ध्वनि सिद्धांत Dhvani Siddhaant

 ध्वनि सिद्धांत Dhvani Siddhaant 

ध्वनि सिद्धांत

भारतीय काव्यशास्त्र में ध्वनि सिद्धान्त का विशेष महत्व है ।  ध्वनि सम्प्रदाय के प्रवर्तन का श्रेय आचार्य आनन्दवर्धन को दिया जाता है । उन्होंने अपने ग्रन्थ ' ध्वन्यालोक ' में ध्वनि का व्यवस्थित एवं व्यापक विवेचन किया है । उन्होंने ध्वनि को काव्य की आत्मा मानते हुए कहा है— “ काव्यात्माध्वनिरितिः " अर्थात् ध्वनि काव्य की आत्मा है । 

प्रतीयमान अर्थ

आनन्दवर्धन ने प्रतीयमान अर्थ को ही ध्वनि माना है । 

प्रतीयमानं पुनरन्यदेव वस्त्वस्ति वाणीषु महाकवीनाम् । 

यततत्प्रसिद्धावयवातिरिक्तं विभाति लावण्यमिवांगनासु ॥

अर्थात् “ महाकवियों की वाणी में वाच्यार्थ से भिन्न प्रतीयमान अर्थ कुछ और ही वस्तु है जो सुन्दरियों के लावण्य के समान अलग ही प्रकाशित होता है । 

प्रमुख ध्वनिवादी आचार्य 

  • आचार्य आनन्दवर्धन 
  • अभिनवगुप्त
  • आचार्य मम्मट
  • आचार्य विश्वनाथ 
  • पण्डितराज जगन्नाथ

आचार्य मम्मट के अनुसार काव्य के तीन प्रकार हैं - 

ध्वनि काव्य 

गुणीभूत व्यंग्य 

चित्र काव्य 

ध्वनि काव्य

वाच्यार्थ की अपेक्षा व्यंग्यार्थ प्रमुख होता । इसे उत्तम काव्य माना गया है । 

गुणीभूत व्यंग्य

वाच्यार्थ या तो व्यंग्यार्थ के समान महत्व का होता है या फिर उससे अधिक प्रभावी होता है । इस प्रकार के काव्य को मध्यम कोटि का काव्य माना गया है।

चित्र काव्य

व्यंग्यार्थ का नितान्त अभाव होता है , उसमें केवल शब्दगत और अर्थगत चारुता ही रहती है । इस प्रकार के काव्य को अधम काव्य माना जाता है । 


ध्वनि का उदाहरण 

माली आवत देखि कैं कलियन करी पुकार ।

फूली - फूली चुनि लईं काल्ह हमारी बार ॥ 

सामान्य अर्थ

एक बगीचे में माली को अपनी ओर आता देखकर कलियां कहने लगी कि , आज जो कलियां फूल बन चुकी थी उन्हें तो इस माली ने आज तोड़ लिया कल हम भी खिल कर फूल बनेंगी और ये हमे भी तोड़ लेगा ।

विशिष्ट अर्थ

किन्तु इसका व्यंग्यार्थ जीवन की क्षणभंगुरता को व्यक्त करता है । काल इस संसार से एक - एक करके सबको उठा रहा है , आज एक की बारी है तो कल हमारी बारी होगी ।

यही कवि का अभिप्रेत अर्थ है । यही प्रतीयमान अर्थ है और यही अर्थ प्रमुख होने से यहां ' ध्वनि काव्य ' माना जाएगा । 

ध्वनि के भेद

आचार्यों ने ध्वनि के 51 भेद किए हैं । किन्तु उनका मूल आधार शब्द शक्तियों को ही माना है । इस आधार पर ध्वनि के तीन प्रमुख भेद हैं

अभिधामूला ध्वनि 

लक्षणामूला ध्वनि 

व्यंजनामूला ध्वनि


अभिधामूला ध्वनि

अभिधामूला ध्वनि में पहले अभिधेयार्थ निकलता है और फिर व्यंग्यार्थ की प्रतीति होती है । 

लक्षणामूला ध्वनि 

लक्षणामूला ध्वनि का मूल आधार लक्ष्यार्थ है । लक्ष्यार्थ के उपरान्त इसमें व्यंग्यार्थ की प्रतीति होती है । 

व्यंजनामूला ध्वनि 

व्यंजनामूला ध्वनि में ध्वनि का मूल आधार व्यंग्यार्थ ही होता है ।

व्यंजनामूला ध्वनि के भेद

वस्तु ध्वनि 

अलंकार ध्वनि

रस ध्वनि ।


 ध्वनि का महत्व

ध्वनिवादी आचार्य ध्वनि का व्यापक अर्थ ग्रहण करते हैं तथा रस , अलंकार , रीति , गुण , औचित्य आदि सभी तत्वों को ध्वनि का सहायक उपादान मानते हैं । ध्वनि सिद्धान्त ने काव्य में व्यंग्यार्थ के महत्व को प्रतिपादित किया तथा ' रस - ध्वनि ' को काव्य की आत्मा के रूप में प्रतिष्ठित करने में भी इस सम्प्रदाय का योगदान रहा । इसके अनुसार रस व्यंजना का व्यापार है , वह व्यंग्य ही होता है । यही ' रस ध्वनि ' काव्य की आत्मा है । ध्वनिवादियों का यह भी मत है कि केवल शब्दार्थ ही काव्य नहीं है , अपितु उससे ध्वनित एवं व्यंजित होने वाला अर्थ काव्य है । ध्वनि की सत्ता व्यंग्यार्थ पर आधारित है , दूसरे शब्दों में ध्वनि व्यंजना व्यापार है इसीलिए आचार्य आनन्दवर्धन ने ' रस ध्वनि ' को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया । 


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2 comments

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Hindi greema
admin
1 जुलाई 2021 को 8:25 am बजे

आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद!
उम्मीद भविष्य में भी इसी तरह प्रोत्साहित करते रहेंगे।

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उत्साहवर्धन के लिये धन्यवाद!
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