँ नंदलाल । 
  • मुकुट मकराक़त कुण्डल अरुण तिलक सोहाँ भाल । 
  • मोहिनी मूरत सावरा सूरत नेण बण्या विशाल ।
  • अधर सुधा रस मुरली राजाँ उर बैजन्ती माल । 
  • मीरों प्रभु संतो सुखदायाँ भगत बछल गोपाल ।।3।।

भावार्थ : मीरा बाई ने श्रीकृष्ण की माधुरी मूर्ति को अपने हृदय में बसाने का निवेदन किया है । कृष्ण का सुंदर रूप बड़े - बड़े नेत्र , अधरों पर अमृत के समान वर्षा करने वाली मुरली और गले में भव्य वैजयंती माला सुशोभित है । कृष्ण की कमर में बंधी सुन्दर घण्टियाँ व उनसे निकलने वाले घुंघरू के मधुर स्वर सभी संतों को सुख देने वाले हैं । मीरा निवेदन करती है कि भक्त वत्सल श्रीकृष्ण मेरे नयनों में निवास करें ।

  • हरि म्हारा जीवण प्राण आधार । 
  • और असिरो ना म्हारा थें विण , तीनूँ लोक मँझार । 
  • थें विण म्हाणे जग ना सुहावाँ , निख्याँ सब संसार । 
  • मीराँ रे प्रभु दासी रावली , लीज्यो नेक निहार ।। 4 ।। 

भावार्थ : मीरां ने इस पद में श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य समर्पण को उजागर करते हुए लिखा है कि श्रीकृष्ण मेरे जीवन व प्राणों के आधार हैं । उनके बिना मेरा तीनों लोकों में कोई नहीं है । मीरा कहती हैं कि उन्हें कृष्ण के बिना संसार में कोई भी अच्छा नही लगता । उन्होनें इस मिथ्या जगत को खूब अच्छी तरह देख लिया है । वे निवेदन करती है कि हे श्रीकृष्ण ! मैं आपकी दासी हूँ । अतः आप मुझे भुला मत देना ।

मीराँबाई की पदावली पद 11-20

राग कान्हरा

  • तनक हरि चितवाँ म्हारी ओर । 
  • हम चितवाँ थें चितवो ना हरि , हिवड़ो बड़ो कठोर ।
  • म्हारो आसा चितवणि थारी ओर ना दूजा दोर । 
  • ऊभ्याँ ठाढ़ी अरज करूँ हूँ करता करताँ भोर । 
  • मीराँ रे प्रभु हर अविनासी देस्यूँ प्राण अंकोर ॥5 ॥ 

भावार्थ : मीरां ने इस पद में भगवान की कृपा दृष्टि अपने ऊपर चाही है । वे निवेदन करती है कि हे श्रीकृष्ण ! मेरी ओर भी थोड़ी दृष्टि डालो । हमारी दृष्टि सदैव आपकी ओर लगी रहती है । कभी आप अपनी दृष्टि भी हम पर डालें ताकि हमारा भी उद्धार हो ।  यदि आप ऐसा नहीं करते हो तो आप हृदय के बड़े कठोर हैं । हमारे जीवन की पूरी आस तुम्हारी चित्तवन है । इसके अलावा हमारा कहीं ठिकाना नही है । मेरा इस संसार में तुम्हारे सिवा और कोई नही है । आपके लिए हमारे जैसे लाखों - करोड़ों भक्त हो सकते हैं । मीरां कृष्ण की चित्तवन रूपी कृपा की प्रतीक्षा करते - करते ऊब गई है और रात से भोर हो गई लेकिन प्रभु कृष्ण आप फिर भी द्रवित नहीं हुए । हे अविनाशी आप मुझ पर कृपा दृष्टि कीजिये । मैं अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दूँगी ।

  • म्हारो गोकुल रो ब्रजवासी ।
  • बजलीला लख जन सुख पावाँ , ब्रजवनताँ सुखरासी ।
  • नाच्या गावाँ ताल बजावाँ , पावाँ आणंद हाँसी ।
  • नन्द जसोदा पुत्र री , प्रगट्याँ प्रभु अविनासी । 
  • पीताम्बर कट उर बैजणताँ , कर सोहाँ री बाँसी । 
  • मीराँ रे प्रभु गिरधर नागर , दरसरण दीज्यो दासी ।।6 ।। 

भावार्थ : मीरां श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबी हुई है । वे कहती हैं कि हमारे श्रीकृष्ण तो ब्रज में निवास करते हैं । उनकी लीलाओं को देखकर ब्रज की स्त्रियाँ सुख प्राप्त करती हैं । वे नाचती हैं , गाती हैं , ताली बजाती हैं और आनंद की हँसी प्राप्त करती है । अविनाशी प्रभु कृष्ण ने नंद व यशोदा के पुत्र के रूप में अवतार लिया है । उनके कमर पर सुन्दर पीले वस्त्र , गले में सुन्दर वैजयंती माला और हाथों में मुरली शोभायमान रहती है । मीरां निवेदन करती है कि उनके तो एक मात्र स्वामी श्रीकृष्ण है । वे श्रीकृष्ण अपनी दासी को दर्शन देकर कृतार्थ करें ।

  • हे मा बड़ी बड़ी अखियन वारो , साँवरो मो तन हेरत हसिके ।
  • भौंह कमान बान बाँके लोचन , मारत हियरे कसिके । 
  • जतन करो जन्तर लिखि बाँधों , ओखद लाऊँ घसिके ।
  • ज्यों तोकों कछु और बिधा हो , नाहिन मेरो बसिके ।
  • कौन जतन करों मोरी आली , चन्दन लाऊँ घसिके । 
  • जन्तर मन्तर जादू टोना , माधुरी मूरति बसिके । 
  • साँवरी सूरत आन मिलावो ठाढ़ी रहूँ मैं हँसिके । 
  • रेजा रेजा भयो करेजा अन्दर देखो धँसिके । 
  • मीरा तो गिरधर बिन देखे कैसे रहे घर बसिके ।। 7।।

भावार्थ : मीरां ने कृष्ण के माधुर्य रूप का वर्णन किया है । वे कहती हैं कि बड़ी - बड़ी आँखों वाले साँवले श्रीकृष्ण की मेरी ओर मुस्कराहट भरी दृष्टि और उनकी टेड़ी कमान जैसी भौंहें , सुन्दर नेत्र आदि से मैं उनके वशीभूत हो गई हूँ । मेरी वेदना का कारण कोई और नहीं है । श्रीकृष्ण के जादू - टोने मेरे हृदय में बस गए हैं और श्रीकृष्ण की मनोहर मूर्ति मेरे हृदय में से नहीं निकलती है । मीरा कहती है कि मैं श्रीकृष्ण को अपने हृदय से मिलाने के लिए बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही हूँ । श्रीकृष्ण के बिना मेरा कलेजा ट्रक - ट्रक हुआ जाता है । कृष्ण के वियोग में वेदना से मीरा इस प्रकार पीड़ित है कि वे बिना कृष्ण के दर्शन किए बिना घर में कैसे रह सकती है । 

विशेषः " भाँह कमान बान बाँके लोचन , मारत हियरे कसिके । " इस पंक्ति में सांगरूपक है । रेजा रेजा भयो करेजा में रूढ़ि लक्षणा है । 

मीराँबाई की पदावली पद 11-20

  • हे री मा नन्द को गुमानी म्हारे मनड़े बस्यो । 
  • बाहे दुम डार कदम की ठाड़ो मृदु मुसकाय म्हारी और हँस्यो ।
  • पीताम्बर कट काछनी काछे , रतन जटित माथे मुगट कस्यो । 
  • मीरों के प्रभु गिरधर नागर , निरख बदन म्हारो मनड़ो फँस्यो ।।8।।

भावार्थः मीरां कहती हैं कि नंद का गर्वीला पुत्र अर्थात् श्रीकृष्ण मेरे मन में बस गया है । वह कदम की डाल पकड़े हुए मेरी ओर देखकर मुस्करा रहा है । उसके पीले वस्त्र कमर में धोती और मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट सुशोभित था । मीरा श्रीकृष्ण की इस छवि को हृदयंगम करके कहती है कि यह अपूर्व छवि बरबस ही मुझे मोहित कर रही है , जिसे देखकर मेरा मन सम्मोहित हो गया है । 

  • थारो रूप देख्याँ अटकी । 
  • कुल कुटुम्ब सजन सकल बार बार हटकी । 
  • विसरयाँ ना लगन लगाँ मोर मुगट नटकी । 
  • म्हारो मन मगन स्याम लोक कहाँ भटकी । 
  • मीराँ प्रभु सरण गह्यौं जाण्या घट घट की ।।9।।

भावार्थ : मीरां ने इस पद में श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य के स्वयं पर असर का वर्णन किया है । वे कहती है कि हे श्रीकृष्ण ! तुम्हारे रूप माधुरी को देखकर मेरी आँखे अटक गई हैं । लोगों ने मुझे बार - बार मना किया , लेकिन मैं उनसे दूर होकर भी आपकी शरण की कामना करती हूँ । मोर मुकुट धारण करने वाले श्रीकृष्ण में मेरा मन रम गया है । इसे लोग मेरा भटकना कहते हैं । मीरां कहती है कि यह भटकना नहीं है बल्कि मैंने उस अन्तर्यामी ईश्वर की शरण प्राप्त की है जो प्रत्येक हृदय की बात जानता है ।

राग त्रिवेनी

  • निपट बंकट छब अटके । 
  • देख्याँ रूप मदन मोहन री , पियत पियूख न मटके ।
  • बारिज भवाँ अलक मतवारी , नेण रूप रस अटके । 
  • टेढ्या कट टेढ़े कर मुरली , टेढया पाय लर लटके । 
  • मीराँ प्रभु रे रूप लुभाणी , गिरधर नागर नटके ।।10 ।।

भावार्थ : मीरां ने इस पद में कहा है कि श्रीकृष्ण की नितान्त टेढ़ी अर्थात् त्रिभंगी छवि उसके नेत्रों में बस गई है । वे कहती हैं कि मेरे नेत्रों ने श्रीकृष्ण के इस माधुर्य रूप का अमृत तुल्य पान किया है । जिससे वे और मटकने लगी है और ये नेत्र उस रूप माधुरी रूपी रस पर अटक गये है । उनके मुख पर सुन्दर और टेढ़ी अलखें तथा बांसुरी बजाते समय टेढ़ी कमर और ऐसे ही टेढ़े हाथों में पकड़े मुरली तथा पैरों की लटकती टेढ़ी दशा नटवर नागर श्रीकृष्ण के त्रिभंगी रूप में सभी को मोहित करने वाली शक्ति होती है । उस पर मीरां पूरी तरह मोहित है ।

मीराँबाई की पदावली पद 11-20

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1 comments:

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Unknown
admin
13 अक्तूबर 2023 को 5:54 am बजे

Baso mere nanon mein nandlal-------Bhakat bachal gopal||

Congrats bro Unknown you got PERTAMAX...! hehehehe...
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उत्साहवर्धन के लिये धन्यवाद!
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