मुंशी प्रेमचंद
Munshi Premchand
31 जुलाई 1880-8 अक्तूबर 1936
प्रेमचंद का जीवन परिचय
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई , 1880 को बनारस के पास लमही नामक गाँव में हुआ था । इनके पिता का नाम मुंशी अजायबलाल और माता का नाम आनंदी देवी था । इनके पिता डाकखाने में मुंशी थे । शायद इसी कारण प्रेमचंद को भी मुंशी प्रेमचंद लिखने की परंपरा रही है । इनका बचपन का नाम धनपतराय श्रीवास्तव था स्कूल में उनका यही नाम लिखवाया गया था । साहित्य लेखन के लिए उन्होंने नवाबराय नाम तय किया इसी नाम से उन्होंने उर्दू में कहानियाँ लिखना का प्रारम्भ किया । आठ वर्ष की अवस्था में इनकी माता का देहान्त हो गया । बाद में इनके पिता ने दूसरा विवाह किया । इस विमाता से प्रेमचंद की अनबन रहती थी , जिसका उल्लेख उन्होंने किया है । इसके बाद मात्र 15 वर्ष की उम्र में प्रेमचंद का भी विवाह हो गया । पत्नी से भी प्रेमचंद की पटरी नहीं बैठी । कहते हैं कि विमाता और उनकी पत्नी के भी संबंध अच्छे नहीं थे । इस गृह कलह तथा अन्य कारणों से प्रेमचंद ने उन्हें त्याग दिया । उनकी पत्नी बहुत दिनों तक अपने भाइयों के पास ही रही प्रेमचंद ने दूसरा विवाह कर लिया । इस बार उन्होंने बाल विधवा शिवरानी देवी से विवाह किया , जो जीवन भर उनके साथ रहीं । इस विवाह का कारण आर्य समाज के प्रभाव को माना जाता है । फिर जल्दी ही प्रेमचंद के पिता का देहांत हो गया , तब परिवार की सारी आर्थिक सामाजिक जिम्मेदारी प्रेमचंद पर आ गई । प्रेमचंद के दो पुत्र और एक पुत्री हुई । उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को पर्याप्त शिक्षा दी , लेकिन पुत्री को ज्यादा नहीं पढ़ाया तथा उसका जल्दी ही विवाह भी कर दिया ।
क्वींस कॉलेज , बनारस से प्रेमचंद दसवीं की परीक्षा पास की 1899 प्रेमचंद ने सहायक अध्यापक की नौकरी करनी प्रारम्भ की उनका वेतन 18 रुपया मासिक तय हुआ प्रेमचंद ने स्वयं लिखा है कि वे गणित में कमजोर थे मिशन स्कूल चुनार से उनके शिक्षक जीवन का प्रारम्भ हुआ । कई शहरों उनका तबादला हुआ बहराइच , प्रतापगढ़ आदि स्थानों पर वे रहे । बाद में महोबा , गोरखपुर , कानपुर में भी उनकी नियुक्ति रही । जुलाई , 1902 में वे शिक्षकों की ट्रेनिंग के लिए इलाहाबाद गये । यहाँ उन्हें जूनियर सर्टिफिकेट टीचर की उपाधि मिली । इस उपाधि में लिखा है , ' गणित पढ़ाने की योग्यता नहीं रखते । चाल - चलन संतोषजनक है और समय के पाबन्द है । धनपत राय ने अपना काम खूब मेहनत से और अच्छी तरह किया । 1904 में प्रेमचंद ने उर्दू और हिंदी में स्पेशल वर्नाकुलर की परीक्षा पास की । प्रेमचंद को पढ़ने का शौक बचपन से ही था । प्रेमचंद ने स्कूली शिक्षा के बाद में हिन्दी व उर्दू के अनेकों उपन्यास व कहानियां पढ़कर स्वाध्याय के द्वारा अपने ज्ञान का विस्तार किया । इन्हें हिंदी , अंग्रेजी , फारसी और उर्दू का ज्ञान था लेखन का प्रारम्भ उन्होंने उर्दू में किया । बाद में उन्होंने हिंदी में लिखना प्रारम्भ किया हिंदी में लिखने के बावजूद वे उर्दू में भी लिखते रहे । इस तरह वे भारतीय भाषाओं के उन गिने - चुने लेखकों में से एक थे , जो हिंदी और उर्दू दोनों पर समान भाव से अधिकार रखते थे और जिन्हें दोनों भाषाओं के लेखक अपनी परंपरा में शामिल करते हैं । प्रेमचंद ने बी.ए. तक की शिक्षा ग्रहण की महोबा रहते हुए उनकी पदोन्नति हो गई और वे स्कूल इंस्पेक्टर बना दिए गए । यह समय भारतीय इतिहास में महात्मा के स्थापित होने के पहले का था । धीरे - धीरे गाँधी जी देश के सर्वमान्य नेता बने । गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन का प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया था । 8 फरवरी , 1921 को गाँधी जी इलाहाबाद पहुॅचे और एक जन सभा को संबोधित किया । प्रेमचंद इस सभा में उपस्थित थे । इस सभा में महात्मा गाँधी ने जनता से सरकार के असहयोग की अपील की । इसका प्रेमचंद के मन पर अनुकूल प्रभाव पड़ा । घर - परिवार में पत्नी से सलाह करके उन्होंने फरवरी , 1921 को सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया । नौकरी छोड़ने के बाद प्रेमचंद महावीर प्रसाद पोद्दार के साथ चले गए और चर्खे का प्रचार करने लगे । फिर उन्होंने मारवाड़ी स्कूल कानपुर काशी विद्यापीठ आदि कई निजी संस्थानों में अध्यापकी की , परन्तु ये कहीं भी एक जगह स्थिर होकर नहीं रहे । इस बीच उन्होंने पत्रकारिता का कार्य भी किया । कुछ दिनों तक उन्होंने मर्यादा ' का संपादन भी किया । इन्होंने जुलाई 1923 में बनारस में सरस्वती प्रेस की स्थापना की । इसी प्रेस से बाद में प्रेमचंद ने ' हंस ' और ' जागरण ' को प्रकाशित किया । प्रेमचंद ने उस समय की प्रतिनिधि पत्रिका ' सरस्वती में एक कहानी प्रकाशनार्थ भेजी पंथों में ईश्वर सरस्वती के सम्पादक महावीर प्रसाद द्विवेदी ने शीर्षक को सुधार दिया और जून 1916 की सरस्वती में पंच परमेश्वर शीर्षक से यह कहानी प्रकाशित हुई । अब प्रेमचंद धीरे - धीरे हिंदी साहित्य में आने लगे । वे अपनी रचना पहले उर्दू में लिखते थे तथा बाद में स्वयं ही उसे हिंदी में लिखते थे । सितम्बर 1924 से सितम्बर 1925 तक प्रेमचंद लखनऊ में रहे और उसके बाद वापिस लमही आ गए । इसके डेढ़ साल बाद प्रेमचंद पुनः लखनऊ गए । इस बार उन्हें प्रसिद्ध हिंदी पत्रिका ' माधुरी का संपादक बनाया गया । प्रेमचंद के साथ कृष्ण बिहारी मिश्र भी थे । यहाँ पर वे लगभग छः वर्ष तक रहे । सरस्वती प्रेस बनारस से चल ही रहा था । इस दौरान उनके जीवन में दो महत्वपूर्ण घटना घटी । 1924 में ही अलवर नरेश ने प्रेमचंद को अपनी रियासत में बुलाया उनका वेतन 400 रुपया प्रस्तावित किया तथा इसके साथ बंगला , मोटर और नौकर - चाकर सबकी व्यवस्था की हामी भरी थी । प्रेमचंद ने नम्रतापूर्वक इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया । इसी तरह उन्हें अंग्रेज सरकार ' रायसाहब ' का खिताब देना चाहती थी । इसे भी उन्होंने अस्वीकार कर दिया । शिवरानी देवी ने प्रेमचंद घर में पुस्तक में इसका उल्लेख किया है । प्रेमचंद हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं लेखक थे , अतः उनके मन में इन दोनों भाषाओं की एकेडमी बनाने की इच्छा रहती थी । मार्च 1927 में हिन्दुस्तानी एकेडमी का उद्घाटन हुआ । प्रेमचंद इसकी काउंसिल के सदस्य थे । इस एकेडमी ने प्रेमचंद को रंगभूमि उपन्यास पर 500 / रु का पुरस्कार प्रदान किया था । धीरे - धीरे प्रेमचंद हिंदी संसार के प्रतिष्ठित लेखक हो गए और उन्हें ' उपन्यास सम्राट कहा जाने लगा । जनवरी 1928 की माधुरी में ' पंडित मोटेराम शास्त्री ' शीर्षक कहानी प्रकाशित हुई । इस कहानी पर किन्हीं शास्त्री जी ने प्रेमचंद पर मानहानि का मुकदमा कर दिया । यह मुकदमा खारिज हो गया । 1931 में प्रेमचंद ने ' माधुरी का सम्पादन छोड़ दिया तथा मई 1932 में लखनऊ की नौकरी छोड़ दी । 8 अक्टूबर 1936 को उनकी मृत्यु हो गई । उनका अंतिम उपन्यास ' मंगलसूत्र था ।
साहित्यिक परिचय
प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा मदरसे में हुई । तथा उन्होंने प्रारंभिक लेखन भी उर्दू में ही किया । उनकी प्रारम्भिक उपलब्ध रचना , आलिवर क्रामवेल की जीवनी ( सन 1903 ) माना जाता है । यह निबंध दयानारायण निगम के प्रसिद्ध पत्र जमाना ' में प्रकाशित हुआ । उनका पहला उपन्यास ' हम खुर्मा और हम सबाब ( 1906 ) माना जाता है । उनकी पहली कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन ' ( 1907 ) मानी जाती है । उनका पहला कहानी संग्रह सोज़े - वतन 1909 में छपा । इस संग्रह में देशप्रेम की भावुक ललकार मिलती है । कहते हैं कि सरकार ने यह जानकारी प्राप्त कर ली थी कि धनपतराय श्रीवास्तव और नवाब राय एक ही व्यक्ति है । तब तत्कालीन जिलाधीश ने प्रेमचंद को बुलाकर डाँटा - फटकारा तथा भविष्य में ऐसी कहानियाँ न लिखने हिदायत देकर इस संग्रह को जब्त कर लिया । सरकारी नौकरी करते हुए अपने नाम से देशभक्ति का साहित्य लिखना प्रेमचंद के लिए अब संभव नहीं था , इसलिए पहले भी उन्होंने धनपतराय श्रीवास्तव के नाम से लेखन नहीं किया लेखन के रूप में नवाबराय नाम चुना , परन्तु सरकार को पता चल गया तब फिर नए नाम की खोज हुई । उन्होंने अपने मित्र दयानारायण निगम से चर्चा की और प्रेमचंद नाम से लेखन करने का निर्णय किया । प्रेमचंद के नाम से बड़े घर की बेटी ' ( 1910 ) कहानी पहली बार छपी । इसके बाद सभी लोग प्रेमचंद को प्रेमचंद के नाम से ही जानने लगे । 1915 ई. में उस समय की प्रसिद्ध हिंदी मासिक पत्रिका सरस्वती के दिसम्बर अंक में पहली बार उनकी कहानी सौत नाम से प्रकाशित हुई। 1918 ई. में उनका पहला हिंदी उपन्यास सेवासदन प्रकाशित हुआ। इसकी अत्यधिक लोकप्रियता ने प्रेमचंद को उर्दू से हिंदी का कथाकार बना दिया। हालाँकि उनकी लगभग सभी रचनाएँ हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित होती रहीं। उन्होंने लगभग 300 कहानियाँ तथा डेढ़ दर्जन उपन्यास लिखे।
1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद वे पूरी तरह साहित्य सृजन में लग गए। उन्होंने कुछ महीने मर्यादा नामक पत्रिका का संपादन किया। इसके बाद उन्होंने लगभग छह वर्षों तक हिंदी पत्रिका माधुरी का संपादन किया। 1922 में उन्होंने बेदखली की समस्या पर आधारित प्रेमाश्रम उपन्यास प्रकाशित किया। 1925 ई. में उन्होंने रंगभूमि नामक वृहद उपन्यास लिखा, जिसके लिए उन्हें मंगलप्रसाद पारितोषिक भी मिला। 1926-27 ई. के दौरान उन्होंने महादेवी वर्मा द्वारा संपादित हिंदी मासिक पत्रिका चाँद के लिए धारावाहिक उपन्यास के रूप में निर्मला की रचना की। इसके बाद उन्होंने कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि और गोदान की रचना की। उन्होंने 1930 में बनारस से अपना मासिक पत्रिका हंस का प्रकाशन शुरू किया। 1932 ई. में उन्होंने हिंदी साप्ताहिक पत्र जागरण का प्रकाशन आरंभ किया। उन्होंने लखनऊ में 1936 में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन की अध्यक्षता की। उन्होंने मोहन दयाराम भवनानी की अजंता सिनेटोन कंपनी में कथा-लेखक की नौकरी भी की। 1934 में प्रदर्शित फिल्म मजदूर की कहानी उन्होंने ही लिखी थी। 1920-36 तक प्रेमचंद लगभग दस या अधिक कहानी प्रतिवर्ष लिखते रहे। मरणोपरांत उनकी कहानियाँ "मानसरोवर" नाम से 8 खंडों में प्रकाशित हुईं। उपन्यास और कहानी के अतिरिक्त वैचारिक निबंध, संपादकीय, पत्र के रूप में भी उनका विपुल लेखन उपलब्ध है।
प्रमुख रचनाएँ
उपन्यास
- असरारे मआबिद- उर्दू साप्ताहिक आवाज-ए-खल्क़ में 8 अक्टूबर 1903 से 1 फरवरी 1905 तक धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ। हिन्दी में देवस्थान रहस्य नाम से प्रकाशित हुआ।
- हमखुर्मा व हमसवाब- इस का प्रकाशन 1907 ई. में हुआ। इसका हिन्दी रूपान्तरण 'प्रेमा' नाम से प्रकाशित हुआ।
- किशना- प्रकाशन वर्ष 1907
- रूठी रानी- 1907 ज़माना में प्रकाशित ।
- जलवए ईसार- 1912 में ।
- सेवासदन- 1918 ई. में प्रकाशित सेवासदन प्रेमचंद का हिन्दी में प्रकाशित होने वाला पहला उपन्यास था। यह मूल रूप से उन्होंने 'बाजारे-हुस्न' नाम से पहले उर्दू में लिखा गया लेकिन इसका हिन्दी रूप 'सेवासदन' पहले प्रकाशित हुआ। यह स्त्री समस्या पर केन्द्रित उपन्यास है जिसमें दहेज-प्रथा, अनमेल विवाह, वेश्यावृत्ति, स्त्री-पराधीनता आदि समस्याओं के कारण और प्रभाव शामिल हैं।
- प्रेमाश्रम (1922)- यह किसान जीवन पर उनका पहला उपन्यास है। इसका मसौदा भी पहले उर्दू में 'गोशाए-आफियत' नाम से तैयार हुआ था लेकिन इसे पहले हिंदी में प्रकाशित कराया। यह अवध के किसान आन्दोलनों के दौर में लिखा गया।
- रंगभूमि (1925)- इसमें प्रेमचंद एक अंधे भिखारी सूरदास को कथा का नायक बनाकर हिंदी कथा साहित्य में क्रांतिकारी बदलाव का सूत्रपात करते हैं।
- निर्मला (1925)- यह अनमेल विवाह की समस्याओं को रेखांकित करने वाला उपन्यास है।
- कायाकल्प (1926)
- अहंकार - इसका प्रकाशन कायाकल्प के साथ ही सन् 1926 ई. में हुआ था।
- प्रतिज्ञा (1927)- यह विधवा जीवन तथा उसकी समस्याओं को रेखांकित करने वाला उपन्यास है।
- गबन (1928)- उपन्यास की कथा रमानाथ तथा उसकी पत्नी जालपा के दाम्पत्य जीवन, रमानाथ द्वारा सरकारी दफ्तर में गबन, जालपा का उभरता व्यक्तित्व इत्यादि घटनाओं के इर्द-गिर्द घूमती है।
- कर्मभूमि (1932)-यह अछूत समस्या, उनका मन्दिर में प्रवेश तथा लगान इत्यादि की समस्या को उजागर करने वाला उपन्यास है।
- गोदान (1936)- यह उनका अन्तिम पूर्ण उपन्यास है जो किसान-जीवन पर लिखी अद्वितीय रचना है। इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद 'द गिफ्ट ऑफ़ काओ' नाम से प्रकाशित हुआ।
- मंगलसूत्र (अपूर्ण)- यह प्रेमचंद का अधूरा उपन्यास है जिसे उनके पुत्र अमृतराय ने पूरा किया। इसके प्रकाशन के संदर्भ में अमृतराय प्रेमचंद की जीवनी में लिखते हैं कि इसका-"प्रकाशन लेखक के देहान्त के अनेक वर्ष बाद 1948 में हुआ।"
कहानियां
इनकी अधिकतर कहानियोँ में निम्न व मध्यम वर्ग का चित्रण है। डॉ॰ कमलकिशोर गोयनका ने प्रेमचंद की संपूर्ण हिंदी-उर्दू कहानी को प्रेमचंद कहानी रचनावली नाम से प्रकाशित कराया है। उनके अनुसार प्रेमचंद्र ने अपने जीवन में लगभग 300 से अधिक कहानियाँ तथा 18 से अधिक उपन्यास लिखे है। इनकी इन्हीं क्षमताओं के कारण इन्हें कलम का जादूगर कहा जाता है| प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह सोज़े वतन(राष्ट्र का विलाप) नाम से जून 1908 में प्रकाशित हुआ। इसी संग्रह की पहली कहानी दुनिया का सबसे अनमोल रतन को आम तौर पर उनकी पहली प्रकाशित कहानी माना जाता रहा है। डॉ॰ गोयनका के अनुसार कानपुर से निकलने वाली उर्दू मासिक पत्रिका ज़माना के अप्रैल अंक में प्रकाशित सांसारिक प्रेम और देश-प्रेम (इश्के दुनिया और हुब्बे वतन) वास्तव में उनकी पहली प्रकाशित कहानी है।
इनकी कुछ प्रमुख कहानियां
- बड़े घर की बेटी
- पंच परमेश्वर
- पूस की रात
- अन्धेर
- दो बैलों की कथा
- ठाकुर का कुआँ
- अनाथ लड़की
- ईदगाह
- गुल्ली डण्डा
- अपनी करनी
- नमक का दरोगा
- अमृत
- कफ़न
- अलग्योझा
- आखिरी तोहफ़ा
- आखिरी मंजिल
- आत्म-संगीत
- आत्माराम
- आल्हा
- इज्जत का खून
- इस्तीफा
- ईश्वरीय न्याय
- उद्धार
- एक आँच की कसर
- एक्ट्रेस
- कप्तान साहब
- कर्मों का फल
- क्रिकेट मैच
- कवच
- कातिल
- कोई दुख न हो तो बकरी खरीद ला
- कौशल़
- खुदी
- गैरत की कटार
- घमण्ड का पुतला
- ज्योति
- जेल
- जुलूस
- झाँकी
- त्रिया-चरित्र
- तिरसूल
- दण्ड
- दुर्गा का मन्दिर
- देवी
- दूसरी शादी
- दिल की रानी
- दो सखियाँ
- धिक्कार
- मोटेराम जी शास्त्री
- स्वर्ग की देवी
- राजहठ
- राष्ट्र का सेवक
- लैला
- वफ़ा का खंजर
- वासना की कड़ियां
- विजय
- विश्वास
- शंखनाद
- शूद्र
- शराब की दुकान
- शादी की वजह
- शान्ति
- स्त्री और पुरूष
- स्वर्ग की देवी
- स्वांग
- सभ्यता का रहस्य
- समर यात्रा
- समस्या
- सैलानी बन्दर
- स्वामिनी
- सिर्फ एक आवाज
- सोहाग का शव
- सौत
- होली की छुट्टी
- गृह-दाह
- सवा सेर गेहूँ
- दूध का दाम
- मुक्तिधन
कहानी संग्रह-
- सप्तसरोज- 1917 में इसके पहले संस्करण की भूमिका लिखी गई थी। सप्तसरोज में प्रेमचंद की सात कहानियाँ संकलित हैं। जो निम्न हैं- बड़े घर की बेटी, सौत, सज्जनता का दण्ड, पंच परमेश्वर, नमक का दारोगा, उपदेश तथा परीक्षा आदि।
- नवनिधि- यह प्रेमचंद की नौ कहानियों का संग्रह है। जो निम्न हैं- राजा हरदौल, रानी सारन्धा, मर्यादा की वेदी, पाप का अग्निकुण्ड, जुगुनू की चमक, धोखा, अमावस्या की रात्रि, ममता, पछतावा आदि।
- 'प्रेमपूर्णिमा',
- 'प्रेम-पचीसी',
- 'प्रेम-प्रतिमा',
- 'प्रेम-द्वादशी',
- समरयात्रा- इस संग्रह के अंतर्गत प्रेमचंद की 11 राजनीतिक कहानियों का संकलन किया गया है। जो निम्न हैं- जेल, कानूनी कुमार, पत्नी से पति, लांछन, ठाकुर का कुआँ, शराब की दुकान, जुलूस, आहुति, मैकू, होली का उपहार, अनुभव, समर-यात्रा आदि।
- मानसरोवर' : भाग एक व दो और 'कफन'।
इनकी मृत्यु के बाद उनकी कहानियाँ 'मानसरोवर' शीर्षक से 8 भागों में प्रकाशित हुई।
नाटक
- संग्राम (1923)- यह किसानों के मध्य व्याप्त कुरीतियाँ तथा किसानों की फिजूलखर्ची के कारण हुआ कर्ज और कर्ज न चुका पाने के कारण अपनी फसल निम्न दाम में बेचने जैसी समस्याओं पर विचार करने वाला नाटक है।
- कर्बला (1924)
- प्रेम की वेदी (1933)
ये नाटक शिल्प और संवेदना के स्तर पर अच्छे हैं लेकिन इनकी कहानियों और उपन्यासों ने इतनी ऊँचाई प्राप्त कर ली थी कि नाटक के क्षेत्र में प्रेमचंद को कोई खास सफलता नहीं मिली। ये नाटक वस्तुतः संवादात्मक उपन्यास ही बन गए हैं ।
निबन्ध
- पुराना जमाना नया जमाना,
- स्वराज के फायदे,
- कहानी कला (1,2,3),
- कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार,
- हिन्दी-उर्दू की एकता,
- महाजनी सभ्यता,
- उपन्यास,
- जीवन में साहित्य का स्थान।
अनुवाद
प्रेमचंद एक सफल अनुवादक भी थे। इन्होंने दूसरी भाषाओं के जिन लेखकों को पढ़ा और जिनसे प्रभावित हुए, उनकी कृतियों का अनुवाद भी किया। इन्होंने 'टॉलस्टॉय की कहानियाँ' (1923), गाल्सवर्दी के तीन नाटकों का - हड़ताल (1930), चाँदी की डिबिया (1931) और न्याय (1931) नाम से अनुवाद किया। उनका रतननाथ सरशार के उर्दू उपन्यास फसान-ए-आजाद का हिन्दी अनुवाद आजाद कथा बहुत मशहूर हुआ।
बाल साहित्य
रामकथा, कुत्ते की कहानी, दुर्गादास
संपादन
प्रेमचन्द ने 'जागरण' नामक समाचार पत्र तथा 'हंस' नामक मासिक साहित्यिक पत्रिका का सम्पादन किया था। उन्होंने सरस्वती प्रेस भी चलाया था। वे उर्दू की पत्रिका ‘जमाना’ में नवाब राय के नाम से लिखते थे ।
विविध
- प्रेमचंद : विविध प्रसंग- यह अमृतराय द्वारा संपादित प्रेमचंद की कथेतर रचनाओं का संग्रह है। इसके पहले खण्ड में प्रेमचंद के वैचारिक निबन्ध, संपादकीय आदि प्रकाशित हैं। इसके दूसरे खण्ड में प्रेमचंद के पत्रों का संग्रह है।
- प्रेमचंद के विचार- तीन खण्डों में प्रकाशित यह संग्रह भी प्रेमचंद के विभिन्न निबंधों, संपादकीय, टिप्पणियों आदि का संग्रह है।
- साहित्य का उद्देश्य- इसी नाम से उनका एक निबन्ध-संकलन भी प्रकाशित हुआ है जिसमें 40 लेख हैं।
- चिट्ठी-पत्री- यह प्रेमचंद के पत्रों का संग्रह है। दो खण्डों में प्रकाशित इस पुस्तक के पहले खण्ड के संपादक अमृतराय और मदनगोपाल हैं। इस पुस्तक में प्रेमचंद के दयानारायण निगम, जयशंकर प्रसाद, जैनेंद्र आदि समकालीन लोगों से हुए पत्र-व्यवहार संग्रहित हैं। संकलन का दूसरा भाग अमृतराय ने संपादित किया है।
उत्साहवर्धन के लिये धन्यवाद!
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