सम्बन्धबोधक , विस्मयादिबोधक , निपात Interjection, Exclamation , Fall
सम्बन्धबोधक
वे अव्यय जो संज्ञा या सर्वनाम के बाद आते हैं एवं उनका सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्दों से बताते हैं , उन्हें सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं ।जैसे –
ओर , अपेक्षा , तुल्य , वास्ते , विशेष , पलटे , जैसे , ऐसे , करके , मारे आदि ।
उदाहरण
कल की अपेक्षा आज ठीक है ।
चीन व भारत के मध्य सीमा को लेकर टकराव चल रहा है ।
बस स्टेण्ड के पास विद्यालय है ।
समय प्रतिकूल हो तो अच्छे-अच्छे हार मान लेते हैं ।
इन उदाहरणों में अपेक्षा , मध्य , पास , प्रतिकूल आदि सम्बन्धबोधक अव्यय हैं ।
सम्बन्धबोधक अव्यय के भेद
भाषा की सुविधा की दृष्टि से सम्बन्धबोधक अव्यय के 14 भेद स्वीकार किये गये हैं । जो निम्न हैं –- दिशाबोधक – सामने , ओर , आर-पार , प्रति , तरफ , पार , आस-पास आदि ।
मेरा घर नदी के आस-पास ही है ।
- समयबोधक – पहले , बाद , उपरांत , आगे , पूर्व , पीछे आदि ।
भोजन के उपरांत हम फिर मिलेंगे ।
- स्थानबोधक – ऊपर , नीचे , मध्य , बाहर , भीतर , सामने , निकट , यहाँ , वहाँ , नजदीक , अंदर आदि ।
पहाड़ के ऊपर मन्दिर है ।
- सदृश्यबोधक - सदृश , बराबर , ऐसा , जैसा , अनुसार , समान , तुल्य , नाई , अनुरूप , तरह आदि ।
आपकी वेशभूषा आपके कार्य के अनुरूप होनी चाहिए ।
- विनिमयबोधक - एवज , पलटे , के बदले , की जगह आदि ।
पैसे की एवज में जमीन देदो ।
- व्यतिरेकबोधक - अतिरिक्त , अलावा , सहित , सिवाय आदि ।
वहाँ मेरे ओर आपके अतिरिक्त कोई नही होगा ।
- सहबोधक - साथ , संग , समेत , पूर्वक , अधीन , स्वाधीन , वश आदि ।
हम 26 जनवरी 1950 को स्वाधीन हुए ।
- पार्थक्य बोधक - दूर , पृथक , परे , हटकर , आदि ।
क्या आप कुछ हटकर खड़े हो सकते हैं ?
- साधन बोधक - विरुद्ध , जरिये , निमित्त , हाथ , मारफत , सहारे आदि ।
हम तो निमित्त मात्र हैं ।
- विरोधबोधक - प्रतिकूल , उलटे , विपरीत , खिलाफ आदि ।
धारा के विपरीत चलना हमेशा समझदारी नही है ।
- हेतुबोधक - कारण , हेतु , लिए , निमित्त , वास्ते , खातिर आदि ।
तुम किस हेतु से यहाँ आये हो , मैं जानता हूं ।
- तुलनाबोधक - की अपेक्षा आदि ।
राम की अपेक्षा श्याम पढ़ने में अच्छा है ।
- संग्रहबोधक - मात्र , भर , पर्याप्त , तक आदि ।
यह हमारे लिए पर्याप्त होगा ।
- विषयबोधक - भरोसे , लेखे , नाम , विषय , बाबत् आदि ।
बच्चे अब तुम्हारे भरोसे यहाँ है ।
ये भी देखें
विस्मयादिबोधक
जिन शब्दों से बोलने वाले या लिखने वाले के विस्मय , हर्ष , शोक , लज्जा , ग्लानि आदि मनोभाव प्रकट होते हैं उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं ।विस्मयादिबोधक के भेद
- हर्षबोधक- वाह - वाह !, धन्य - धन्य !, आहा !, शाबाश !
शाबाश! ऐसे ही पढ़ते रहो ।
- शोकबोधक- हाय !, आह !, हा - हा !, त्राहि - त्राहि !
हाय! ये क्या हो गया ।
- आश्चर्यबोधक- अहो !, ओह ! , ओहो ! हैं ! क्या !
क्या! तुम सचमुच अमेरिका जा रहे हो ।
- अनुमोदनबोधक- अच्छा !, हाँ - हाँ !, वाह ! शाबाश !
अच्छा! तो तुम्हें नोकरी मिल गयी ।
- तिरस्कारबोधक - छि : ! , हट !, अरे ! धिक् !
छि:! ऐसा करते हुए शर्म नही आती ।
- स्वीकृतिबोधक- अच्छा !, ठीक !, बहुत अच्छा !, हाँ !, जी हाँ !
बहुत अच्छा! हम अवश्य आएंगे ।
- संबोधनबोधक- अरे ! रे ! अजी !, अहो ! आदि ।
रे! इधर आना ।
विशेष
कभी - कभी संज्ञा , सर्वनाम , विशेषण आदि शब्द भी विस्मयादिबोधक का काम करते हैं ।जैसे
- संज्ञा- राम राम ! , शिव - शिव ! जय गंगे !, श्री कृष्ण ! आदि ।
राम-राम! कैसा समय आ गया ।
- सर्वनाम- यही ! कौन ! क्या !, तूने आदि ।
क्या! तूने ये किया ।
- विशेषण - सुन्दर !, अच्छा !, खूब !, बहुत अच्छे ! जंगली ! आदि ।
सुन्दर! सुंदर इसे ही कहते हैं ।
- क्रिया- चला जाँऊ !, चुप रहो !, आ गये ! आदि ।
चुप रहो! कोई सुन लेगा ।
निपात
वे सहायक पद जो वाक्यार्थ में नवीन अर्थ या चमत्कार उत्पन्न कर देते हैं , निपात कहलाते हैं ।जैसे –
ही , तक , तो , भी , सा , जी , मत , यह , क्या आदि ।
इनका कोई भी लिंग या वचन नहीं होता । निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य का अंग नहीं होते हैं । निपात का कार्य शब्द समूह को बल प्रदान करना है ।
निपात के भेद
- स्वीकारात्मक- हाँ जी , जी , हाँ
हाँ , मैं जयपुर गया था ।
- नकारात्मक- जी नहीं , नहीं
नहीं , तुम ऐसा नही कर सकते ।
- निषेधात्मक- मत
मत जाओ ।
- प्रश्नबोधक- क्या
क्या हम साथ नही पढ़ सकते ?
- विस्मयात्मक- काश
काश तुम मुझे पहले मिले होते ।
- तुलनात्मक- सा
गुलाब सा महक रहे हो ।
- अवधारणात्मक- ठीक , लगभग , करीब , तकरीबन
लगभग सभी आएंगे ।
- आदरात्मक- जी
जी जो आपकी इच्छा ।
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