भाषा की शिक्षण विधि , भाषा शिक्षण के उपागम , भाषा दक्षता का विकास भाग-1

 भाषा की शिक्षण विधि , भाषा शिक्षण के उपागम , भाषा दक्षता का विकास
भाग-1
Language teaching method, language teaching approach, development of language proficiency 
part-1


Language teaching method, language teaching approach, development of language proficiency

भाषा

‘भाषा’ शब्द का अर्थ 

‘भाषा’ शब्द संस्कृत की ' भाष ' धातु से बना है , जिसका अर्थ है- बोलना या कहना अर्थात् भाषा वह है जिसे बोला जाए। (भाषयते अनेन इति भाषा)

‘भाषा यादृच्छिक वाचिक ध्वनि-संकेतों की वह पद्धति है, जिसके द्वारा मानव आपमे विचारों का आदान-प्रदान करता है । 

सामान्यतः भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा आभ्यंतर अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं वह हमारे आभ्यंतर के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भाषा के बिना मनुष्य सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा परम्परा से विच्छिन्न है।

भाषा की परिभाषा

डॉ . बाबू राम सक्सेना के अनुसार

" जिन ध्वनि चिह्नों द्वारा मनुष्य का स्वर विचार - विनियम है , उसे भाषा कहते हैं।”

पं . कामताप्रसाद गुरु के अनुसार

" भाषा वह साधन है , जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली भाँति प्रकट करता है और दूसरों के विचार स्वयं स्पष्टतया समझ लेता है।”

श्यामसुदंर दास के अनुसार

" भाषा ध्वनि संकेतों का व्यवहार है । " 

प्लेटो के अनुसार 

प्लेटो ने सोफिस्ट में विचार और भाषा के संबंध में लिखते हुए कहा है कि विचार और भाषा में थोड़ा ही अंतर है। विचार आत्मा की मूक या अध्वन्यात्मक बातचीत है और वही शब्द जब ध्वन्यात्मक होकर होठों पर प्रकट होती है तो उसे भाषा की संज्ञा देते हैं।

स्वीट के अनुसार 

ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा है।

वेंद्रीय के अनुसार 

भाषा एक तरह का चिह्न है। चिह्न से आशय उन प्रतीकों से है जिनके द्वारा मानव अपना विचार दूसरों के समक्ष प्रकट करता है। ये प्रतीक कई प्रकार के होते हैं जैसे नेत्रग्राह्य, श्रोत्र ग्राह्य और स्पर्श ग्राह्य। वस्तुतः भाषा की दृष्टि से श्रोत्रग्राह्य प्रतीक ही सर्वश्रेष्ठ है।

भाषा के प्रकार

मौखिक भाषा 

बोलकर अपने भावों,विचारों की अभिव्यक्ति ।

लिखित भाषा 

यादृच्छिक चिन्हों की सहायता से अपने भावों,विचारों की लिखकर अभिव्यक्ति ।

भाषा के  रूप

जीवन के विभिन्न व्यवहारों के अनुरूप भाषिक प्रयोजनों की तलाश हमारे दौर की अपरिहार्यता है । विविधता भाषा का एक महत्वपूर्ण तत्व है । यह विविधता व्यक्ति के विभिन्न स्तरों पर समाज के सम्पर्कों से उत्पन्न होती है , व्यक्ति परिवार तक सीमित न रहकर अपने कार्यों के कारण दूर - दूर तक यात्रा करता है और विभिन्न भाषाओं के सम्पर्क में आता है , उस पर उन सभी भाषाओं व व्यक्तियों के भाषिक प्रयोगों का असर होता है । जिसके कारण भाषा के अनेक रूप विकसित होते हैं । इनमें प्रमुख हैं -

मातृभाषा

बालक जन्म में ही अपनी माँ के मुख से जिस भाषा को सुनता है और सीखता है , वह उसकी मातृभाषा कहलाती है । बालक की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए ।

बोलचाल की भाषा (बोली)

बोलचाल की भाषा’ को समझने के लिए ‘बोली’ को समझना जरूरी है। ‘बोली’ उन सभी लोगों की बोलचाल की भाषा का वह मिश्रित रूप है जिनकी भाषा में पारस्परिक भेद को अनुभव नहीं किया जाता है। विश्व में जब किसी जन-समूह का महत्त्व किसी भी कारण से बढ़ जाता है तो उसकी बोलचाल की बोली ‘भाषा’ कही जाने लगती है, अन्यथा वह ‘बोली’ ही रहती है। स्पष्ट है कि ‘भाषा’ की अपेक्षा ‘बोली’ का क्षेत्र, उसके बोलने वालों की संख्या और उसका महत्त्व कम होता है। एक भाषा की कई बोलियाँ होती हैं क्योंकि भाषा का क्षेत्र विस्तृत होता है।जब कई व्यक्ति-बोलियों में पारस्परिक सम्पर्क होता है, तब बालेचाल की भाषा का प्रसार होता है ।

प्रादेशिक भाषा

यह किसी प्रदेश या प्रांत के विस्तृत भू भाग में निवास करने वाले अधिकांश लोगों की भाषा होती है । इसका अपना साहित्य एवं लिपि होती है । जैसे –  राजस्थान की राजस्थानी

राज भाषा 

जिस भाषा में सरकार के कार्यों का निष्पादन होता है उसे राजभाषा कहते हैं। 

भारत के संविधान के अनुसार हिंदी भाषा भारत की राज भाषा है , जिसे 14 सितम्बर 1949 ई . को संविधान सभा ने स्वीकार किया । हर राज्य सरकार की अपनी-अपनी राज भाषाएँ हैं। राजभाषा जनता और सरकार के बीच एक सेतु का कार्य करती है। किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र की उसकी अपनी स्थानीय राजभाषा उसके लिए राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान का प्रतीक होती है। विश्व के अधिकांश राष्ट्रों की अपनी स्थानीय भाषाएँ राजभाषा हैं। आज हिंदी (हिन्दी) हमारी राजभाषा है।

(भारतीय संविधान में राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों के लिए हिन्दी के अतिरिक्त 22 अन्य भाषाएं राजभाषा के रूप में स्वीकृत की गई हैं। राज्यों की विधानसभाएं बहुमत के आधार पर किसी एक भाषा को अथवा चाहें तो एक से अधिक भाषाओं को अपने राज्य की राज्यभाषा घोषित कर सकती हैं।)

राष्ट्रभाषा 

देश के विभिन्न भाषा-भाषियों में पारस्परिक विचार-विनिमय की भाषा को राष्ट्रभाषा कहते हैं। राष्ट्रभाषा को देश के अधिकतर नागरिक समझते हैं, पढ़ते हैं या बोलते हैं।किसी भी देश की राष्ट्रभाषा उस देश के नागरिकों के लिए गौरव, एकता, अखंडता और अस्मिता का प्रतीक होती है ।

महात्मा गांधी ने राष्ट्रभाषा को राष्ट्र की आत्मा की संज्ञा दी है। 

एक भाषा कई देशों की राष्ट्रभाषा भी हो सकती है; जैसे - अंग्रेजी आज अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा कनाडा़ इत्यादि कई देशों की राष्ट्रभाषा है । संविधान में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा तो नहीं दिया गया है लेकिन इसकी व्यापकता को देखते हुए इसे राष्ट्रभाषा कह सकते हैं। 

महात्मा गांधी जी के अनुसार 

किसी देश की राष्ट्रभाषा वही हो सकती है जो सरकारी कर्मचारियों के लिए सहज और सुगम हो; जिसको बोलने वाले बहुसंख्यक हों और जो पूरे देश के लिए सहज रूप में उपलब्ध हो । 

सम्पर्क भाषा

अनेक भाषाओं के अस्तित्व के बावजूद जिस विशिष्ट भाषा के माध्यम से व्यक्ति-व्यक्ति, राज्य-राज्य तथा देश-विदेश के बीच सम्पर्क स्थापित किया जाता है उसे सम्पर्क भाषा कहते हैं। एक ही भाषा परिपूरक भाषा और सम्पर्क भाषा दोनों ही हो सकती है।आज भारत मे सम्पर्क भाषा के तौर पर हिंदी जबकि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी संपर्क भाषा के रूप में प्रचलित है। 

मानक भाषा

भाषा के स्थिर तथा सुनिश्चित रूप को मानक या परिनिष्ठित भाषा कहते हैं।भाषाविज्ञान कोश के अनुसार ‘किसी भाषा की उस विभाषा को परिनिष्ठित भाषा कहते हैंजो अन्य विभाषाओं पर अपनी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक श्रेष्ठता स्थापित कर लेती है तथा उन विभाषाओं को बोलने वाले भी उसे सर्वाधिक उपयुक्त समझने लगते हैं।मानक भाषा शिक्षित वर्ग की शिक्षा, पत्राचार एवं व्यवहार की भाषा होती है। इसके व्याकरण तथा उच्चारण की प्रक्रिया लगभग निश्चित होती है। मानक भाषा को टकसाली भाषा भी कहते हैं।

भाषा की विशेषताएं 

  • भाषा पैतृक सम्पत्ति न होकर अर्जित सम्पति है । ( स्वयं के प्रयत्न से सीखनी होती है । )
  • भाषा सतत परिवर्तनशील ( संस्कृत → पाली → प्राकृत → हिंदी ) 
  • भाषा कठिनता से सरलता की ओर जाती है । ( बच्चे की भाषा → बड़े की भाषा ) 
  • भाषा ध्वन्यात्मक प्रतीकों की व्यवस्था है । ( गाय , काऊ , पानी , )
  • भाषा सामाजिक संप्रेषण के लिए प्रयुक्त होती है । 
  • भाषा मानव जीवन की एक बहुत ही सहज प्रकिया है ।
  • प्रत्येक भाषा की संरचना दूसरी भाषा से भिन्न होती है । 
  • भाषा कठिनता से सरलता की ओर अग्रसर होती है ।

भाषा सीखने का मनोविज्ञान

शिशु जन्म से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में लग जाता है , इस कार्य में उसकी ज्ञानेन्द्रियाँ सहायता करती हैं । दुनिया को समझने और अपनी समझ को अभिव्यक्त करने में बच्चे का मनोविज्ञान उसकी मदद करता है ।  इस प्रक्रिया में भाषा सीखने में कुछ मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियाँ कार्य करती हैं । जैसे –

  • अनुकरण 

भाषा अनुकरण द्वारा ही सीखी जाती है ।

  • जिज्ञासा

नया सीखने की प्रबल इच्छा । 

  • अभ्यास 

बालक भाषाई कौशलों को अभ्यास और पुनरावृत्ति के द्वारा ही विकसित करते हैं ।

भाषा सीखने की प्रक्रिया

भाषा सीखने की प्रक्रिया में बालक के मस्तिष्क में चार प्रकार के बिम्ब बनते हैं । 

  • दृश्य बिम्ब

आँख द्वारा देखे जानेवाले पदार्थों के मस्तिष्क में बिम्ब बनते हैं , जैसे घर की वस्तुओं के बिंब । 

  • श्रुति बिम्ब

किसी वस्तु , व्यक्ति , पशु - पक्षी आदि को देखकर परिवारवालों द्वारा उसका नाम बोला जाना । ऐसा बार - बार होने से बालक के मस्तिष्क में दृश्य - बिम्ब बनने के साथ उसके नाम की ध्वनि को सुनता है । दृश्य बिम्ब और उसका नाम सुनने से बने श्रुति बिम्ब दोनों से मिलकर बालक के मस्तिष्क में प्रत्यय बन जाता है जैसे ' घर ' शब्द को सुनकर घर का बिंब कल्पना में आना ।

  • विचार बिम्ब 

दृश्य बिम्ब और श्रुति बिम्ब से मिलकर बना हुआ प्रत्यय इतना दृढ़ हो जाता है कि वस्तु की अनुपस्थिति में विचार - बिम्ब बनता है । ( जैसे – घर सुंदर है । ) 

  •  भाव बिम्ब 

विचार बिम्ब की विकसित अवस्था ही भाव बिम्ब है । विचार बिम्ब में मानसिक क्रिया होती है और भाव बिम्ब में व्यक्ति के हृदय का सहयोग होता है । ( जैसे-ये हमारा घर है । ) 

भाषा की शिक्षण विधि 

पद्य शिक्षण

सामान्य रूप में जो रचना छन्दोबद्ध होती है , उसे पद्य कहा जाता है । इसमें गति , लय आदि का पूरा ध्यान रखा जाता है । कविता छन्दोबद्ध भी हो सकती है और छन्दरहित भी । 

पद्य शिक्षण के उद्देश्य

  • उचित लय , गति , स्वर का ज्ञान देना । 
  • कल्पना - शक्ति विकसित करना । 
  • कविता के प्रति रुचि उत्पन्न करना । 
  • कविता की रचना करने के लिए प्रेरित करना । 
  • कविता शिक्षण में रुचि उत्पन्न करने वाली विधियाँ : 
  • अन्त्याक्षरी प्रतियोगिता ।
  • कवि सम्मेलन का आयोजन । 
  • कविता पाठ प्रतियोगिता । 
  • कविता का प्रभावशाली सस्वर पाठ करना । 
  • विभिन्न उत्सवों पर कविता पाठ करवाना । 
  • विषय - विशेष पर कविता पाठ करना । 

कविता पाठों के प्रकार

  • बोध पाठ 

वे कविताएँ जिनमें कठिन शब्द अधिक होते हैं , जिसके कारण छात्र रसानुभूति तक नहीं पहुँच पाते हैं , अतः उनका शिक्षण ‘ बोध पाठ ' द्वारा कराया जाता है अर्थात् बोध पाठ में आए कठिन शब्दों का अर्थ बताया जाता है । कविता का अर्थ बताया जाता है , कविता का सरलीकरण किया जाता है ।

  • रसपाठ 

रस पाठ अर्थात् कविता को बार - बार लय , गतिपूर्वक पढ़कर रस लेना । जिन कविताओं का बोध पाठ व सरलीकरण हो चुका है उसके बाद रस पाठ किया जाता है , ताकि छात्र उससे सहज ही रसानुभूति तक पहुँच सकते हैं । 

पद्य शिक्षण की विधियाँ 

  • खण्डान्वय विधि 

वाचन , खण्डों के प्रधान और अर्थ , सम्पूर्ण पद्धांश का अर्थ ।

  • अर्थ बोध विधि 

अध्यापक द्वारा वाचन , छात्र द्वारा अनुकरण वाचन , अर्थ ज्ञान।

  • गीत विधि 

अध्यापक द्वारा बाल गीत छात्र द्वारा अनुकरण । 

  • अभिनय विधि

अभिनय प्रधान बालगीत , अंग - संचालन के साथ अध्यापक द्वारा गीत गाना और छात्र द्वारा अनुकरण । 

  • व्याख्या विधि

वाचन , अर्थ , अंतर्कथाएँ , पृष्ठभूमि , व्याख्या ।

गद्य शिक्षण  

भावों , विचारों , तथ्यों को सर्वमान्य एवं दैनिक उपयोग की भाषा में कलात्मक एवं प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करना । शब्द , वाक्य आदि के शुद्ध रूप , विभिन्न विधाओं के ज्ञान आदि का आधार गद्य है । हिंदी की विधाओं के अंतर्गत सर्वप्रथम पद्य - गद्य तथा गद्य में नाटक , कहानी व्याकरण रचना आदि रूप आते हैं , हिंदी की प्रत्येक विधा को पढ़ाने में अलग - अलग बातों का महत्त्व है ।

प्राथमिक स्तर गद्य शिक्षण के उद्देश्य

  • अभिव्यक्ति क्षमता का विकास करना । 
  • छात्रों के शब्द - भंडार में वृद्धि करना । 
  • छात्रों द्वारा शुद्ध उच्चारण करना ।
  • सस्वर वाचन एवं मौन वाचन दोनों में निपुण बनाना । 
  • लिपि का ज्ञान करना ।
  • तथ्यों को समझने तथा उन्हें जीवन में उतारने की क्षमता ।
  • छात्रों को मुहावरों , लोकोक्तियों का ज्ञान करना । 
  • कल्पना शक्ति , आलोचना शक्ति , तार्किक शक्ति एवं रचना शक्ति का विकास करना । 

गद्य पाठों के प्रकार

  • व्यापक एवं गहन पाठ

व्यापक एवं गहन अध्ययन पाठ में सूक्ष्म अध्ययन की आवश्यकता पड़ती है । इन पाठों में कठिन शब्दों की विस्तृत व्याख्या , मुहावरे - लोकोक्ति की व्याख्या , शुद्ध उच्चारण एवं शुद्ध वर्तनी का अभ्यास आदि अर्थ - बोध एवं व्याकरण संबंधी ज्ञान के सभी कार्य विस्तार से किए जाते हैं । शब्दों के अर्थ को समझने के लिए वाक्य प्रयोग , विलोम , पर्यायवाची , उदाहरण , प्रश्न , व्याख्या आदि का आश्रय लिया जाता है । 

  • द्रुत पाठ

 विस्तृत अध्ययन में सहायक पुस्तकों की आवश्यकता पड़ती है । ऐसी पुस्तकों का द्रुत पाठ ही किया जाता है अर्थात् अध्ययन तीव्र गति से किया जाता है । इनके पाठ सरल होते हैं इनकी शब्दावली छात्रों के लिए परिचित होती है इसलिए शब्द व्याख्या पर कम ज़ोर , दिया जाता है । शीघ्र पठन में , मौन वाचन होता है । इन पाठों में विषयवस्तु अथवा कथावस्तु क्या है ? केवल इतनी ही जानकारी काफी होती है , शब्द - व्याख्या एवं व्याकरण - ज्ञान अपेक्षित नहीं होता । 

गद्य शिक्षण की विधियाँ 

  • अर्थ - कथन विधि 

वाचन , कठिन शब्दों का अर्थ , पूरे गदयांश का अर्थ स्पष्ट करना । 

  • व्याख्या विधि 

वाचन , कठिन शब्दों का अर्थ , गद्यांश का सरल अर्थ , व्याख्या । 

  • प्रश्नोत्तर विधि

प्रश्नोत्तर के माध्यम से व्याख्या करना । पूर्व ज्ञान पर प्रश्न पूछना । संधि विच्छेद द्वारा अर्थ बोध करवाना ।

 गद्य साहित्य की विधाएँ व शिक्षण विधियाँ 

कहानी 

कहानी का उद्देश्य मानव जीवन से संबंधित किसी संक्षिप्त मार्मिक घटना को रोचक ढंग से प्रस्तुत करना है । 

चार्ल्स मेरेट  के अनुसार

" कहानी एक लघु वर्णनात्मक गद्य रचना है , जिसमें वास्तविक जीवन को कलात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है । कहानी का प्रमुख उद्देश्य मनोरंजन करना है "। 

कहानी एक ऐसी रचना है , जिसमें जीवन के किसी एक अंश या एक भाव - विचार को प्रकट करना ही लेखक का उद्देश्य होता है । इसमें लेखक की सारी शक्ति किसी घटना , भाव या समस्या की अभिव्यक्ति पर केन्द्रित रहती है । यह एक वर्णनात्मक गद्य रचना है , जिसमें जीवन के अनुभव को कलात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है । 

कहानी - शिक्षण के उद्देश्य 

  • आदर्श जीवन व्यतीत करने की शिक्षा । 
  • कल्पना शक्ति एवं स्मरण शक्ति का विकास । 
  • सामाजिकता की भावना का विकास । 
  • कठिन बातों को बोधगम्य बनाकर सुनाना । 
  • जिज्ञासा तथा रुचि उत्पन्न करना ।
  • स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करना । 
  • मानव जीवन के विविध पक्षों से अवगत कराना यथा - ऐतिहासिक घटनाएँ , सामाजिक दशाएँ आदि । 

कहानी शिक्षण की विधियाँ 

  • मौखिक कहानी कथन विधि

मौखिक कहानी सुनाना ।

  • चित्र प्रदर्शन विधि 

चित्र के माध्यम से और पूर्व ज्ञान से जोड़कर , प्रश्नोत्तर करते हुए कहानी पढ़ाना ।

प्राथमिक स्तर पर सबसे अधिक उपयुक्त विधि है । 

  • अधूरी कहानी पूर्ति विधि

 कुछ शब्द या वाक्य रूपरेखा देकर बालकों से कहानी पूरी करवाना । 

  • वाचन विधि

अध्यापक दवारा पूरी कहानी का वाचन पश्चात छात्रों द्वारा वाचन । 

उपन्यास 

उपन्यास में सामाजिक , ऐतिहासिक आदि अनेक विषयों पर जीवन के व्यापक विषयों का कथात्मक चित्रण किया जाता है ।

एकांकी 

यह नाट्य साहित्य का ही एक अंग है । एकांकी जीवन की एक घटना विशेष से संबंधित होता है , जबकि नाटक जीवन की सम्पूर्ण या कई घटनाओं का मंचीय चित्रण है । 

निकाल के अनुसार

" नाटक जीवन की प्रतिलिपि , प्रथाओं का दर्पण और स्वयं का प्रतिबिम्ब है । " 

एकांकी शिक्षण के उद्देश्य 

  • मानव - जीवन के विभिन्न पक्षों से अवगत ।
  • अवसरानुकूल शब्दावली का प्रयोग करना सिखाना । 
  • छात्रों को प्रभावशाली व शुद्ध वार्तालाप की शिक्षा प्रदान करना ।
  • छात्रों में भावानुसार उचित गति एवं हाव - भाव के साथ एकांकी का सस्वर पठन करने की योग्यता विकसित करना । 

एकांकी शिक्षण की विधियाँ 

  • आदर्श नाट्य 

पठन प्रणाली सभी पात्रों के संवादों का सस्वर वाचन हाव - भाव के साथ , कठिन शब्दों की व्याख्या भी । 

  • रंगमंच या अभिनय विधि 

रंगमंच पर विधिवत मंचन। (खर्चीली व श्रमसाध्य विधि।)

  • कक्षाभिनय प्रणाली

कक्षा में बिना साज - सज्जा के संवाद व अभिनय । यह सबसे उपयोगी विधि है । 

  • अर्थकथन विधि

अध्यापक दवारा सस्वर वाचन , अनुकरण वाचन ,  अर्थ । 

  • व्याख्या विधि 

पठन करते हुए व्याख्या , प्रश्नोत्तर का सहारा लेकर ।

जीवनी - किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति विशेष के जीवन संबंधी परिस्थितियों का विस्तृत वर्णन होता है । 

प्रेरक प्रसंग - महापुरुष , आदर्श व्यक्तियों के जीवन के कुछ ऐसे प्रसंग जिनसे नैतिक मूल्यों आदि की प्रभावी प्रस्तुति की जाती है ।

आत्मकथा - स्वयं व्यक्ति विशेष अपने जीवन की परिस्थितियों एवं अनुभवों को लिखता है । 

संस्मरण - अतीत में अपने जीवन के संक्षिप्त अनुभव को व्यक्त करता है ।

रिपोर्ताज - यह अंग्रेजी शब्द ' रिपोर्ट से बना है । इसके अन्तर्गत लेखक अपनी देखी हुई घटनाओं का प्रत्यक्षदर्शी की तरह कलात्मक वर्णन करता है । 

रेखाचित्र - किसी घटना या दृश्य का लेखनी की सहायता से कम से कम शब्दों में चित्र साकार करना रेखाचित्र कहलाता है ।

व्याकरण 

व्याकरण ऐसा शास्त्र है , जो यह बताता है , कि किसी वाक्य में कौनसा शब्द कहाँ रहना चाहिए । वहीं भाषा के सर्वमान्य रूप का संरक्षण करती है । भाषा में वाक्य , वाक्य में शब्द और शब्द में वर्णों की स्थिति का निर्धारण व्याकरण की सहायता से ही होता है । इस तरह व्याकरण का काम है , भाषा पर अनुशासन रखना ।

व्याकरण शिक्षण के उद्देश्य 

  • भाषा की अशुद्धता को समझ कर शुद्ध भाषा का प्रयोग सिखाना ।
  • लिखित अभिव्यक्ति को शुद्ध बनाना । 
  • वाक्यों में शब्दों का ज्ञान , अर्थ व उनका पारस्परिक ज्ञान कराना । 
  • छात्रों को विभिन्न ध्वनियों का ज्ञान देना । 

व्याकरण शिक्षण के पाठ रूप

  • औपचारिक व्याकरण पाठ

इसमें व्याकरण के किसी सूत्र या नियम की जानकारी देने हेतु इसके सिद्धांत पर अधिक बल देते हैं । पहले नियम बाद में उदाहरण । इसकी शिक्षा कक्षा 6 से पहले नहीं दी जानी चाहिए । 

  • व्यावहारिक व्याकरण पाठ

व्याकरण के नियमों की विधिवत् शिक्षा दिए बिना भाषा के शुद्ध रूप का ज्ञान कराना । व्याकरण का व्यावहारिक या प्रयोगात्मक रूप में प्रयोग अर्थात् बच्चे के सामने अध्यापक द्वारा सर्वमान्य एवं व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग किया जाए ताकि बालक शिक्षक के भाषा - व्यवहार से ही व्याकरण का ज्ञान प्राप्त कर सकें । 

व्याकरण शिक्षण की विधियाँ 

  • निगमन विधि 

पहले नियम , बाद में उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं । 

  • आगमन विधि 

निगमन विधि से एकदम विपरीत , पहले उदाहरण फिर नियम खोजना । उपयुक्त विधि है ।

  • आगमन - निगमन ( विश्लेषणात्मक ) विधि 

पहले उदाहरण , फिर नियम निर्धारण और फिर उदाहरण द्वारा उस नियम की पुष्टि । “ उदाहरण से नियम की ओर " फिर “ नियम से उदाहरण की ओर " यह सर्वोत्तम विधि है ।

  • सूत्र विधि 

व्याकरण के नियमों को सूत्र रूप में प्रस्तुत करने के बाद , उदाहरण द्वारा स्पष्ट करना । 

  • पाठ्यपुस्तक विधि

पुस्तकों में नियम , उदाहरण , अभ्यास प्रश्न । इसमें भी नियमों पर बल ।

रचना शिक्षण

रचना का शाब्दिक अर्थ है - निर्माण करना , सजाना अथवा सँवारना । 

किसी भी माध्यम से भावनाओं और विचारों की कलात्मक एवं व्यवस्थित अभिव्यक्ति को रचना कहा जाता है । है यह दो प्रकार की होती है- 

मौखिक रचना ,  लिखित रचना । 

रचना शिक्षण के उद्देश्य 

  • अभिव्यक्ति में मौलिकता लाना । 
  • भाषा के मौखिक रूप पर अधिकार करना ।
  • शुद्ध उच्चारण के साथ सर्वमान्य भाषा का प्रयोग करना । 
  • अवसर के अनुकूल शब्दावली का प्रयोग करना । 
  • उचित गति से सुन्दर , स्पष्ट लेख लिखना । 
  • निरीक्षण , तर्क , कल्पना शक्ति का विकास करना ।

अच्छी रचना : अपेक्षित गुण व विशेषताएं 

मौलिकता , भाषा सुबोध , विषयानुकूल  , विचार / भाव का उचित क्रम में विकास , विचारों में विरोधाभास नही , वर्तनी / शुद्ध उच्चारण , विराम चिन्हों का प्रयोग, वाक्य विन्यास ठीक , लेख साफ व सुन्दर हो ।

रचना - शिक्षण को रुचिकर कैसे बनाएं ? 

मानसिक स्तर का ध्यान रखें , भाषा आम बोलचाल की हो शिक्षण सूत्रों पर आधारित हो , पहले मौखिक - फिर लिखित , छात्र अधिक से अधिक सक्रिय हो , प्रतियोगिताएं करवाना , रचना कार्य का उचित संशोधन। 

रचना शिक्षण की विधियाँ 

  • प्रश्नोत्तर विधि 

जिस विषय पर रचना कार्य कराना हो उससे संबंधित प्रश्न पूछकर विषय को स्पष्ट करना । प्रश्न क्रम से पूछे जाएं ।

  • खेल विधि 

खेल के माध्यम से रचना करना सिखाना । शब्दों को जोड़ना , वाक्य बनाना आदि ।

  • देखो और कहो विधि 

चित्र , वस्तु दिखाकर , क्रम से प्रश्न पूछना । 

  • चित्र वर्णन विधि 

रचना से संबंधित चित्र बच्चों के सामने प्रस्तुत करके प्रश्न पूछकर ।

  • रूपरेखा विधि 

संबंधित विषय की संक्षिप्त रूपरेखा देकर रचना करवाना ।

  • शब्द प्रदान विधि 

किसी दृश्य वस्तु से संबंधित कुछ शब्द दिए जाएं और बच्चे उसकी सहायता से मौखित रूप से प्रश्न बनाएँ । 

  • अनुकरण विधि

शिक्षक द्वारा बच्चों के सामने निबंध , कहानी आदि के लेखन का स्वयं नमूना प्रस्तुत करके । 

निबन्ध रचना 

निबन्ध का अर्थ है , अच्छी प्रकार बंधी हुई रचना । इसमें अपने भावों व विचारों को उचित क्रम में सर्वमान्य भाषा का प्रयोग करते हुए व्यक्त किया जाता है । 

निबन्ध के अंग

प्रस्तावना 

पाठक को विषय का परिचय देकर उसे विषय की ओर आकृष्ट करना । 

विषय - प्रसार 

मुख्य विषय के विचारों की क्रमबद्ध प्रस्तुति । 

उपसंहार

समस्त निबंध का सार प्रस्तुत करना । 

निबन्ध के उद्देश्य

  • उचित व कम शब्दों में भाव व्यक्त करने की क्षमता विकास ।
  • शब्द - कोश विकसित करना ।
  • तर्क शक्ति का विकास करना । 
  • लेखन में स्पष्टता व शुद्धता लाना ।

पत्र – रचना

दूर स्थानों में रहनेवाले अपने मित्रों के साथ सम्पर्क बनाए रखने का उपाय पत्र - लेखन भी है । 

पत्र के भाग या अंग

प्रेषक ( पत्र भेजने वाला ) का पता , तिथि , सम्बोधन ( आदरणीया पिता जी ) , अभिवादन , पत्रारम्भ , पत्र की समाप्ति, आत्मनिर्देश ( आपका आज्ञाकारी पुत्र आदि ) , हस्ताक्षर , पत्र पानेवाले ( प्रेषिति ) का पता , मूल विषय

पत्र लेखन के नियम

  • भाषा सरल व रोचक हो । 
  • विषय - वस्तु स्पष्ट हो ।
  • विराम - चिह्नों का प्रयोग हो । 
  • विचारों की अभिव्यक्ति में सजीवता हो ।
  • बात को दोहराया न जाए । 
  • आत्मीयता की अभिव्यक्ति हो । 
  • शिष्टाचार के नियमों का पालन हो ।

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