भाषायी कौशलों का विकास Linguistic Skills Development

 भाषायी कौशलों का विकास
Linguistic Skills Development

भाषायी कौशलों का विकास  Linguistic Skills Development


भाषा कौशल का अर्थ

भाषा कौशल से तात्पर्य है।भाषा के ठीक तरह से काम करने की योग्यता या सामर्थ्य हासिल करना । अर्थात् बालक की संप्रेषण क्षमता भाषा कौशलों की दक्षता पर निर्भर होती है। भाषा की प्रभावशीलता का मानदंड बोधगम्यता है। जिन भावो एवं विचारों की अभिव्यक्ति करना चाहते है उन्हें कितनी सक्षमता से बोधगम्य कराते है यह भाषा कौशलों के उपयोग पर निर्भर होता है।'

बालक सुनकर , बोलकर , पढ़कर और लिखकर विचारों का आदान - प्रदान करता है । ये ही भाषाई कौशल कहे जाते हैं । कौशल में प्रवीणता के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है । बच्चे में अनुकरण की प्रवृत्ति होने के कारण वह कौशल का अनुकरण बड़ी तीव्रता से करता है । 

बालक भाषा के इन चारों कौशलों सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना में पूर्ण रूप से दक्षता हासिल कर सके। बालक के भाषा सीखने पर यदि उसका भाषा के उपरोक्त चारों कौशल पर पूर्णतः अधिकार ना हो तब भाषा कौशल अधूरा रह जाता है । अतः अध्यापक को चाहिए कि वह बालक के भाषा शिक्षण के दौरान भाषा के चारों कौशलों का सामान रूप से विकास करवाए ।

भाषा कौशल चार प्रकार के होते हैं , जिनका क्रम है- 

  • श्रवण (सुनना) (Listening Skill)
  • भाषण (बोलना) (Speech Skill )
  • पठन (पढ़ना ) (Reading Skill)
  • लेखन (लिखना) (Writing Skill)

Listening Skill+Speech Skill + Reading Skill +Writing Skill = L+S+R+W

इन भाषा कौशलों  को दो भागों में बाटा गया है -

  1. प्रधान कौशल
  2. गौण कौशल

प्रधान कौशल 

भाषा का सर्वप्रथम कार्य संप्रेषण करना ही है। संप्रेषण भाषा के बिना अधूरा है । संप्रेषण के लिए हमें भाषा के उच्चरित रूप की  आवश्यकता होती है । भाषा का उच्चरित वह रूप है जिसे एक निरक्षर व्यक्ति भी प्रयोग करता है । इसलिए इससे संबंधित कौशल ही प्रधान कौशल कहे जाते हैं । इसके दो रुप हैं -

  1. श्रवण ( सुनना ) (Listening Skill)
  2. भाषण ( बोलना ) (Speech Skill)

गौण कौशल 

बालक अपनी प्रारंभिक भाषा परिवार और समाज से सीखता है । परिवार और समाज ही भाषा सीखने का उसका प्रथम स्कूल होता है । उसके बाद वह विद्यालय जाकर लिखना-पढ़ना सीखता है । इस प्रकार के भाषा शिक्षण को गौण कौशल के अंतर्गत परिभाषित किया गया है । इसके भी दो रुप हैं – 

  1. पठन (पढ़ना) (Reading Skill)
  2. लेखन (लिखना) (Writing Skill)

श्रवण कौशल (Listening Skill)

'श्रवण' शब्द संस्कृत भाषा की 'श्रु' धातु से बना है जिसका अर्थ 'सुनने' और 'अधिगम' करना है । 'श्रवण' अंग्रेजी के शब्द 'Listening' शब्द का पर्याय है । 'श्रवण' केवल ध्वनियों को सुनना भर नहीं है बल्कि उन ध्वनियों को सुनकर उसका अर्थ समझने, सुनी हुई बातों पर चिंतन मनन करने और अर्थ की प्रतिक्रिया देने से है । अर्थात ‘श्रवण’ किसी भी व्यक्ति के द्वारा प्रयुक्त ध्वनियों , शब्दों एवं वाक्यों को कानों के माध्यम से ग्रहण कर उसका अर्थ ग्रहण करने की क्रिया ' श्रवण ' कही जाती है ।

भाषा सीखने का प्रथम चरण श्रवण है । श्रवण कौशल के लिए मस्तिष्क की एकाग्रता एवं इंद्रियों का संयम होना अत्यंत आवश्यक है । बालक के जन्म लेने के उपरांत उसकी प्रारंभिक शिक्षा उसकी श्रवण शक्ति पर निर्भर करती है । यदि छात्र की श्रवण इन्द्रियों में दोष है, तो वह न भाषा सीख सकता है और न अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कर सकता है। अत: उसका भाषा ज्ञान शून्य के बराबर ही रहेगा। बालक सुनकर ही अनुकरण द्वारा भाषा ज्ञान अर्जित करता है।

श्रवण कौशल के उद्देश्य

सुनकर अर्थ ग्रहण करना

उच्चारण को सुनकर शुद्ध उच्चारण का अनुकरण  

सुनकर महत्त्वपूर्ण तथ्यों का चयन करना 

वक्ता के मनोभावों को समझने की निपुणता 

प्रसंगानुकूल अर्थ व भाव समझना

सारांश ग्रहण कर सकना

श्रवण कौशल शिक्षण का महत्व

बच्चा जन्मोपरान्त ही सुनने लग जाता है। ये ध्वनियाँ उसके मन मस्तिष्क पर अंकित हो जाती हैं। ये अंकित ध्वनियाँ ही बच्चे के भाषा ज्ञान का आधार बनती हैं। अच्छी प्रकार से सुनने के कारण ही बालक ध्वनियों के सूक्ष्म अन्तर को समझ पाता है।

श्रवण कौशल ही अन्य भाषायी कौशलों को विकसित करने का प्रमुख आधार बनता है।

इससे ध्वनियों के सूक्ष्म अन्तर को पहचानने की क्षमता विकसित होती है।

इसे अध्ययन की आधारशिला भी कहा जाता है।

इससे वाचन कौशल का विकास होता है।

इससे लेखन कौशल के विकास में भी सहायता मिलती है|

श्रवण कौशल शिक्षण के गुण

शुद्धता

प्रभविष्णुता

मधुरता

शिष्टता

व्यावहारिकता 

अवसरवादिता

गतिशीलता

स्वाराघात

श्रवण कौशल के माध्यम

सस्वर वाचन

धैर्यपूर्वक सुनना प्रश्नोत्तर करना

कहानी कहना व सुनना 

श्रुत लेख 

भाषण

वाद – विवाद

दृश्य - श्रव्य सामग्री - टेपरिकार्डर - रेडियो , चलचित्र , दूरदर्शन , वीडियो । 

श्रवण कौशल के विकास में बाधाएं

सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि अनेक छात्र शिक्षक द्वारा विषय वस्तु को ध्यान पूर्वक नहीं सुनते हैं इससे शिक्षक क्रोधित होकर उन पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हैं तथा उनको दंड प्रदान करते हैं इससे उनका मनोबल टूट जाता है तथा छात्र विद्यालय व्यवस्था में अरुचि करने लगते हैं। श्रवण कौशल के विकास में कुछ प्रमुख समस्याएं हैं –

शैक्षिक वातावरण का अभाव

कठिन भाषा का प्रयोग

अशुद्ध उच्चारण

शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रयोग का अभाव

श्रवण कौशल विकास को प्रभावी बनाने के तरीके

भाषा शिक्षक का यह प्रमुख दायित्व होता है कि वह भाषा संबंधी कौशलों के विकास में अपना पूर्ण योगदान प्राप्त करे । श्रवण कौशल भाषा का प्रथम एवं महत्वपूर्ण सोपान है इसलिए कक्षा एवं विद्यालय स्तर पर श्रवण कौशल के विकास हेतु तथा इसके विकास मार्ग में आने वाली विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए-

व्यक्तिगत भिन्नता के सिद्धांत पर कार्य करते हुए शिक्षण ( प्रत्येक छात्र की क्षमताएं भिन्न होती है । ) अतः छात्रों की योग्यता के अनुसार शिक्षण ।

वातावरण निर्माण ( शिक्षण से पूर्व छात्रों को शारिरिक व मानसिक तौर पर शिक्षण हेतु तैयार करना । ) यथा - बैठने की उचित व्यवस्था तथा शांत वातावरण ।

रुचि निर्माण व उचित अभिप्रेरणा ।

स्तरानुसार शिक्षण विधियों का चयन ।

अवसरानुकूल शिक्षण सहायक सामग्री का चयन । यथा - टेपरिकार्डर - रेडियो , चलचित्र , दूरदर्शन , वीडियो

डॉक्टर किशोरी लाल शर्मा के अनुसार

"श्रवण कौशल में केवल ध्वनि श्रवण का ही समावेश नहीं होता है, अपितु जो कुछ हम सुनते हैं, उसे पहचानते हैं, समझते हैं और अर्थ ग्रहण करके उसे स्मरण रखते हैं इसी प्रकार किसी भाषण को ग्रहण करने की प्रक्रिया को निष्क्रिय नहीं कहा जा सकता, यह एक कड़ी है तथा सोद्देश्य है ।"

भाषण कौशल(Speech Skill )

भाषण का अर्थ है "मौखिक अभिव्यक्ति" । अंग्रेजी में इसे "Speaking" या "Speech" कहते हैं। जब छात्र अपने विचारों एवं भावों को स्पष्ट रूप से प्रकट करने का प्रयास करता है, तो उसे भाषण कौशल का सहारा लेना पड़ता है । भाषण कौशल के आधार पर ही उनकी अभिव्यक्ति का मूल्यांकन किया जाता है । जब एक छात्र सस्वर एवं धाराप्रवाह रूप में बोलते हुए अपने विचारों को प्रस्तुत करता है,तो यह माना जाता है कि उसमें वाचन कौशल की योग्यता है ।

न्यूइस के अनुसार 

वाचन एक साधन है जिसके द्वारा बालक मानव जाति के द्वारा संचित सम्पूर्ण ज्ञान से परिचित होता है । 

फ्रांसीसी लेखक कार्लाइल के अनुसार

 "भाषण के दौरान कुछ पल का विराम और मौन भाषण शक्ति को प्रखर बनाते हैं।"

भाषण कौशल के उद्देश्य

छात्रों में अपने भाव एवं विचारों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुतीकरण की योग्यता का विकास करना जिससे कि वे सभी तथ्यों का सारगर्भित प्रस्तुतीकरण कर सकें|

छात्रों में क्रमिक रूप से तथा धाराप्रवाह रूप में बोलने की क्षमता विकसित करना है जिससे विभिन्न प्रकरणों पर अपनी दक्षता का प्रदर्शन कर सकें|

अच्छा वाचन सीखने से लिखित भाषा सीखने में मदद मिलती ।

छात्रों में संकोच एवं झिझक को दूर करके आत्मविश्वास की भावना जागृत करना तथा जिससे भाषा के अनेक प्रकरणों पर धारा प्रवाह रूप में आत्मविश्वास के साथ बोल सकें|

छात्रों में प्रसंगानुसार मुहावरे एवं लोकोक्तियां के प्रयोग की क्षमता विकसित करना जिससे वे अपने प्रस्तुतीकरण को प्रभावोत्पादक बना सकें|

विचारों की मौखिक एवं लिखित सजीव अभिव्यक्ति करने में सक्षम बनाना । 

भाषण कौशल संबंधी प्रमुख बाधाएं

भाषा कौशल के विकास में अनेक प्रकार की समस्याएं भाषा शिक्षक द्वारा अनुभूत की जाती है,इन समस्याओं के कारण ही भाषण कौशल का विकास संभव नहीं हो पाता है इसलिए छात्रों में सर्वप्रथम भाषण कौशल के विकास हेतु उनके मार्ग की बाधाओं को जानना तथा उन्हें दूर करना एक भाषा शिक्षक का प्रमुख दायित्व है| भाषण कौशल की प्रमुख समस्याएं निम्न हैं -

आत्मविश्वास के अभाव

शब्दों का अशुद्ध उच्चारण

दोषपूर्ण वाक्यों का प्रयोग

प्रकरण एवं विधा की आवश्यकता के अनुसार भाव एवं लय का अभाव

भाषण कौशल के विकास के उपाय

बालक में आत्मविश्वास की भावना विकसित करना ।

छात्रों को भाषण संबंधी प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करना तथा समय-समय पर उनको पृष्ठ पोषण प्रदान करना ।

उचित विधियों-प्रविधियों का आवश्यकतानुसार प्रयोग ।

सहायक सामग्री का प्रयोग ।

भाषण कौशल की विधियां

चित्र वर्णन , वार्तालाप , कहानी कथन ,

कविता पाठ , सस्वर वाचन , समवेत बाचन , 

प्रश्नोत्तर , अंत्याक्षरी , वाद - विवाद 

~ इन्हें भी देखें ~

शिक्षण विधियाँ

हिंदी व्याकरण e-book

पठन कौशल (Reading Skill)

पठन का सामान्य अर्थ पढ़ना है । पठन शब्द संस्कृत भाषा की ‘पठ’ धातु से बना है जिसका अर्थ लिपि बद्ध लेख को पढ़कर अर्थ ग्रहण करना । इस प्रकार पठन कौशल से तात्पर्य किसी लिखी गयी सामग्री को पढ़कर उसके अर्थ ग्रहण करने से है । शुद्ध पठन की प्रक्रियाओं में अक्षर ज्ञान सबसे पहली आवश्यकता है । इसके अभाव में छात्र द्वारा शुद्ध उच्चारण उचित गति , स्वर तथा आरोह - अवरोह के साथ पठन कठिन ही नहीं , असंभव भी है । इस दृष्टि से पठन - कौशल शिक्षण के दो अंग हैं- 

  1. अक्षर ज्ञान
  2. पठन अभ्यास 

कैथरीन ओकानर के अनुसार

 “ पठन वह जटिल अधिगम प्रक्रिया है, जिसमें दृश्य, श्रव्यों सर्किटों का मस्तिष्ट के अधिगम केंद्र से संबंध निहित है|"

वाचन/पठन कौशल के उद्देश्य

बालकों के स्वर में आरोह-अवरोह का ऐसा अभ्यास करा दिया जाए कि यथावसर भावों के अनुकूल स्वर में सोच कर पढें ।

छात्र पढ़कर उसका भाव समझें तथा दूसरों को भी समझाने में समर्थ हों ।

पठन संबंधी दोष

अटक-अटक कर पढ़ना।

वाचन के समय अनुचित मुद्रा, पुस्तक को आँखों सन्निकट या दूर रखना।

अशुद्ध उच्चारण।

वाचन में गति का न होना।

अक्षर या संयुक्ताक्षरों संबंधी त्रुटियाँ।

भावानुकूल आरोह-अवरोह का अभाव।

पठन कौशल शिक्षण की मुख्य विधियाँ 

अक्षर बोध विधि

इस विधि से सर्व प्रथम वर्णमाला के अक्षरों का क्रमपूर्वक ज्ञान कराया जाता है । फिर अक्षरों को जोड़कर शब्द बनाना सिखाया जाता है । जैसे हिंदी की पूरी वर्णमाला को याद कराना , फिर अक्षरों के योग से ' म ' ' ' ' ल ' = ' महल ' शब्द का ज्ञान कराना । यह विधि मनोवैज्ञानिक नहीं है । 

ध्वनि - साम्य विधि या स्वरोच्चार विधि

इस विधि में अक्षरों के नाम के स्थान पर उनकी ध्वनि पर जोर दिया जाता है । शब्दों का ज्ञान ध्वनि - साम्य के आधार पर दिया जाता है । पहले बालक ध्वनियों को मिलाकर शब्द बनाता है । इस विधि में एक साथ उच्चारित होने वाले शब्द एक साथ सिखाये जाते हैं । जैसे - माल , दाल , काल , जाल , जाग , भाग , नाग , फाग आदि । 

देखो तथा कहो विधि

इस विधि में चित्रों की सहायता से पहले शब्द सिखाये जाते हैं , उसके बाद अक्षरों का ज्ञान कराया जाता है । इसमें सिखाने की इकाई शब्द होती है । इस विधि में पठन - कौशल शिक्षण में जो हम पढ़ते हैं उनके अर्थ पर ध्यान केन्द्रित रहता है । यह विधि मनोवैज्ञानिक भी है व रोचक भी है । इस विधि में चार्ट पर ऊपर शब्द तथा नीचे वस्तु दिखाकर शब्द कहलाया जाता है । जैसे ' आम ' का चित्र दिखाकर पहले ' आम ' शब्द पढ़ना सिखाया जाता है , फिर ' आ ' ' म ' के क्रम से अक्षर । 

यह विधि अंग्रेजी भाषा में लाभकारी हो सकती है ; परन्तु हिंदी की वर्णमाला वैज्ञानिक है , इसलिए इसकी अधिक उपयोगिता नहीं है ।

वाक्य शिक्षण विधि

इस विधि की ' देखो और कहो विधि ' के साथ समता है । हम भाषा को पूरे वाक्यों में सीखते हैं । मनोवैज्ञानिक दृष्टि से वह प्रमाणित हो चुका है कि पढ़ना भी पूरे वाक्यों से शुरू करना चाहिए । हिंदी भाषा में इस विधि का अनुसरण कठिन कार्य है । इस विधि में भाषा की इकाई के रूप में वाक्य किसी चार्ट आदि पर छात्र के सम्मुख प्रस्तुत किए जाते हैं । वे इन बाक्यों को पढ़कर अभ्यास द्वारा याद कर लेते हैं । विश्लेषण द्वारा दो वाक्यों में निम्न शब्द की ओर बालक का ध्यान दिलाकर शब्द ज्ञान कराया जाता है । जैसे 

राम आम खाता है । 

श्याम आम खाता है ।

यहाँ बालक से पूछा जा सकता है कि कौन से शब्द समान हैं ।

यह विधि गैस्टालट के सीखने के सिद्धान्त के अनुकूल है कि मस्तिष्क पहले पूर्ण को देखता है तथा पूर्ण से अंश की ओर जाता है । हिंदी भाषा में मात्राओं के बिना शब्दों में बाक्य रचना असंभव सी है , इसलिए हिंदी में इनका प्रयोग अति कठिन है । 

कहानी विधि

यह विधि वाक्य विधि का ही एक रूप है । इसमें एक वाक्य के बदले अनेक वाक्य लिए जाते हैं , जो एक कहानी के रूप में होते हैं । अध्यापक कहानी का वर्णन करता है तथा घटना का चित्र दिखाता जाता है । वाक्यों की आवृत्ति की जाती है । जिस तरह वाक्य विधि का प्रयोग हिन्दी भाषा में कठिन है , उसी तरह इस विधि का प्रयोग भी हिन्दी में कठिन है । 

कविता विधि

यह विधि कहानी विधि का परिवर्तित रूप है । इसमें पद्यात्मक कहानी ली जाती है । पद्य को गाने के लिए छात्रों को कहा जाता है तथा छात्र समवत् गान में ज्यादा रुचि दिखाते हैं । 

अनुकरण विधि

इस विधि में बालक अध्यापक के शब्द बोलने पर उसका अनुकरण द्वारा उच्चारण करते हैं । यह विधि अंग्रेजी भाषा में कारगर सिद्ध हो सकती है । 

सामूहिक पाठ विधि

वास्तव में यह विधि अनुकरण विधि का ही परिवर्तित रूप है । इस विधि में पूरी कक्षा अथवा छात्रों का दल अध्यापक के पठन का अनुकरण करता है । बच्चों के गीतों का प्रयोग इस विधि में किया जा सकता है । अक्षर - ज्ञान के पश्चात् इस विधि का प्रयोग पठन - कौशल शिक्षण में अत्यन्त उपयोगी है । 

सहचर्य विधि

यह विधि डॉ . माण्टेसरी की देन है । इसमें अलग - अलग देखी हुई चीजों अथवा उनके चित्रों में और उन पर लिखे शब्दों में सहचर्य स्थापित किया जाता है । स्कूल की दीवारों पर वस्तुओं के चित्र और उनके नाम लिखकर लटका दिया जाए , फिर मालकों को उनमें सहचर्य स्थापित करने का अवसर दिया जाए । फिर कुछ कार्ड बालकों को दिए जाएं । जिनमें कुछ पर वस्तुओं के चित्र हों और कुछ पर उनके नाम । बालकों से चित्र वाले कार्ड की वस्तु की नाम वाले कार्ड को निकलवाया जाए । इस तरह बालक खेल - खेल में शब्दों का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं । अक्षर - ज्ञान के लिए यह विधि सबसे अच्छी है । 

उक्त विधियों की समीक्षात्मक दृष्टि- इन सब विधियों में कुछ न कुछ दोष हैं । इसलिए अक्षर - ज्ञान कराने तथा पठन - शिक्षण के लिए किसी एक विधि का अनुसरण अनुचित होगा । अतः परिस्थिति अनुसार एक साथ एक या अनेक विधियों का प्रयोग किया जाना चाहिए । 

लेखन कौशल (Writing Skill)

मौखिक रूप के अन्तर्गत भाषा का ध्वन्यात्मक रूप एवं भावों की मौखिक अभिव्यक्ति है। जब इन ध्वनियों को प्रतीकों के रूप में व्यक्त किया जाता है और इन्हें लिपिबऋ करके स्थायित्व प्रदान करते हैं, तो वह भाषा का लिखित रूप कहलाता है। भाषा के इस प्रतीक रूप की शिक्षा, प्रतीकों को पहचान कर उन्हें बनाने की क्रिया अथवा ध्वनि को लिपिबद्ध करना लिखना है। अन्य शब्दों में कहें तो भाषा विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम है । मनुष्य अपने भावों का प्रकाशन भाषा द्वारा ही करता है । अभिव्यक्ति दो प्रकार की होती है 

  1. मौखिक अभिव्यक्ति , 
  2. लिखित अभिव्यक्ति 

मौखिक अभिव्यक्ति

मानव अपने हृदय के भावों को प्रकट करने के लिए ध्वन्यात्मक संकेत - साधन ( शब्द , वाक्य आदि ) का प्रयोग करता है । यही मौखिक अभिव्यक्ति होती है । ये ध्वनि संकेत समाज द्वारा स्वीकृत होते हैं । 

लिखित अभिव्यक्ति

मानव अपने हृदय के भावों को प्रकट करने के लिए लिपयात्मक संकेत - साधन ( शब्द , वाक्य आदि ) का प्रयोग करता है । यही लिखित अभिव्यक्ति होती है । मौखिक बात की अपेक्षा लिखित बात अधिक स्थायी होती है । पत्र , निबंध , कहानी , उपन्यास आदि विधाओं में लिखने की कला ही पाठक को आकृष्ट करती है ।

अभिव्यक्ति के उद्देश्य

सर्वमान्य भाषा ( मानक भाषा ) का प्रयोग करना 

लेखन में प्रवाह विकसित करना 

भाषा पर अच्छा अधिकार बनाना 

विषयानुकूल भाषा - शैली का प्रयोग करना 

वाक्य - रचना के नियमों से परिचित कराना ( व्याकरण ज्ञान देना )

अभिव्यक्ति की विधियाँ 

मौखिक 

सस्वर वाचन , समवेत बाचन  , चित्र वर्णन , वार्तालाप , प्रश्नोत्तर , अंत्याक्षरी , कहानी कथन , कविता पाठ , वाद - विवाद 

लिखित 

कहानी लेखन, निबंध लेखन , पत्र लेखन , संस्मरण लेखन 

लेखन कौशल  के सोपान  

किसी मौखिक भाषा को लिखित रूप देने के लिए इस कौशल का आश्रय ग्रहण करना पड़ता है । सबसे पहले इसके लिए लेखन - जान उपलब्ध करना होता है । अक्षर अथवा लेखन ज्ञान के बाद शब्द और वाक्य की रचना का शिक्षण दिया जाता है । उपयुक्त अभ्यास हो जाने के बाद छात्र के क्रमशः भाषा रचना का अभ्यास कराया जाता है । इस प्रकार इस घटक के शिक्षण के तीन सोपान या अवस्थाएँ हैं 

  • लेखन ज्ञान या अक्षर रचना
  • शब्द तथा बाक्य रचना
  • क्रमबद्ध भाषा रचना

इन्हीं सोपानों को हम दूसरे शब्दों में अवस्थाओं के रूप में व्यक्त कर सकते हैं , यथा 

लिखने की तैयारी > अक्षर रचना > शब्द रचना और वाक्य रचना > अभ्यास एवं आदर्श लेखन ।

लेखन शिक्षण के उद्देश्य

शब्दों की शुद्ध वर्तनी लिख सकेगा।

छात्र ध्वनि, ध्वनि समूहों, शब्द, सूक्ति, मुहावरों का ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे।

विराम चिन्हों का यथोचित प्रयोग कर सकेगा।

अनुलेख, अतिलेख तथा श्रुतलेख लिख सकेगा।

व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग करने में सक्षम होंगे।

वह वाक्यों में शब्दों, वाक्यांशों तथा उपवाक्यों का क्रम अर्थानुकूल रख सकेगा।

लेखन कौशल के गुण

लेखन, सुन्दर, स्पष्ट एवं सुडौल हो।

उसमें प्रवाहशीलता एवं क्रमबद्धता हो।

विषय (शिक्षण) सामग्री उपयुक्त अनुच्छेदों में विभाजित हो।

भाषा एवं शैली में प्रभावोत्पादकता हो।

भाषा व्याकरण सम्मत हो।

अभिव्यक्ति संक्षिप्त, स्पष्ट तथा प्रभावोत्पादक हो।

लेखन कौशल शिक्षण की प्रमुख विधियाँ 

अनुकरण विधि 

शुरू - शुरू में बालक इस विधि से लिखना सीखते हैं । प्रस्तुत विधि में अध्यापक द्वारा प्रयुक्त श्यामपट्ट , स्लेट अथवा तख्ती पर लिखित अक्षरों की बालक नकल करते हैं । आम तौर पर प्राथमिक स्कूलों में अध्यापक लेखन शिक्षण के लिए बालकों की तख्ती पर पैंसिल से ' कटकनें " खींच देते हैं जिन पर बालक कलम से लिखता है । आजकल तख्तियों की बजाय कापियों का प्रयोग अधिक होने लगा है । यह ढंग इस विधि से ग्रहण किया जाता है । 

रचनात्मक विधि

इस विधि के प्रवर्तक पेस्टलॉजी नामक शिक्षा शास्त्री हैं । इसमें प्रथमतः अक्षर लेखन सिखाया जाता है । अक्षरों को पहले भिन्न - भिन्न खंडों में तोड़ लिया जाता है । तत्पश्चात् उन्हें जोड़कर अक्षर रचना कराई जाती है । इस विधि का प्रयोग हिंदी भाषा में ठीक नहीं है ।

जे क टॉट विधि

इस विधि में बालकों के सम्मुख अक्षर अथवा शब्दों की जगह पर पूरा वाक्य प्रस्तुत किया जाता है । वे अनुकरण द्वारा वाक्य का एक - एक शब्द लिखते हैं । तत्पश्चात् उस वाक्य को स्मृति के आधार पर लिखने के लिए उन्हें कहा जाता है । 

संश्लेषण विधि

यह विधि भी रचनात्मक विधि की भाँति ' सरल से कठिन की ओर ' सिद्धान्त सूत्र को अपनाती है । पहले सरल रेखाएँ खींची जाती हैं तथा पुनः उनके संश्लेषण से अक्षर बनाने सिखाए जाते हैं । 

तुलना विधि

बालकों के लिए यह विधि उन प्रदेशों में अत्यन्त लाभकारी है , जहाँ हिंदी भाषा द्वितीय भाषा के रूप में चौथी अथवा पाँचवीं कक्षा से पढ़ाई जाती है । बालक अपनी मातृ - भाषा का लेखन सीखे हुए होते हैं । वे हिंदी के अक्षरों का सम्बन्ध अपनी मातृ - भाषा के अक्षरों से जोड़ते हैं और भेद तथा साम्य दोनों को समझने के पश्चात् लेखन का अनुकरण करते हैं ।

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